सभी तरह की समस्या का तोड़ है पंचमुखी हनुमान जी की साधना!

सभी तरह की समस्या का तोड़ है पंचमुखी हनुमान जी की साधना!

प्रेषित समय :19:46:14 PM / Mon, Apr 24th, 2023

पंचमुखी हनुमान जी  की साधना करने से मनुष्य के सभी तरह के कष्ट समाप्त होते है और वह सभी मुसीबतों से दूर होकर अपना जीवन सुख से व्यतीत कर सकता है !
लेकिन " पंचमुखी हनुमान जी " की साधना करना इतना आसान नहीं है क्योकि अगर आप सिर्फ हनुमान जी के पंचमुखी रूप की साधारण पूजा करते है तब तक तो ठीक है लेकिन जहाँ आपने किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए पंचमुखी हनुमान जी  की साधना करने का नियम बनाया है तो सर्वप्रथम यह समझ ले की कदम कदम पर आपकी परीक्षा होगी और कठिन से कठिन समस्या आपके सामने आने वाली है! 
उस वक़्त आपको बहुत समझदारी से और पूरी सूझ बुझ से काम लेना है और अपने आपको या "पंचमुखी हनुमान जी " कोसना या भला बुरा नहीं कहना है क्योकि अगर आप ऐसा सोचते भी है तो वह आपकी एक छोटी सी परीक्षा है जो स्वयं " पंचमुखी हनुमान जी " ले रहे है और वह यह देखना चाहते है की उनका भक्त बुरे वक़्त में अपना धीरज खो देता है या उस समय उस समस्या पर शान्ति से विचार करके समस्या को ख़तम कर सकता है या नहीं !
क्योकि हनुमान जी बड़ी से बड़ी मुसीबतो से सूझ बुझ और अपनी बुद्धि के कौशल से बहार निकल आते है तो वह भी यही चाहते है की उनका जो भी भक्त हो वह भी उनकी तरह ही हो और मुसीबतो से नहीं डरता हो !
आपको अगर किसी भी तरह की समस्या हो तो वह समस्या आप  पंचमुखी हनुमान जी  के रूप की तस्वीर या मूर्ति की साधारण पूजा से हमेशा हमेशा के लिए समाप्त कर सकते है !

पंचमुखी हनुमान
‘‘भूत पिशाच निकट नहीं आवै. महावीर जब नाम सुनावै।’’
भूत-प्रेत-पिशाच आदि निकृष्ट अशरीरी आत्माओं से मुक्ति के उपायों पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं इनसे संबंधित मंत्रों का एक बड़ा भाग हनुमान जी को ही समर्पित है. ऊपरी बाधा दूर करने वाले शाबर मन्त्रों से लेकर वैदिक मन्त्रों में हनुमान जी का नाम बार-बार आता है.
वैसे तो हनुमान जी के कई रूपों का वर्णन तंत्रशास्त्र में मिलता है जैसे – एकमुखी हनुमान, पंचमुखी हनुमान, सप्तमुखी हनुमान तथा एकादशमुखी हनुमान.
परंतु ऊपरी बाधा निवारण की दृष्टि से पंचमुखी हनुमान की उपासना चमत्कारिक और शीघ्रफलदायक मानी गई है.
पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप में वानर, सिंह, गरुड़, वराह तथा अश्व मुख सम्मिलित हैं और इनसे ये पाँचों मुख तंत्रशास्त्र की समस्त क्रियाओं यथा मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि के साथ-साथ सभी प्रकार की ऊपरी बाधाओं को दूर करने में सिद्ध माने गए हैं.
किसी भी प्रकार की ऊपरी बाधा होने की शंका होने पर पंचमुखी हनुमान यन्त्र तथा पंचमुखी हनुमान लाॅकेट को प्राणप्रतिष्ठित कर धारण करने से समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है.
