जयपुर. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने दक्षिण राज्यों के हिंदू आध्यात्मिक गुरुओं तारीफ करते हुए कहा कि दक्षिणी राज्यों में हिंदू गुरुओं द्वारा की जाने वाली समाज सेवा मिशनरियों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा से कई गुना अधिक है. हालांकि, यह प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं है, लेकिन कथित बुद्धिजीवी वर्ग को समाजसेवा की बातें करते समय ईसाई मिशनरियों की तारीफ करने के साथ हिंदू आध्यात्मिक गुरुओं के बारे में भी बोलना चाहिए. दुनिया को पता चलना चाहिए कि हिंदू समाज के संत भी निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं.
जयपुर के निकट जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध राष्ट्रीय सेवा संगम के तीन दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में मोहन भागवत ने कहा कि देश में बुद्धिजीवी आमतौर पर हिंदू आध्यात्मिक गुरुओं के सेवा की चर्चा नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि मिशनरी संगठन दुनिया भर में विभिन्न संस्थान, स्कूल और अस्पताल चलाते हैं - यह सभी जानते हैं, लेकिन हिंदू साधु समुदाय क्या कर रहा है? यह कोई नहीं बताता है.
सेवा प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं
मोहन भागवत ने कहा कि ईसाई मिशनरियों से कई गुना अधिक तो देश के हिंदू आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा सेवा की जाती है. उन्होंने चेन्नई में एक हिंदू सेवा मेला आयोजित किया. वहां यह देखा गया कि आचार्यों, मुनियों और सन्यासियों द्वारा कन्नड़-भाषी, तेलुगु-भाषी, मलयालम-भाषी और तमिल-भाषी प्रांतों में की गई सेवा मिशनरियों द्वारा की गई सेवा से कई गुना अधिक है. लेकिन मैं किसी प्रतियोगिता के बारे में बात नहीं कर रहा हूं कि कौन किससे ज्यादा या किससे कम सेवा कर रहा है. यह सेवा का पैमाना नहीं हो सकता. सेवा ही सेवा है, सेवा प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं है. सेवा मनुष्य की मानवता की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है.
भागवत ने कहा कि जानवर भी संवेदनशील होते हैं, लेकिन संवेदनशीलता पर काम करना मानवीय गुण है, जिसे करुणा कहते हैं. समाज से पिछड़ेपन को मिटाने की जरूरत पर जोर देते हुए भागवत ने कहा कि हर कोई समान है. हम सभी समाज का हिस्सा हैं, हम सभी एक साथ समाज हैं. अगर हम एकजुट नहीं होंगे, तो हम अधूरे होंगे. उन्होंने कहा कि समाज में असमानता है, जिसकी जरूरत नहीं है. मानव शरीर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब पैर में दर्द होता है तो दर्द पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अन्य सभी अंग एक साथ (एक सपोर्ट सिस्टम के रूप में) काम करना शुरू कर देते हैं. इसी प्रकार सेवा भी इस प्रकार करनी चाहिए कि समाज का कोई वर्ग छूटे नहीं. उन्होंने कहा कि सेवा से स्वस्थ समाज बनता है, लेकिन उससे पहले व्यक्ति स्वस्थ होता है.
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जो अपने को हिंदू मानते हैं, वे हिंदू हैं, जिनके पूर्वज हिंदू थे, वे सब भी हिंदू हैं: मोहन भागवत
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