भारत को एकसूत्र में पिरोते द्वादश ज्योतिर्लिंग

भारत को एकसूत्र में पिरोते द्वादश ज्योतिर्लिंग

प्रेषित समय :15:16:23 PM / Sat, Feb 18th, 2023

- संगीता पांडेय

शिव ही सत्य है और सत्य ही शिव है. एक ऐसी ज्योति जो सदैव जीवन को उज्ज्वल रखती है. सत्य जीवन को उजाला देता ही है किंतु आज के जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं के नाम पर उस एक परम सत्य से दूर हो गए मानव के लिए ही तो शिव ने ज्योति रूप लिया ताकि मनुष्य भटके नहीं और सत्य के पथ पर चलता रहे. ज्योतिर्लिंग का अर्थ ही यह है कि शिव का ज्योति रूप में प्रकट होना. शिव लिंग तो कई हैं किंतु ज्योतिर्लिंग केवल 12 है जो शिव के इस महत्व को दर्शाते हैं. इनके महत्व को श्री आदि गुरु शंकराचार्य ने द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् की रचना संस्कृत भाषा में करते हुए व्यक्त किया है. भारत में स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का इसमें वर्णन हुआ है. इस स्रोत का पहला श्लोक इस प्रकार है -

"सौराष्ट्रदेशे विशदेतिरम्ते ज्योतिर्मयं चंद्रकलावतसम्. भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरण प्रपधे।।१।।"
(मैं सोमनाथ की शरण लेता हूं जो कि पवित्र और सुंदर सौराष्ट्र में स्थित है, यह चंद्रमा के वर्धमान को धारण करने वाला और भक्ति और दया का उपहार देने वाला है।)
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है. यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है. शिवपुराण के अनुसार जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी. ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी. चन्द्रमा को इस स्थान पर तेज प्राप्त हुआ.अत: इस स्थान को 'प्रभासपटण' नाम से भी जाना जाता है. विदेशी आक्रमणों के कारण यह कई बार नष्ट हो चुका है. हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है.

"श्रीशैलश्रड़गे विबुधातिसड़गे तुलाद्रितु़ड़गपि मुदा वसंन्तम्. तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ।।२।।
(जो जीवन के सागर के लिए सेतु स्वरूप है और जो देवताओं की संगति में है जो श्रीशैल के मिलन में रहते हैं और जो थुला के शिखर पर रहते हैं जिन्हें श्री मल्लिकार्जुन भी कहते हैं मैं उन्हें नमस्कार करता हूं।)
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है. इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है. अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं. कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है. एक पौराणिक कथा के अनुसार जहां पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते हैं.

"अवंतिकायां विहितावतार मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्. 
अकालमृत्यो: परिपक्षणार्थ वंदे महाकालमहासुरेशम्।।३।।"
(सभी देवों के स्वामी उन महाकाल को मैं नमस्कार करता हूं जो अवंतिका नगरी में अवतारित हुए हैं. ये सज्जन लोगों को मोक्ष और अकाल मृत्यु से बचाने वाले हैं।)
 महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है. यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है. महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है. उज्जैन वासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं.

"कावेरिकानर्मदयों: पवित्रे समागमें सज्जनतारणाय. सदैव मान्धातृपुरे वसंतामोड़कारमीशं शिवमेकमीडे।।४।। "
(मैं उन शिव को नमस्कार करता हूं जो मंधात्रिपुरा शहर में रहते हैं जो कावेरी और नर्मदा नदी के पवित्र संगम स्थित है जो लोगों को उनके जीवन के दुखों को पार करने में मदद करते है।)
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है. जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है. ऊं शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है. इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं के साथ ही किया जाता है. यह ज्योतिर्लिंग ओंकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है.

"पूर्वीत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसंत गिरिजासमेतम. सुरासुराराधितपादमभं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि।।५।।"
(सभी असुरों और देवों द्वारा पूजित में उन बैधनाथ को नमस्कार करता हूं जो अनंत चमक के स्थान पर रहते हैं भारत के उत्तर पूर्व में अपनी पत्नी पार्वती के साथ।)
भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है. यह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है.
कुछ लोगों की मान्यता है कि श्री वैद्यनाथ धाम बीड़ जिले में अंबेजोगाई से केवल 26 किलोमीटर पर स्थित है .परली क्षेत्र में है. लोगों की ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने देवगण को यहां अमृत विजय प्राप्त करा दिया था. अतः इस तीर्थ स्थान को वैजयंती यह नाम भी प्राप्त है.

