25 जनवरी 2023 बुधवार को दोपहर 12:35 से 26 जनवरी, गुरुवार को सुबह 10:28 तक माघ माह की पंचमी तिथि है.
भौगौलिक परिवर्तन , सामाजिक कार्य तथा आध्यात्मिक पक्ष सभी का सम्मिश्रण है, हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है वास्तव में भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है और बसंत पंचमी के दिन को बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है इसलिए बसंत पंचमी ऋतू परिवर्तन का दिन भी है जिस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखारना शुरू हो जाता है पेड़ों पर नयी पत्तिया कोपले और कालिया खिलना शुरू हो जाती हैं पूरी प्रकृति एक नवीन ऊर्जा से भर उठती है.
वसन्त पञ्चमी का दिन हिन्दु कैलेण्डर में पञ्चमी तिथि को मनाया जाता है. जिस दिन पञ्चमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच में व्याप्त रहती है उस दिन को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता है. इसी कारण से कुछ वर्षो में वसन्त पञ्चमी चतुर्थी के दिन पड़ जाती है. हिन्दु कैलेण्डर में सूर्योदय और दोपहर के मध्य के समय को पूर्वाह्न के नाम से जाना जाता है.
ज्योतिष विद्या में पारन्गत व्यक्तियों के अनुसार वसन्त पञ्चमी का दिन सभी शुभ कार्यो के लिये उपयुक्त माना जाता है. इसी कारण से वसन्त पञ्चमी का दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है और नवीन कार्यों की शुरुआत के लिये उत्तम माना जाता है.
वसन्त पञ्चमी के दिन किसी भी समय सरस्वती पूजा की जा सकती है परन्तु पूर्वाह्न का समय पूजा के लिये श्रेष्ठ माना जाता है. सभी विद्यालयों और शिक्षा केन्द्रों में पूर्वाह्न के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है.
नीचे सरस्वती पूजा का जो मुहूर्त दिया गया है उस समय पञ्चमी तिथि और पूर्वाह्न दोनों ही व्याप्त होते हैं. इसीलिये वसन्त पञ्चमी के दिन सरस्वती पूजा इसी समय के दौरान करना श्रेष्ठ है.
सरस्वती, बसंतपंचमी पूजा
1. प्रात:काल स्नाना करके पीले वस्त्र धारण करें.
2. मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें तत्पश्चात कलश स्थापित कर प्रथम पूज्य गणेश जी का पंचोपचार विधि पूजन उपरांत सरस्वती का ध्यान करें.
3. मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं.
4. माता का श्रंगार कराएं .
5. माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं.
6. प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं.
7. श्वेत फूल माता को अर्पण करें.
8. तत्पश्चात नवग्रह की विधिवत पूजा करें.
बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा के साथ सरस्वती चालीसा पढ़ना और कुछ मंत्रों का जाप आपकी बुद्धि प्रखर करता है. अपनी सुविधानुसार आप ये मंत्र 11, 21 या 108 बार जाप कर सकते हैं.
निम्न मंत्र या इनमें किसी भी एक मंत्र का यथा सामर्थ्य जाप करें
1. सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने
विद्यारूपा विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते॥
2. या देवी सर्वभूतेषू, मां सरस्वती रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
3. ऐं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां.
सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।।
4. एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र
ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः.
5. वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि.
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ।।
*“सुन्दरि! प्रत्येक ब्रह्माण्ड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्यारम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी विशाल पूजा होगी. मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलयपर्यन्त प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी प्रसिद्ध मुनिगण, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस– सभी बड़ी भक्ति के साथ सोलह प्रकार के उपचारों के द्वारा तुम्हारी पूजा करेंगे. उन संयमशील जितेन्द्रिय पुरुषों के द्वारा कण्वशाखा में कही हुई विधि के अनुसार तुम्हारा ध्यान और पूजन होगा. वे कलश अथवा पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे. तुम्हारे कवच को भोजपत्र पर लिखकर उसे सोने की डिब्बी में रख गन्ध एवं चन्दन आदि से सुपूजित करके लोग अपने गले अथवा दाहिनी भुजा में धारण करेंगे. पूजा के पवित्र अवसर पर विद्वान पुरुषों के द्वारा तुम्हारा सम्यक प्रकार से स्तुति-पाठ होगा. इस प्रकार कहकर सर्वपूजित भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती की पूजा की. तत्पश्चात, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अनन्त, धर्म, मुनीश्वर, सनकगण, देवता, मुनि, राजा और मनुगण– इन सब ने भगवती सरस्वती की आराधना की. तब से ये सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा सदा पूजित होने लगीं.
