गुड़ी पड़वा बुधवार, हिंदू नववर्ष यानि 'विक्रम संवत 22, मार्च 2023 को है!

गुड़ी पड़वा बुधवार, हिंदू नववर्ष यानि

प्रेषित समय :20:02:23 PM / Sun, Mar 19th, 2023

गुड़ी पड़वा  बुधवार, हिंदू नववर्ष यानि 'विक्रम संवत 22, मार्च  2023 को है.  विक्रम सम्वत 2080, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नए साल की शुरुआत होती है और इसी दिन यह त्योहार मनाने की प्रथा है.
गुड़ी पड़वा  पूजा 
1. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा हो, उस दिन से नव संवत्सर आरंभ होता है.
2. यदि प्रतिपदा दो दिन सूर्योदय के समय पड़ रही हो तो पहले दिन ही गुड़ी पड़वा मनाते हैं.
3. यदि सूर्योदय के समय किसी भी दिन प्रतिपदा न हो, तो तो नव-वर्ष उस दिन मनाते हैं जिस दिन प्रतिपदा का आरंभ व अन्त हो.
प्रत्येक 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के बाद वर्ष में अधिक मास जोड़ा जाता है. अधिक मास होने के बावजूद प्रतिपदा के दिन ही नव संवत्सर आरंभ होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अधिक मास भी मुख्य महीने का ही अंग माना जाता है. इसलिए मुख्य चैत्र के अतिरिक्त अधिक मास को भी नव सम्वत्सर का हिस्सा मानते हैं.
गुडी पडवा की पूजा विधि
निम्न विधि को सिर्फ़ मुख्य चैत्र में ही किए जाने का विधान है .
1 नव वर्ष फल श्रवण
2 तैल अभ्यंग (तैल से स्नान)
3 निम्ब-पत्र प्राशन (नीम के पत्ते खाना)
4 ध्वजारोपण
5 चैत्र नवरात्रि का आरंभ
6 घटस्थापना
संकल्प के समय नव वर्ष नामग्रहण (नए साल का नाम रखने की प्रथा) को चैत्र अधिक मास में ही शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जा सकता है. इस संवत्सर का नाम प्रमादी है तथा वर्ष 2079 है. साथ ही यह श्री शालीवाहन शकसंवत 1945 भी है और इस शक संवत का नाम शार्वरी है.
नव संवत्सर का राजा (वर्षेश)
नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को उस वर्ष का स्वामी भी मानते हैं. 2022 में हिन्दू नव वर्ष शनिवार से आरंभ हो रहा है, अतः
गुड़ी पड़वा के पूजन-मंत्र
गुडी पडवा पर पूजा के लिए मंत्र पढ़े
प्रातः व्रत संकल्प ,,ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजः श्रीब्रह्मणः प्रसादाय व्रतं करिष्ये.
पूजा संकल्प
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजो भगवतः श्रीब्रह्मणः षोडशोपचारैः पूजनं करिष्ये.
पूजा के बाद व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस मंत्र का जाप करना चाहिए
ॐ चतुर्भिर्वदनैः वेदान् चतुरो भावयन् शुभान्.
ब्रह्मा मे जगतां स्रष्टा हृदये शाश्वतं वसेत्।।
गुड़ी पड़वा मनाने की विधि
1. प्रातःकाल स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है.
लोग घरों की सफ़ाई करते हैं. गाँवों में गोबर से घरों को लीपा जाता है.
शास्त्रों के अनुसार इस दिन अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान अवश्य करना चाहिए.
सूर्योदय के तुरन्त बाद गुड़ी की पूजा का विधान है. इसमें अधिक देरी नहीं करनी चाहिए.
2. चटख रंगों से सुन्दर रंगोली बनाई जाती है और ताज़े फूलों से घर को सजाते हैं.
3. नए व सुन्दर कपड़े पहनकर लोग तैयार हो जाते हैं. आम तौर पर मराठी महिलाएँ इस दिन नौवारी (9 गज लंबी साड़ी) पहनती हैं और पुरुष केसरिया या लाल पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा या धोती-कुर्ता पहनते हैं.
4. परिजन इस पर्व को इकट्ठे होकर मनाते हैं व एक-दूसरे को नव संवत्सर की बधाई देते हैं.
5. इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने की भी परम्परा है.
