प्रदीप द्विवेदी. वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद से बीजेपी में एकाधिकार के लिए बोनसाई पॉलिटिक्स का जमकर दुरुपयोग हुआ है.
बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं को अलग-अलग सियासी तरीकों से किनारे कर दिया गया, नतीजा यह रहा कि अब उसके राजनीतिक कुपरिणाम सामने आ रहे हैं, यही वजह है कि हाल ही हुए तीन बड़े चुनावों में से दो चुनाव बीजेपी हार गई, तो उपचुनावों में भी बीजेपी को निराशा हाथ लगी.
वर्ष 2014 में हर राज्य से पीएम पद के दावेदार नेता थे, राजस्थान से वसुंधरा राजे, एमपी से शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र से नितिन गडकरी, यूपी से राजनाथ सिंह, इनमें से ज्यादातर सियासी मुख्यधारा में आ गए, लेकिन वसुंधरा राजे नहीं आई, यही नहीं, 2014 के बाद योगी आदित्यनाथ और देवेंद्र फडनवीस बड़े नेता बनकर उभरे, यूपी में भी विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात फार्मूला लागू करने की कोशिश की गई थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने रहे, अलबत्ता, देवेंद्र फडनवीस को मुख्यमंत्री से उपमुख्यमंत्री बना दिया गया.
ताजा, हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी बोनसाई पॉलिटिक्स का गुजरात फार्मूला लागू किया गया था, पर बगावत हो गई, नतीजा.... हिमाचल में बीजेपी हार गई.
खबरें हैं कि अब अगले साल 2023 में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां भी बोनसाई पॉलिटिक्स का गुजरात फार्मूला आजमाया जा सकता है, लेकिन यदि ऐसा होता है, तो एमपी में भी बीजेपी को हिमाचल प्रदेश जैसे नतीजे मिल सकते हैं, क्योंकि अब गुजरात को छोड़कर देश में न तो मोदी फैक्टर काम कर रहा है और न ही संगठन पर मोदी-शाह की वैसी पकड़ रही है.
मध्यप्रदेश में सीएम शिवराज सिंह चौहान की मजबूत सियासी पकड़ है, यही नहीं, जिस तरह गुजरात में मोदी के लिए इमोशनल फैक्टर काम करता है, वैसे ही एमपी में शिवराज सिंह चौहान के लिए इमोशनल फैक्टर असरदार है, लिहाजा चुनाव के वर्ष में शिवराज सिंह चौहान को हटाने की कोशिश की जाती है, तो विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी सियासी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
इतना ही नहीं, पिछली बार सियासी जोड़-तोड़ करके एमपी में बीजेपी ने सरकार भले ही बना ली हो, लेकिन अब विधानसभा चुनाव में टिकट के बंटवारे में भारी परेशानी होगी, क्योंकि ज्यादातर सीट पर मूल भाजपाई और कांग्रेस से आए भाजपाई टिकट के लिए आमने-सामने होंगे और बड़ी संख्या में बागी भी मैदान में होंगे.
देखना दिलचस्प होगा कि एमपी में विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान कैसी सियासी तस्वीर उभरती है?
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