-प्रदीप लक्ष्मीनारायण द्विवेदी
* धन प्राप्ति के लिए धन की देवी श्री लक्ष्मी की नियमित पूजा-उपासना करें.
* पारिवारिक धन-सुख-सफलता के लिए वैभव लक्ष्मी व्रत उत्तम है.
* धन की देवी लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए वैभव लक्ष्मी व्रत विशेष महत्व है. यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है.
* सौभाग्यवती महिलाएं यह व्रत करके अपने परिवार की आर्थिक उन्नति में योगदान कर सकती हैं.
* शुक्रवार को प्रात: पवित्र स्नान के बाद श्रीयंत्र और देवी लक्ष्मी के विविध स्वरूप के दर्शन करने चाहिए.
* दिन भर उपवास करके यथासम्भव देवी लक्ष्मी के नाम का जाप करना चाहिए.
* सांयकाल वैभव लक्ष्मी की विधिवत पूजा-कथा और प्रसाद वितरण के बाद भोजन ग्रहण करना चाहिए.
* वैभव लक्ष्मी व्रत की अनेक कथाएं हैं, विविध कथाएं देवी की प्रसन्नता के परिणाम को दर्शाती हैं, इसलिए केवल कथा सुनने को ही पूजा नहीं माने, सच्चे मन से देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें.
* मानता के अनुरूप 11 या 21 शुक्रवार पूरे होने पर सात सौभाग्यशाली महिलाओं को भोजन करवा कर व्रत का विधिवत उद्यापन करना चाहिए.
* यदि किसी शुक्रवार को व्रत सम्भव नहीं हो तो देवी लक्ष्मी से क्षमा याचना करते हुए अगले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए. लेकिन उद्यापन मानता के अनुरूप कुल 11 या 21 शुक्रवार के व्रत पूरे होने पर ही करना चाहिए.
* एक बार उद्यापन होने के बाद फिर से व्रत लिया जा सकता है.
* शुक्र से संबंधित व्यवसाय करने वालों को नियमित रूप से देवी लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए.
* भौतिक सुख और सजावट से संबंधित कार्य, फिल्म, टीवी, मनोरंजन, वाहन, सुगंधित पदार्थ, तैयार कपड़े, होटल, डेकोरेशन, जेवर, डिजाईनिंग आदि शुक्र से प्रभावित व्यवसाय हैं.
* इन व्यवसायों में सफलता के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा-उपासना लाभदायक है.
* प्रतिदिन प्रात:काल पवित्र स्नान के बाद व्यवसाय में सफलता की कामना के साथ देवी लक्ष्मी की आराधना करें.
* पत्नी द्वारा पति के कार्य-व्यवसाय में धनलाभ की कामना के साथ शुक्रवार का व्रत और लक्ष्मी पूजन श्रेष्ठ फल प्रदान करता है.
श्रीलक्ष्मी चालीसा
॥ दोहा ॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा,करो हृदय में वास.
मनोकामना सिद्ध करि,परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा ॥
यही मोर अरदास,हाथ जोड़ विनती करुं.
सब विधि करौ सुवास,जय जननि जगदम्बिका.
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही.ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी.सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा.सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी.विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी.दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी.कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी.सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी.जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता.संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो.चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी.सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा.रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा.लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं.सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी.विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी.कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई.मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई.पूजहिं विविध भाँति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई.जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई.मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि.त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै.ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै.पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु सम्पति हीना.अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै.शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा.ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै.कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा.तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही.उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई.लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा.होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी.सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं.तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै.संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी.दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी.तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में.सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण.कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई.ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥
॥ दोहा ॥
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी,हरो वेगि सब त्रास.
जयति जयति जय लक्ष्मी,करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित,विनय करत कर जोर.
मातु लक्ष्मी दास पर,करहु दया की कोर॥
श्री त्रिपुरा सुंदरी पंचांग- 28 अप्रैल 2023
* बगलामुखी जयंती, मासिक दुर्गाष्टमी
* शक संवत 1945, विक्रम संवत 2080, मास- पूर्णिमांत वैशाख, मास- अमांत वैशाख
* तिथि अष्टमी- 16:03:06 तक, नक्षत्र पुष्य- 09:52:57 तक, करण बव- 16:03:06 तक, बालव- 29:14:43 तक, पक्ष शुक्ल, योग शूल- 09:37:37 तक, वार शुक्रवार
* शुभ मुहूर्त अभिजीत- 12:04 से 12:56
* राहुकाल- 10:53 से 12:30
* दिशाशूल- पश्चिम
* ताराबल- अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, उत्तराषाढ़ा, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती
* चन्द्र राशि कर्क
* उत्तम चन्द्रबल- वृषभ, कर्क, कन्या, तुला, मकर, कुम्भ
* धनु राशि में जन्में लोगो के लिए अष्टम चन्द्र
शुक्रवार का चौघडिय़ा-
दिन का चौघडिय़ा रात्रि का चौघडिय़ा
पहला- चर पहला- रोग
दूसरा- लाभ दूसरा- काल
तीसरा- अमृत तीसरा- लाभ
चौथा- काल चौथा- उद्वेग
पांचवां- शुभ पांचवां- शुभ
छठा- रोग छठा- अमृत
सातवां- उद्वेग सातवां- चर
आठवां- चर आठवां- रोग
* चौघडिय़ा का उपयोग कोई नया कार्य शुरू करने के लिए शुभ समय देखने के लिए किया जाता है.
* दिन का चौघडिय़ा- अपने शहर में सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच के समय को बराबर आठ भागों में बांट लें और हर भाग का चौघडिय़ा देखें.
* रात का चौघडिय़ा- अपने शहर में सूर्यास्त से अगले दिन सूर्योदय के बीच के समय को बराबर आठ भागों में बांट लें और हर भाग का चौघडिय़ा देखें.
* अमृत, शुभ, लाभ और चर, इन चार चौघडिय़ाओं को अच्छा माना जाता है और शेष तीन चौघडिय़ाओं- रोग, काल और उद्वेग, को उपयुक्त नहीं माना जाता है.
* यहां दी जा रही जानकारियां संदर्भ हेतु हैं, स्थानीय परंपराओं और धर्मगुरु-ज्योतिर्विद् के निर्देशानुसार इनका उपयोग कर सकते हैं.
* अपने ज्ञान के प्रदर्शन एवं दूसरे के ज्ञान की परीक्षा में समय व्यर्थ न गंवाएं क्योंकि ज्ञान अनंत है और जीवन का अंत है!
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