प्राण-प्रतिष्ठा: पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र, यंत्र तथा लाॅकेट का पंचोपचार पूजन करें तथा उसके बाद समुचित विधि द्वारा उपरोक्त सामग्री को प्राणप्रतिष्ठित कर लें. प्राणप्रतिष्ठित यंत्र को पूजन स्थान पर रखें तथा लाॅकेट को धारण करें.
उपरोक्त अनुष्ठान को किसी भी मंगलवार के दिन किया जा सकता है. उपरोक्त विधि अपने चमत्कारपूर्ण प्रभाव तथा अचूकता के लिए तंत्रशास्त्र में दीर्घकाल से प्रतिष्ठित है. श्रद्धापूर्वक किया गया उपरोक्त अनुष्ठान हर प्रकार की ऊपरी बाधा से मुक्ति प्रदान करता है.
2…श्री हनुमान जी के चमत्कारी बारह नाम
हनुमानजी के बारह नामों की महिमा
हनुमान जी के बारह नाम का स्मरण करने से ना सिर्फ उम्र में वृद्धि होती है बल्कि समस्त सांसारिक
सुखों की प्राप्ति भी होती है. बारह नामों का निरंतर जप करने वाले व्यक्तिकी श्री हनुमानजी महाराज दसों दिशाओं एवं आकाश-पाताल से रक्षा करते हैं.प्रस्तुत है केसरीनंदन बजरंग बली के 12 चमत्कारी और असरकारी नाम :
हनुमान जी के 12 असरकारी नाम
1 ॐ हनुमान
2 ॐ अंजनी सुत
3 ॐ वायु पुत्र
4 ॐ महाबल
5 ॐ रामेष्ठ
6 ॐ फाल्गुण सखा
7 ॐ पिंगाक्ष
8 ॐ अमित विक्रम
9 ॐ उदधिक्रमण
10 ॐ सीता शोक विनाशन
11 ॐ लक्ष्मण प्राण दाता
12 ॐ दशग्रीव दर्पहा
नाम की अलौकिक महिमा
- प्रात: काल सो कर उठते ही जिस अवस्था में भी हो बारह नामों को 11 बार लेनेवाला व्यक्ति दीर्घायु होता है.
- नित्य नियम के समय नाम लेने से इष्ट की प्राप्ति होती है.
- दोपहर में नाम लेनेवाला व्यक्ति धनवान होता है. दोपहर संध्या के समय नाम लेनेवाला व्यक्ति पारिवारिक सुखों से तृप्त होता है.
- रात्रि को सोते समय नाम लेनेवाले व्यक्ति की शत्रु से जीत होती है.
- उपरोक्त समय के अतिरिक्त इन बारह नामों का निरंतर जप करने वाले व्यक्तिकी श्री हनुमानजी महाराज दसों दिशाओं एवं आकाश पाताल से रक्षा करते हैं.
- लाल स्याही से मंगलवार को भोजपत्र पर ये बारह नाम लिखकर मंगलवार के दिनही ताबीज बांधने से कभी ‍सिरदर्द नहीं होता. गले या बाजू में तांबे काताबीज ज्यादा उत्तम है. भोजपत्र पर लिखने के काम आनेवाला पेन नया होनाचाहिए.
3…श्रीहनुमान् माला मन्त्र
श्री हनुमान जी के सम्मुख इस मंत्र के 51 पाठ करें और भोजपत्र पर इस मंत्रको लिखकर पास में रख लें तो सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है .

ॐ वज्र-काय वज्र-तुण्ड कपिल-पिंगल ऊर्ध्व-केश महावीर सु-रक्त-मुखतडिज्जिह्व महा-रौद्र दंष्ट्रोत्कट कह-कह करालिने महा-दृढ़-प्रहारिनलंकेश्वर-वधाय महा-सेतु-बंध-महा-शैल-प्रवाह-गगने-चर एह्येहिं भगवन्महा-बल-पराक्रम भैरवाज्ञापय एह्येहि महारौद्र दीर्घ-पुच्छेन वेष्टय वैरिणं भंजय भंजय हुँ फट् ।।”
श्री हनुमान जी सदा सहाय .
।। जय श्री राम ।।
।। जय जय हनुमान ।।..
