नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के बड़े अफसरों के तबादलों और पोस्टिंग पर प्रशासनिक नियंत्रण के मामले में सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट ने दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार होने की आवश्यकता पर सवाल उठाया. कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार होने का क्या मतलब है, जब इसका प्राशासनिक कंट्रोल केंद्र सरकार के पास है.
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र-दिल्ली सरकार के विवाद पर गुरुवार को तीसरे दिन सुनवाई की. इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली जैसा केंद्र शासित प्रदेश, संघ का एक विस्तार है, जिसे केंद्र सरकार अपने अधिकारियों के जरिए प्रशासित करती है. इस पर कोर्ट ने पूछा कि अगर दिल्ली में सब कुछ केंद्र के इशारे पर चल रहा है, तो एक चुनी हुई सरकार का क्या फायदा?
सुनवाई के दौरान, जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने उन विषयों का उल्लेख भी किया, जिन पर दिल्ली सरकार कानून बनाने में अक्षम है और राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के संबंध में कानूनी और संवैधानिक स्थिति के बारे में पूछा. इस पर मेहता ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली का एक अद्वितीय दर्जा है और वहां रहने वाले सभी राज्यों के नागरिकों में अपनेपन की भावना होनी चाहिए. एक फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा- दिल्ली एक महानगरीय शहर है और लघु भारत है.
सॉलिसिटर जनरल बोले- कुछ अधिकार साझे हैं
पीठ ने पूछा- अगर संसद के पास कुछ क्षेत्रों पर विधायी नियंत्रण है, तो दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों के बारे में क्या. अदालत चाहती थी कि सॉलिसिटर जनरल यह बताएं कि कैसे सेवाओं का विधायी नियंत्रण कभी भी दिल्ली की विधायी शक्तियों का हिस्सा नहीं था. सॉलिसिटर जनरल ने कहा- कुछ अधिकार साझे हैं और अधिकारियों का फंक्शनल कंट्रोल हमेशा स्थानीय रूप से निर्वाचित सरकार के पास रहेगा.
उन्होंने कहा कि यदि कोई अधिकारी अपनी भूमिका को इच्छानुसार नहीं निभा रहा है, तो दिल्ली सरकार के पास उसे ट्रांसफर करने और किसी और को नियुक्त करने की कोई पावर नहीं होगी. पीठ ने कहा- क्या आप कह सकते हैं कि उनके पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होगा, जहां उन्हें तैनात किया जाना चाहिए.
अगली सुनवाई 17 जनवरी को
कानून अधिकारी ने दिल्ली की स्थिति को राष्ट्रीय राजधानी के रूप में संदर्भित किया और पुष्टि के लिए उदाहरण दिए कि केंद्र को सेवाओं को नियंत्रित करने की आवश्यकता क्यों है. मान लीजिए कि केंद्र सरकार एक अधिकारी को पोस्ट करती है और दिल्ली सरकार की एक नीति के अनुसार वह दूसरे राज्य के साथ असहयोग करने लगता है तो समस्या होगी. इसके अलावा, जब भी किसी अधिकारी के संबंध में अनुरोध किया जाता है, तो उपराज्यपाल कार्रवाई करते हैं, उन्होंने कहा कि पावर केंद्र सरकार के पास है. मामले में अगली सुनवाई 17 जनवरी को होगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 164 करोड़ की रिकवरी का नोटिस, 10 दिन के भीतर देना होगा पैसा
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