6. पारम्परिक तौर पर मीठे नीम की पत्तियाँ प्रसाद के तौर पर खाकर इस त्यौहार को मनाने की शुरुआत की जाती है. आम तौर पर इस दिन मीठे नीम की पत्तियों, गुड़ और इमली की चटनी बनायी जाती है. ऐसा माना जाता है कि इससे रक्त साफ़ होता है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. इसका स्वाद यह भी दिखाता है कि चटनी की ही तरह जीवन भी खट्टा-मीठा होता है.
7. गुड़ी पड़वा पर श्रीखण्ड, पूरन पोळी, खीर आदि पकवान बनाए जाते हैं.
8. शाम के समय लोग लेज़िम नामक पारम्परिक नृत्य भी करते हैं.
गुड़ी कैसे लगाएँ
1. जिस स्थान पर गुड़ी लगानी हो, उसे भली-भांति साफ़ कर लेना चाहिए.
2. उस जगह को पवित्र करने के लिए पहले स्वस्तिक चिह्न बनाएँ.
3. स्वस्तिक के केन्द्र में हल्दी और कुमकुम अर्पण करें.
विभिन्न स्थलों में गुड़ी पड़वा आयोजन
देश में अलग-अलग जगहों पर इस पर्व को भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है.
1. गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाता है.
2. कर्नाटक में यह पर्व युगाड़ी नाम से जाना जाता है.
3. आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगाड़ी नाम से मनाते हैं.
4. कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं.
5. मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा कहलाता है.
6. इस दिन चैत्र नवरात्रि भी आरम्भ होती है.
इस दिन महाराष्ट्र में लोग गुड़ी लगाते हैं, इसीलिए यह पर्व गुडी पडवा कहलाता है. एक बाँस लेकर उसके ऊपर चांदी, तांबे या पीतल का उलटा कलश रखा जाता है और सुन्दर कपड़े से इसे सजाया जाता है. आम तौर पर यह कपड़ा केसरिया रंग का और रेशम का होता है. फिर गुड़ी को गाठी, नीम की पत्तियों, आम की डंठल और लाल फूलों से सजाया जाता है.
गुड़ी को किसी ऊँचे स्थान जैसे कि घर की छत पर लगाया जाता है, ताकि उसे दूर से भी देखा जा सके. कई लोग इसे घर के मुख्य दरवाज़े या खिड़कियों पर भी लगाते हैं.
गुड़ी का महत्व
1. सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने की ख़ुशी में लोगों ने घरों पर गुड़ी को लगाया था.
2. कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की विजय को याद करने के लिए भी गुड़ी लगाते हैं.
3. यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन ब्रह्माण्ड की रचना की थी. इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है. इसे इन्द्र-ध्वज के नाम से भी जाना जाता है.
4. भगवान राम द्वारा 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आने की याद में भी कुछ लोग गुड़ी पड़वा का पर्व मनाते हैं.
5. माना जाता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है.
6. गुड़ी को धर्म-ध्वज भी कहते हैं; अतः इसके हर हिस्से का अपना विशिष्ट अर्थ है–उलटा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरु-दण्ड का प्रतिनिधित्व करता है.
7. किसान रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं. अच्छी फसल की कामना के लिए इस दिन वे खेतों को जोतते भी हैं.
8. हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं. ये साढ़े तीन मुहूर्त हैं–गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीवाली को आधा मुहूर्त माना जाता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

नववर्ष संदेश! अंदाज अपना-अपना, राजीव ध्यानी बोले- जैसे कैलेण्डर बदला, वैसे ही....

नववर्ष से महंगे हो जाएंगे टीवी, फ्रीज, वॉशिंग मशीन व अन्य घरेलू सामान, यह है कारण

2 अप्रैल 2022 से प्रथम नवरात्रि एवं हिंदु नववर्ष विक्रम संवत 2079

Leave a Reply