4…हनुमान बजरंग बाण
इस संसार में अगर हम भगवान के अस्तित्व कोमानते हैं तो इसके साथ हमें बुरी आत्माओं का डर भी होता है. यही डर हमेंकई बार इतना सताने लगता है कि हमें जिंदगी से भी डर लगने लगता है. लेकिनकहते हैं ना हर दर्द की एक दवा होती है, उसी तरह आपके डर की भी दवा है. डर और भय को दूर भगाने का सबसे अच्छा उपाय है बजरंग बाण.
भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिय बजरंगबाण केअमोघास्त्र का विलक्षण प्रयोग किया जाता है. कहा जाता है कि बजरंग बाण कापाठ करने से बड़ी से बड़ी परेशानी भी दूर हो जाती है.
बजरंग बाण (Hanuman Bajrang Baan) का जप और पाठ मंगलवार या शनिवार के दिन शुरुकरें.इस दिन यथाशक्ति हनुमान कृपा और शनिदेव की प्रसन्नता के लिए व्रत भीरख सकते हैं. बजरंग बाण (Hanuman Bajrang Baan) के नित्य पाठ से व्यक्ति केतन, मन और धन से जुड़े सभी कलह और संताप दूर होते हैं और भौतिक सुखप्राप्त होते हैं.
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान.
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी. सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै. आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा. सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका. मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा. सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा. अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा. लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई. जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी. कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता. आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर. सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले. वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ. महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो. बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा. ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै. राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा. दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा. नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं. तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं. अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता. शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक. भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर. अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी. राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ. ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा. सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई. पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता. ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल. ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ. सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी. हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा. कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ. मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ. अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा. धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना. जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई. जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे. जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता. जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा. पावत पार नहीं लवलेषा।।
केला, बिजौरा, आम्रफलों से एक हजार आहुतियाँ दे और 22 ब्रह्मचारी ब्राह्मणों कोभोजन करावे . ऐसा करने से महाभूत, विष, चोरों आदि के उपद्रव नष्ट हो जातेहैं . इतना ही नहीं विद्वेष करने वाले, ग्रह और दानव भी ऐसा करने नष्ट होजाते है ॥१४-१६॥