"याम्ये सढ्ड़गे नगरेतिरम्ये विभूषिताड़ग विविधैश्र्च भोगै:।
सदभ्क्तिमुप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथ शरण प्रपधे।।६।।
(मैं उन भगवान नागनाथ की शरण लेता हूं जो दक्षिण भाग में सदांग के सुंदर शहर में रहते हैं जो अच्छी तरह से सजाए गए हैं जो सभी प्रकार के सुख प्रदान करने वाले हैं।)
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है. धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है. भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है. द्वारका पुरी से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी १७ मील की है. इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
कुछ लोगों की मान्यताओं के अनुसार श्रीनागनाथ ज्योतिर्लिंग जिसे औंधानागनाथ भी कहते हैं. महाराष्ट्र के हींगोली जिले में स्थित है.

"महाद्रिपाश्रर्वे च तठे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै:।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाधै: के दारमीशं शिवमेकमीडे।।७।।"
(मैं उन शिव का ध्यान करता हूं जो केदार के स्वामी है और जो महान पर्वतों की घाटी में आनंद से रहते हैं जिनकी हमेशा महान संतों ,देवो, असुरों, यक्षों और नागों द्वारा पूजा की जाती है।)
केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के १२ प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में आता है. यह उत्तराखंड में स्थित है. बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है. केदारनाथ समुद्र तल से ३५८४ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है. यह तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. जिस प्रकार कैलाश का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है.

"सह्याद्रिशीर्षे विमले वसंन्तम् गोदावरीतीरपवित्रदेशे.
यछर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यमबकमीशमीडे।।८।।
(मैं उन त्रिंबकेश्वर के स्वामी का ध्यान करता हूं जो पश्चिम के घाटों के शिखर पर रहते हैं गोदावरी नदी के पवित्र तट पर अपने भक्तों के पापों को नष्ट करने के लिए।)
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है. इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरूहोती है. भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है. कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा.

"सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसख्यै:।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्रवराख्यं नियतं नमामि।।९।।
(मैं भक्ति के साथ उन राम का ध्यान करता हूं जो नदी के संगम में रहते हैं. समुद्र के साथ ताम्रवर्णी जहां एक पुल बनाया गया है असंख्य बाणों की सहायता से, भगवान श्री राम चन्द्र द्वारा।)
 रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथ पुरं नामक स्थान में स्थित है. यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक है. इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है, कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी. भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है.

" यं डाकिनीशकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्रच.
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शड़कर भक्तहितं नमामि ।।१०।।"
(मैं उन भगवान शंकर को नमस्कार करता हूं जो कि भीम के स्वरूप में हैं और जिनकी पूजा राक्षसों द्वारा भी की जाती है डाकिनी और साकिनी जैसे।)
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं.

"सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्.
वाराणासीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरण प्रपधे।।११।।"
(वाराणसी के स्वामी भगवान शंकर की मैं रक्षा चाहता हूं. जो आनंद के जंगल में खुशियों से रहते हैं, जो सभी सुखों के आधार हैं, जो सभी पापों को नष्ट करने वाले हैं।)
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग यह उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है. काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है. इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है. इस स्थान की मान्यता है, कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा. इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे.

"इलापुरे रम्यविशालकेस्मिन् समुल्लसन्त च जगद्वरेण्यम्.
वन्दे महोदारतरस्वभावं घष्णेश्रवराख्यं शरण प्रपधे।।१२।।"
(मैं उन घुसरेश्वर की शरण लेता हूं जो कि इलापुर के सुंदर शहर में रहते हैं और जो इस ब्रह्मांड में सबसे बड़े और दयालु हैं।)
घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है. इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं. भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थिति को लेकर के भक्त जनों में मतभेद है जो कि नहीं होना चाहिए भक्तजनों के लिए भक्ति भाव से सभी ज्योतिर्लिंगों में पूजा अर्चना करना चाहिए . जहां तक मुझे समझ में आता है इस मतभेद का आधार यह श्लोक है
"सौराष्ट्रे सोमनाथच श्री शैले मल्लिकार्जुनम्.
उज्जायिन्यां महाकालमों कारम्मलेश्रवरम।।
परल्यां वैजनाथं च डाकिन्यां श्रीमाशंकरम्.
सेतुबंधो तु रामेशं,नागेश दारुकावने।।
वाराणस्यां विश्वेशं,त्र्यंबकं गौतमी तटे.
हिमालये तु केदारं,घृसृणेशं शिवालयें।।
इस श्लोक में परली श्रेत्र में स्थित ज्योतिर्लिंग को वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग और हींगोली श्रेत्र में स्थित ज्योतिर्लिंग को औंढया नागनाथ की संज्ञा दी गई है.
इन सबके अतिरिक्त एक प्रमुख महत्व और है , वह यह कि 12 ज्योतिर्लिंग कुछ इस प्रकार से भारत भूमि में स्थापित है जो ॐ का आकार भी पाते है और समग्र भारत को एक सूत्र में जोड़ते है. यही तो शिव महिमा है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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