*वसन्त पंचमी पर सरस्वती मूल मंत्र की कम से कम 1 माला जप जरूर करना चाहिए.
मूल मंत्र : “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा”
माँ सरस्वती चालीसा
दोहा
जनक जननि पदम दुरज, निजब मस्तक पर धारि.
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि।।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु.
दुष्टजनों के पाप को, मातु तुही अब हन्तु।।
चौपाई
जय श्रीसकल बुद्धि बलरासी.जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी।।
जय जय जय वीणाकर धारी.करती सदा सुहंस सवारी।।
रूप चतुर्भुज धारी माता.सकल विश्व अन्दर विख्याता।।
जग में पाप बुद्धि जब होती.तबही धर्म की फीकी ज्योति।।
तबहि मातु का निज अवतारा.पाप हीन करती महितारा।।
बाल्मीकि जी था हत्यारा.तव प्रसाद जानै संसारा।।
रामचरित जो रचे बनाई . आदि कवि की पदवी पाई।।
कालीदास जो भये विख्याता . तेरी कृपा दृष्टि से माता।।
तुलसी सूर आदि विद्वाना . भये जो और ज्ञानी नाना।।
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा . केवल कृपा आपकी अम्बा।।
करहु कृपा सोई मातु भवानी.दुखित दीन निज दासहि जानी।।
पुत्र करई अपराध बहूता . तेहि न धरई चित माता।।
राखु लाज जननि अब मेरी.विनय करऊ भांति बहुतेरी।।
मैं अनाथ तेरी अवलंबा . कृपा करउ जय जय जगदंबा।।
मधुकैटभ जो अति बलवाना . बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना।।
समर हजार पांच में घोरा.फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा।।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला.बुद्धि विपरीत भई खलहाला।।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी . पुरवहु मातु मनोरथ मेरी।।
चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता . क्षण महु संहारे उन माता।।
रक्त बीज से समरथ पापी . सुर मुनि हृदय धरा सब कांपी।।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा.बार बार बिनवऊं जगदंबा।।
जगप्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा.क्षण में बांधे ताहि तूं अम्बा।।
भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई . रामचन्द्र बनवास कराई।।
एहि विधि रावन वध तू कीन्हा.सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा।।
को समरथ तव यश गुण गाना.निगम अनादि अनंत बखाना।।
विष्णु रूद्र जस कहिन मारी.जिनकी हो तुम रक्षाकारी।।
रक्त दन्तिका और शताक्षी.नाम अपार है दानव भक्षी।।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा.दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा।।
दुर्ग आदि हरनी तू माता . कृपा करहु जब जब सुखदाता।।
नृप कोपित को मारन चाहे . कानन में घेरे मृग नाहै।।
सागर मध्य पोत के भंजे . अति तूफान नहिं कोऊ संगे।।
भूत प्रेत बाधा या दु:ख में.हो दरिद्र अथवा संकट में।।
नाम जपे मंगल सब होई.संशय इसमें करई न कोई।।
पुत्रहीन जो आतुर भाई . सबै छांड़ि पूजें एहि भाई।।
करै पाठ नित यह चालीसा . होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा।।
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै.संकट रहित अवश्य हो जावै।।
भक्ति मातु की करैं हमेशा.निकट न आवै ताहि कलेशा।।
बंदी पाठ करें सत बारा . बंदी पाश दूर हो सारा।।
रामसागर बांधि हेतु भवानी.कीजे कृपा दास निज जानी।।
दोहा
मातु सूर्य कान्ति तव, अंधकार मम रूप.
डूबन से रक्षा कार्हु परूं न मैं भव कूप।।
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु.
रामसागर अधम को आश्रय तू ही दे दातु।।
माँ सरस्वती वंदना
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे.
कुछ क्षेत्रों में देवी की पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता है. विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करें. संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना करें व मां को बांसुरी भेंट करें.
बसन्त पंचमी कथा
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की. अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है. विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा. इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ. यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी. ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया. पवन चलने से सरसराहट होने लगी. तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है. ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं. संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं. बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं. ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु.
अर्थात ये परम चेतना हैं. सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं. हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं. इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है. पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूं भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है.
पूजन में ध्यान रखने योग्य सामान्य नियम और सावधानियां
पार्थिव श्रीगणेश पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती
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