१०८ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित जल विष को नष्ट करदेता है . जो व्यक्ति रात्रि में १० दिन पर्यन्त ८०० की संख्या में इसमन्त्र का जप करत है उसका राजभय तथा शत्रुभय से छुटकारा हो जाता है .अभिचार जन्य तथा भूतजन्य ज्वर में इस मन्त्र से अभिमन्त्रित जल या भस्मद्वारा क्रोधपूर्वक ज्वरग्रस्त रोगी को प्रताडित करना चाहिए . ऐसा करने सेवह तीन दिन के भीतर ज्वरमुक्त हो कर सुखी हो जाता है . इस मन्त्र सेअभिमन्त्रित औषधि खाने से निश्चित रुप से आरोग्य की प्राप्ति हो जाती है॥१६-१९॥
इस मन्त्र से अभिमन्त्रित जल पीकर तथा इस मन्त्र को जपतेहुये अपने शरीर में भस्म लगाकर जो व्यक्ति इस मन्त्र का जप करते हुयेरणभूमि में जाता हैं,युद्ध में नाना प्रकार के शस्त्र समुदाय उस को कोईबाधा नहीं पहुँचा सकते ॥२०॥
चाहे शस्त्र का घाव हो अथवा अन्य प्रकारका घाव हो, शोध अथवा लूता आदि चर्मरोग एवं फोडे फुन्सियाँ इस मन्त्र से ३बार अभिमन्त्रित भस्म के लगाने से शीघ्र ही सूख जाती हैं ॥२१॥
अपनीइन्द्रियों को वश में कर साधक को सूर्यास्त से ले कर सूर्योदय पर्यन्त ७दिन कील एवं भस्म ले कर इस मन्त्र का जप करन चाहिए . फिर शत्रुओं को बिनाजनाये उस भस्म को एवं कीलों को शत्रु के दरवाजे पर गाड दे तो ऐसा करने सेशत्रु परस्पर झगड कर शीघ्र ही स्वयं भाग जाते हैं ॥२२-२३॥
अपने शरीरपर लगाये गये चन्दन के साथ इस मन्त्र से अभिमन्त्रित जल एवं भस्म कोखाद्यान्न के साथ मिलाकर खिलाने से खाने वाला व्यक्ति दास हो जाता है .इतना ही नहीं ऐसा करने से क्रूर जानवर भी वश में हो जाते हैं ॥२४-२५॥
करञ्जवृक्ष के ईशानकोण की जड ले कर उससे हनुमान् जी की प्रतिमा निर्माण कराकरप्राणप्रतिष्ठा कर सिन्दूर से लेपकर इस मन्त्र का जप करते हुये उसे घर केदरवाजे पर गाड देनी चाहिए . ऐसा करने से उस घर में भूत, अभिचार, चोर, अग्नि, विष, रोग, तथा नृप जन्य उपद्रव कभी भी नहीं होते और घर में प्रतिदिनधन, पुत्रादि की अभिवृद्धि होती हैं ॥२५-२८॥
मारण प्रयोग – रात्रिमें श्मशान भूमि की मिट्टी या भस्म से शत्रु की प्रतिमा बनाकर हृदय स्थानमें उसक नाम लिखना चाहिए . फिर उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर, मन्त्र के बादशत्रु का नाम, फिर छिन्धि भिन्धि एवं मारय लगाकर उसका जप करते हुये शस्त्रद्वारा उसे टुकडे -टुकडे कर देना चाहिए . फिर होठों को दाँतों के नीचे दबाकर हथेलियों से उसे मसल देना चाहिए . तदनन्तर उसे वहीं छोडकर अपन घर आ जानाचाहिए . ७ दिन तक ऐसा लगातार करते रहने से भगवान् शिव द्वारा रक्षित भीशत्रु मर जाता है ॥२९-३२॥
श्मशान स्थान में अपने केशों को खोलकरअर्धचन्द्राकृति वाले कुण्ड में अथवा स्थाण्डिल (वेदी) पर राई नमक मिश्रितधतूर के फल, उसके पुष्प, कौवा उल्लू एवं गीध के नाखून, रोम और पंखों से तथाविष से लिसोडा एवं बहेडा की समिधा में दक्षिणाभिमुख हो रात में एक सप्ताहपर्यन्त निरन्तर होम करने से उद्धत शत्रु भी मर जाता है ॥३२-३५॥
इसकेबाद बेताल सिद्धि का प्रयोग कहते हैं – श्मशान में रात्रि के समय लगातारतीन दिन तक प्रतिदिन ६०० की संख्या में इस मूल मन्त्र का जप करते रहने सेबेताल खडा हो कर साधक का दास बन जाता है और भविष्य में होने वाले शुभ अथवाघटनाओम को तथा अन्य प्रकार की शंकाओं की भी साफ साफ कह देता है ॥३५-३६॥
अब ऊपरप्रतिज्ञात माला मन्त्र का उद्धार कहते हैं – प्रथम प्रणव (ॐ), वाग्‍ (ऐं), हरिप्रिया (श्रीं), फिर दीर्घत्रय सहित माया (ह्रां ह्रीं ह्रूं), फिरपूर्वोक्त पाँच कूट (ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं) तथातार (ॐ), फिर ‘नमो हनुमते प्रकट’ के बाद ‘पराक्रम आक्रान्तदिङ्‌मण्डलयशोवि’ फिर ‘तान’ कहना चाहिए, फिर ‘ध्वलीकृत’ पद के बाद ‘जगत्त्रितय और ‘वज्र’ कहना चाहिए . फिर ‘देहज्वलदग्निसूर्यकोटि’ के बाद ‘समप्रभतनूरुहरुद्रवतार’, इतना पद कहना चाहिए .
 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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