हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान श्री राम की अर्धांगिनी माता सीता का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन हुआ था जिसे सीता नवमी के नाम से जाता है. मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं प्रभु श्री राम-माता सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे सोलह महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का शुभारंभ 28 अप्रैल 2023 को शाम 04 बजकर 01 मिनट पर होगा और इसका समापन 29 अप्रैल को शाम 06 बजकर 22 मिनट पर हो जाएगा. सीता नवमी पर्व 29 अप्रैल 2023, शनिवार के दिन मनाया जाएगा. पंचांग के अनुसार इस दिन रवि योग का निर्माण हो रहा है, जो दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से अगले दिन सुबह 05 बजकर 42 मिनट तक रहेगा.
धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन सीता का प्राकट्य हुआ था. इस पर्व को "जानकी नवमी" भी कहते हैं. शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ. जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को भी 'सीता' कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम 'सीता' रखा गया. इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं. मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत रखता व श्रीराम सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है. अत: इस दिन व्रत करने का विशेष महत्त्व है. सीता जन्म कथा सीता के विषय में रामायण और अन्य ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसके अनुसार मिथिला के राजा जनक के राज में कई वर्षों से वर्षा नहीं हो रही थी. इससे चिंतित होकर जनक ने जब ऋषियों से विचार किया, तब ऋषियों ने सलाह दी कि महाराज स्वयं खेत में हल चलाएँ तो इन्द्र की कृपा हो सकती है. मान्यता है कि बिहार स्थित सीममढ़ी का पुनौरा नामक गाँव ही वह स्थान है, जहाँ राजा जनक ने हल चलाया था. हल चलाते समय हल एक धातु से टकराकर अटक गया. जनक ने उस स्थान की खुदाई करने का आदेश दिया. इस स्थान से एक कलश निकला, जिसमें एक सुंदर कन्या थी. राजा जनक निःसंतान थे. इन्होंने कन्या को ईश्वर की कृपा मानकर पुत्री बना लिया. हल का फल जिसे 'सीत' कहते हैं, उससे टकराने के कारण कालश से कन्या बाहर आयी थी, इसलिए कन्या का नाम 'सीता' रखा गया था.
'वाल्मीकि रामायण' के अनुसार
श्रीराम के जन्म के सात वर्ष, एक माह बाद वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को जनक द्वारा खेत में हल की नोक (सीत) के स्पर्श से एक कन्या मिली, जिसे उन्होंने सीता नाम दिया. जनक दुलारी होने से 'जानकी', मिथिलावासी होने से 'मिथिलेश' कुमारी नाम भी उन्हें मिले. उपनिषदों, वैदिक वाङ्मय में उनकी अलौकिकता व महिमा का उल्लेख है, जहाँ उन्हें शक्तिस्वरूपा कहा गया है. ऋग्वेद में वह असुर संहारिणी, कल्याणकारी, सीतोपनिषद में मूल प्रकृति, विष्णु सान्निध्या, रामतापनीयोपनिषद में आनन्द दायिनी, आदिशक्ति, स्थिति, उत्पत्ति, संहारकारिणी, आर्ष ग्रंथों में सर्ववेदमयी, देवमयी, लोकमयी तथा इच्छा, क्रिया, ज्ञान की संगमन हैं. गोस्वामी तुलसीदास ने उन्हें सर्वक्लेशहारिणी, उद्भव, स्थिति, संहारकारिणी, राम वल्लभा कहा है. 'पद्मपुराण' उन्हें जगतमाता, अध्यात्म रामायण एकमात्र सत्य, योगमाया का साक्षात् स्वरूप और महारामायण समस्त शक्तियों की स्रोत तथा मुक्तिदायिनी कह उनकी आराधना करता है. 'रामतापनीयोपनिषद' का वर्णन 'रामतापनीयोपनिषद' में सीता को जगद की आनन्द दायिनी, सृष्टि, के उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार की अधिष्ठात्री कहा गया है- श्रीराम सांनिध्यवशां-ज्जगदानन्ददायिनी. उत्पत्ति स्थिति संहारकारिणीं सर्वदेहिनम्॥
'वाल्मीकि रामायण' के अनुसार
सीता राम से सात वर्ष छोटी थीं. ममभत्र्ता महातेजा वयसापंचविंशक:। अष्टादशा हि वर्षाणि मम जन्मति गण्यते॥
'रामायण' तथा 'रामचरितमानस' के बालकाण्ड में सीता के उद्भवकारिणी रूप का दर्शन होता है एवं उनके विवाह तक सम्पूर्ण आकर्षण सीता में समाहित हैं, जहाँ सम्पूर्ण क्रिया उनके ऐश्वर्य को रूपायित करती है. अयोध्याकाण्ड से अरण्यकाण्ड तक वह स्थितिकारिणी हैं, जिसमें वह करुणा-क्षमा की मूर्ति हैं. वह कालरात्रि बन निशाचर कुल में प्रविष्ट हो उनके विनाश का मूल बनती हैं. यद्यपि तुलसीदास ने सीताजी के मात्र कन्या तथा पत्नी रूपों को दर्शाया है, तथापि वाल्मीकि ने उनके मातृस्वरूप को भी प्रदर्शित कर उनमें वात्सल्य एवं स्नेह को भी दिखलाया है. सीता जयंती सीताजी की जयंती वैशाख शुक्ल नवमी को मनायी जाती है, किंतु भारत के कुछ भाग में इसे फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को मनाते हैं. रामायण के अनुसार वह वैशाख में अवतरित हुईं थीं, किन्तु 'निर्णयसिन्धु' के 'कल्पतरु' ग्रंथानुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को. अत: दोनों ही तिथियाँ उनकी जयंती हेतु मान्य हैं.
मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम तथा माता जानकी के अनन्य भक्त तुलसीदास न 'रामचरितमानस' के बालकांड के प्रारंभिक श्लोक में सीता जी ब्रह्म की तीन क्रियाओं उद्भव, स्थिति, संहार, की संचालिका तथा आद्याशक्ति कहकर उनकी वंदना की है- उद्भव स्थिति संहारकारिणीं हारिणीम्. सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामबल्लभाम्॥
अद्भुत रामायण का उल्लेख अनुसार
श्रीराम तथा सीता इस घटना से ज्ञात होता है कि सीता राजा जनक की अपनी पुत्री नहीं थीं. धरती के अंदर छुपे कलश से प्राप्त होने के कारण सीता खुद को पृथ्वी की पुत्री मानती थीं. लेकिन वास्तव में सीता के पिता कौन थे और कलश में सीता कैसे आयीं, इसका उल्लेख अलग-अलग भाषाओं में लिखे गये रामायण और कथाओं से प्राप्त होता है. 'अद्भुत रामायण' में उल्लेख है कि रावण कहता है कि- "जब मैं भूलवश अपनी पुत्री से प्रणय की इच्छा करूँ, तब वही मेरी मृत्यु का कारण बने।" रावण के इस कथन से ज्ञात होता है कि सीता रावण की पुत्री थीं. 'अद्भुत रामायण' में उल्लेख है कि गृत्स्मद नामक ब्राह्मण लक्ष्मी को पुत्री रूप में पाने की कामना से प्रतिदिन एक कलश में कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूंदें डालता था. एक दिन जब ब्राह्मण कहीं बाहर गया था, तब रावण इनकी कुटिया में आया और यहाँ मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया. यह कलश लाकर रावण ने मंदोदरी को सौंप दिया. रावण ने कहा कि यह तेज विष है. इसे छुपाकर रख दो. मंदोदरी रावण की उपेक्षा से दुःखी थी. एक दिन जब रावण बाहर गया था, तब मौका देखकर मंदोदरी ने कलश में रखा रक्त पी लिया. इसके पीने से मंदोदरी गर्भवती हो गयी.
पूजन विधि
जिस प्रकार हिन्दू समाज में 'राम नवमी' का महात्म्य है, उसी प्रकार 'जानकी नवमी' या 'सीता नवमी' का भी. इस पावन पर्व पर जो व्रत रखता है तथा भगवान रामचन्द्र जी सहित भगवती सीता का अपनी शक्ति के अनुसार भक्तिभाव पूर्वक विधि-विधान से सोत्साह पूजन वन्दन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, महाषोडश दान का फल, अखिलतीर्थ भ्रमण का फल और सर्वभूत दया का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है. 'सीता नवमी' पर व्रत एवं पूजन हेतु अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ होकर शुद्ध भूमि पर सुन्दर मण्डप बनायें. यह मण्डप सौलह, आठ अथवा चार स्तम्भों का होना चाहिए. मण्डप के मध्य में सुन्दर आसन रखकर भगवती सीता एवं भगवान श्रीराम की स्थापना करें. पूजन के लिए स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, काठ एवं मिट्टी इनमें से सामर्थ्य अनुसार किसी एक वस्तु से बनी हुई प्रतिमा की स्थापना की जा सकती है. मूर्ति के अभाव में चित्र द्वारा भी पूजन किया जा सकता है. नवमी के दिन स्नान आदि के पश्चात् जानकी-राम का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए. 'श्री रामाय नमः' तथा 'श्री सीतायै नमः' मूल मंत्र से प्राणायाम करना चाहिए. 'श्री जानकी रामाभ्यां नमः' मंत्र द्वारा आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृत स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, सिन्दूर तथा धूप-दीप एवं नैवेद्य आदि उपचारों द्वारा श्रीराम-जानकी का पूजन व आरती करनी चाहिए. दशमी के दिन फिर विधिपूर्वक भगवती सीता-राम की पूजा-अर्चना के बाद मण्डप का विसर्जन कर देना चाहिए. इस प्रकार श्रद्धा व भक्ति से पूजन करने वाले पर भगवती सीता व भगवान राम की कृपा प्राप्ति होती है.
पूजन विधि और मंत्र-
पूजन विधि :
1. सीता नवमी के दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें.
2. एक लकड़ी के पटिये पर पीला वस्त्र बिछाकर माता सीता की श्रीराम सहित मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें.
3. फिर पंचोपचार पूजा करें अर्थात दूध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य अर्पित करके माता सीता की राजा जनक और सुनयना के साथ पूजा करें.
गन्धं पुष्पं तथा धूपं दीपं नैवेद्यमेव च.
अखंडफलमासाद्य कैवल्यं लभते धु्रवम्.
4. इसके बाद नैवेद्य अर्पित करने के बाद आरती या स्तुति गान करें.
5. तत्पश्चात प्रसाद वितरण करें.
6. इसके बाद यथाशक्ति दान का संकल्प लेकर आप चाहें तो मिट्टी के बर्तन में धान, जल या अन्न भरकर दान कर सकते हैं.
7. इस दिन पूरे समय माता सीता के मंगलमय नाम 'श्री सीतायै नमः' और 'श्रीसीता-रामाय नमः' का उच्चारण करें.
माता सीता के मंत्र :
- ॐ जानकीवल्लभाय नमः
- श्री सीतायै नम:।
- 'श्रीसीता-रामाय नम:'
- श्रीरामचन्द्राय नम:।
- श्री रामाय नम:।
- ॐ जानकी रामाभ्यां नमः.
इस दिन षोडशोपचार पूजन भी कर सकते हैं, जिसमें 16 तरह की पूजन सामग्री होती है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-माता कात्यायनी के पूजन से भक्तों के भीतर एक अद्भुत शक्ति का संचार होता
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