नई दिल्ली. केंद्र सरकार के वर्ष 2016 में 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने के फैसले को चुनौती देने वाली अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से फैसले लेने की प्रक्रिया से सबंधित फाइलें मांगी है.
सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर को केंद्र और आरबीआइ को फटकार लगाते हुए कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे का मतलब ये नहीं है कि अदालत हाथ बांधकर चुप बैठ जाएगी. अदालत ने कहा कि सरकार किस तरह से निर्णय लेती है, उसकी कभी भी पड़ताल की जा सकती है.
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत 8 नवंबर 2016 को केंद्र द्वारा घोषित नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान आरबीआइ मे कहा कि अस्थायी कठिनाइयां थीं और राष्ट्र निर्माण का एक अभिन्न अंग भी हैं, लेकिन एक तंत्र था जिसके जरिये उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान किया गया.
नोटबंदी के दौरान नागरिकों को हुई कठिनाई- सुको
जस्टिस एसए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ये टिप्पणी तब की, जब रिजर्व बैंक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने नोटबंदी की कवायद का बचाव करते हुए कहा कि निर्णय लेने में कोई प्रक्रियात्मक चूक नहीं हुई थी. उन्होंने कहा, जब तक असंवैधानिक नहीं पाया जाता, तब तक आर्थिक नीति के उपायों की न्यायिक समीक्षा का समर्थन नहीं किया जा सकता. आर्थिक नीति बनाने में आर्थिक रूप से प्रासंगिक कारकों को विशेषज्ञों पर छोड़ दिया जाता है.
याचिकाकर्ताओं की दलील कि नोटबंदी के दौरान नागरिकों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, का खंडन करते हुए रिजर्व बैंक के वकील ने कहा कि अर्थव्यवस्था में फिर से मुद्रा का प्रवाह बढ़ाने के लिए विस्तृत उपाय किए गए थे. गुप्ता ने कहा, अगर सरकार फैसले से निपटने के लिए इतनी तत्पर है तो इसे बिना सोचे-समझे लिया फैसला कहना ठीक नहीं है. यह भी कहा गया है कि जब भी कोई समस्या उत्पन्न हुई, सरकार ने संज्ञान लिया.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी अधिनियम रद्द किया और संसद में चर्चा तक नहीं हुई: जगदीप धनखड
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