नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि न्यायिक या पुलिस कस्टडी में बंद महिला का वर्जिनिटी टेस्ट करना संविधान के खिलाफ है. कोर्ट ने यह टिप्पणी मंगलवार को सिस्टर सेफी की याचिका पर सुनवाई के दौरान की. याचिका 2009 में दायर की गई थी. सिस्टर सेफी को 1992 में एक नन सिस्टर अभया की हत्या का आरोपी ठहराया गया था.
यह है पूरा मामला
सिस्टर अभया 27 मार्च 1992 को 18 साल की उम्र में केरल के कोट्टायम के सेंट पियस एक्स कॉन्वेंट हॉस्टल के कुएं में मृत पाई गई थीं. उनकी हत्या के आरोप में फादर कोट्टूर और सिस्टर सेफी को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने दिसंबर 2020 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. हालांकि केरल हाईकोर्ट ने इस सजा को सस्पेंड कर दिया था. सीबीआई कोर्ट की जांच में सामने आया था कि सेफी और कोट्टूर के बीच शारीरिक संबंध थे, इन्हें छुपाने के लिए दोनों ने अभया का मर्डर किया था. इस जांच की पुष्टि के लिए सीबीआई ने सिस्टर सेफी का वर्जिनिटी टेस्ट कराया था. इस टेस्ट के रिजल्ट के आधार पर कोर्ट ने जांच को सही माना था.
इस केस में एक इंसान के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई गई
मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने कहा कि कस्टडी में रखे गए हर इंसान के मौलिक आत्मसम्मान को बनाए रखना जरूरी है, लेकिन इस केस में इसका अनादर किया गया है. हाईकोर्ट ने सिस्टर सेफी को अनुमति दी है कि वे अपने मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ मुआवजे की मांग कर सकती हैं. सीबीआई ने न्याय के अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हुए कोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई, जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ इंडिया जैसी अथॉरिटीज दिल्ली में स्थित हैं, इसलिए इस केस में कार्रवाई का कुछ अंश दिल्ली में किया जा सकता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-सौरभ कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाने कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को फिर भेजी सिफारिश
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