अभिमनोज. दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं का अधिकार किसके पास होना चाहिए?
इस मुद्दे पर केजरीवाल सरकार और मोदी सरकार के बीच सियासी रस्साकशी जारी है और इस बीच अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है!
खबरें हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए सवाल भी किया है कि- अगर सारा कंट्रोल आप अपने पास रखना चाहते हैं, तो दिल्ली में अलग से सरकार चुनने की जरूरत क्या है?
उल्लेखनीय है कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच इस विषयक सुनवाई कर रही है.
खबरों की मानें तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि- अधिकारियों के कार्यात्मक नियंत्रण और उनके प्रशासनिक नियंत्रण में अंतर है, यह हमेशा से निर्वाचित सरकार के प्रतिनिधि के रूप में मंत्री के पास होता है.
सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार से सवाल था कि- यदि कोई अधिकारी लापरवाही कर रहा है या अच्छे से अपनी ड्यूटी नहीं निभा रहा है, तो ऐसे में क्या दिल्ली सरकार उस अधिकारी का तबादला नहीं कर सकती है?
अदालत का यह भी सवाल था कि- क्या दिल्ली विधानसभा के पास राज्य और समवर्ती सूची में सभी वस्तुओं के संबंध में कानून बनाने का अधिकार नहीं है?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना था कि- क्योंकि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, लिहाजा दिल्ली के संविधान के अनुच्छेद 308 के तहत अधिकारियों का अपना कैडर नहीं हो सकता!
यह सही है कि राज्य और केंद्र के अधिकारों को लेकर कानून-कायदे बने हुए हैं, लेकिन इन कानूनों का सही उपयोग तभी है, जब इनकी भावना समझते हुए आपसी संतुलन बनाया जाए, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीकों से अधिकारों का अतिक्रमण सही नहीं कहा जा सकता है?
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