पलपल संवाददाता, जबलपुर. एमपी के जबलपुर में चैत्र मास की प्रतिपदा पर नववर्ष का स्वागत मां नर्मदा नदी के उमाघाट ग्वारीघाट पर 22 मार्च को सुबह 6 बजे सूर्य को अर्घ्य देकर किया जाएगा. जिसमें समवेत शंखनाद, बाम्हणों के मुखारबिंद से स्वास्तिवाचन सहित सांस्कृतिक संगीत के साथ होगा. उक्ताशय की बात लक्ष्यभेदी फाउडेंशन के फाउंडर व सेवानिवृत आईएएस अधिकारी वेदप्रकाश ने पत्रकारों से चर्चा में कही.
श्री वेदप्रकाश ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि पतझड़ समाप्त होने को है. नव पल्लव और नव किसलय प्रस्फुटित होने को आतुर हैं. प्रकृति के विविध रंग हर सृजन का श्रृंगार करने के लिए तैयार हैं. ऐसे में सृष्टि का सृजन तो होना ही था! और फिर जब सब कुछ नया नया हो तो नव वर्ष का शुभारम्भ भी तो होगा. तो सनातन भारतवर्ष का नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा से आरम्भ होता है. आईए स्वागत करें चैत्र प्रतिपदा पर नव वर्ष का. सदियों से अनेक विदेशी आक्रांताओं ने अंखड भारत की सनातन संस्कृति पर आघात किया. सनातन धर्म के गौरव की रक्षा करने में असंख्य देश भक्तों ने अपने जीवन बलिदान किया है. हमें उन बलिदानों को व्यर्थ नहीं होने देना है. उन्होने आगे कहा कि सनातन धर्म की रक्षा का संबंध सृष्टि की रक्षा से भी है. चैत्र मास की प्रतिपदा में ही सृष्टि की रचना हुई और इसी शुभ दिन से हमारा नव वर्ष शुरू होता है. आइए सृष्टि धर्म यानि सनातन धर्म के रक्षार्थ एक सार्थक कदम बढ़ाए, चैत्र प्रतिपदा से नव वर्ष मनाऐं . ब्रम्ह पुराण के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रम्हा ने समय और सृष्टि की रचना चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही की थी. इस कारण ब्रम्हाण्ड का नव-वर्ष चैत्र मास की प्रतिपदा से ही मनाए जाने की सनातन परम्परा रही है. सनातन और हिंदू धर्म एक दूसरे के पर्याय है. इसलिए हिंदू पंचांग में काल गणना भी प्रतिपदा से ही की जाती है. वैज्ञानिक दृष्टि से भी चैत्र प्रतिपदा का महत्व है.
चैत्र मास में पृथ्वी का केंद्र एक और तनिक झुक जाता है. परिणाम स्वरूप उत्तरी गोलार्द्ध को सूर्य के प्रकाश का विकिरण बहुत अधिक मात्रा में मिलता है. इस मास में हमें गर्मी अधिक लगती है लेकिन समूची वसुंधरा एक नई ऊर्जा से भर उठती है. पूरी प्रकृति नयनाभिराम सौंदर्य से भर उठती है. आईए नवऊर्जस्वित सृष्टि की महिमा गाएँए चैत्र मास की प्रतिपदा से नव वर्ष मनाएं. हालांकि विश्व के सभी धर्मों एवं देशों में नव वर्ष मनाने की अलग अलग परम्परायें है. आशा और खुशी का भाव सभी परम्पराओं का मूल है. ईसाईयत और इस्लाम में अपने अपने पैग़म्बरों से जुड़ी महान घटनाओं की तिथियों से नव वर्ष मनाया जाता है. सनातन हिंदू धर्म दुनिया का एक मात्र धर्म है जो सृष्टि और प्रकृति की समग्रता को केंद्र में रखकर नव वर्ष का उत्सव मनाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार चैत्र मास में सृष्टि की रचना तो हुई ही थी. इस मास में समूची प्रकृति अपने अभिनव स्वरूप को भी प्राप्त करती है. अक्षय ऊर्जा के स्रोत सूर्य की विशेष स्थिति से उत्तरी गोलार्द्ध को सर्वोच्च समृद्धि की प्राप्ति होती है. विज्ञान की दृष्टि से यह समय चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है जिसकी शुभ तिथि ग्रेग्रेरियन पंचाग के अनुसार 22 मार्च को पड़ रही है. तो आइए हम अपना हिंदू नव संवत्सर क्षेत्र मास की प्रतिपदा से मनाकर अपना जीवन सुखमय बनाएं. श्री वेदप्रकाश ने चर्चा में यह भी बताया कि 22 मार्च को चैत्र मास की प्रतिपदा पर नववर्ष का स्वागत मां नर्मदा के उमाघाट पर भव्य कार्यक्रम के साथ किया जाएगा.
कार्यक्रम के मुख्य बिंदु-
-22 मार्च बुधवार को प्रात: 6 बजे उगते सूर्य को अध्र्य देना
-समवेत शंखनाद
-ब्राम्हणों के मुखारबिंदु स्वस्तिवाचन
-सांस्कृतिक संगीत
-मां नर्मदा जी की आरती
-प्रसाद वितरण
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-शहडोल से आए कारोबारी के जबलपुर में आटो चालक ने चोरी किए 50 हजार रुपए..!
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