चैत्र नवरात्रि का सभी चारों नवरात्रों में विशेष महत्व, घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि

चैत्र नवरात्रि का सभी चारों नवरात्रों में विशेष महत्व, घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि

प्रेषित समय :19:21:17 PM / Tue, Mar 21st, 2023

22 मार्च 2023 बुधवार से नवरात्रि प्रारंभ. नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है . यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है . प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए . सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है. 
 घट स्थापना शुभ मुहूर्त:
*मार्च 22 सुबह 06:42 से 07:55 तक
*अवधि - 01 घण्टा 13 मिनट्स

चैत्र नवरात्रि के दिन घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि 

चैत्र नवरात्रि सभी चारों नवरात्रों में विशेष महत्व रखता है. आमतौर पर साल में चार चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ नवरात्र माने गए हैं.
जिसमें चैत्र नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है
क्योंकि भारतीय नववर्ष चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से ही प्रारंभ होती है.
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि  बुधवार ,22 - मार्च से लेकर गुरुवार ,30 -मार्च  तक रहेगी.
नवरात्रि के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है.
चैत्र नवरात्रि महत्व  माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रुप हैं.
हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है. माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है. इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है. कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए. पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है. कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है. और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है. इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है. जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है. माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है.
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है. कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है.
चैत्र नवरात्रि 2023 की तिथियां
चैत्र नवरात्रि  घटस्थापना - 06-16 से 07-30 - अवधि  01 घण्टा 14 मिनट्स
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - 21 ,मार्च , 2023 को 22-52 
प्रतिपदा तिथि समाप्त - 22, मार्च , 2023 को 20-20 पी एम बजे
22 मार्च 2023, बुधवार - चैत्र नवरात्रि प्रारंभ,घटस्थापना
23 मार्च 2023, गुरुवार - चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की
24 मार्च 2023, शुक्रवार - चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की
25 मार्च 2023, शनिवार - चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा
26 मार्च 2023,  रविवार - चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा की
27 मार्च 2023, सोमवार - चैत्र नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा
28 मार्च 2023, मंगलवार - चैत्र नवरात्रि का सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा
29 मार्च 2023, बुधवार - चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा
30 मार्च 2023, गुरुवार - चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन में मां सिद्धिदात्री की पूजा
नोट ऊपर दिया गया चौघड़िया मुहूर्त समय नागपुर के स्थानीय सूर्योदय अनुसार है 
कलश - घट स्थापना विधि
सर्व प्रथम शुद्धि एवं आचमन
आसनी पर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति केसम्मुख बैठ जाएं ( बिना आसन ,चलते-फिरते, पैर फैलाकर पूजन करना निषेध है )| इसके बाद अपनेआपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें -
"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा. य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बारकुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें -
ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवायनम:, ॐ गोविन्दाय नम:|
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता.
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
इसके पश्चात अनामिका उंगली से अपने ललाट पर चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा.
द्वितीय स्थान चयन
नवरात्रि में कलश - घट स्थापना के लिए सर्वप्रथम प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत होने के बाद स्नान करके, नव वस्त्र अथवा स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही विधिपूर्वक पूजा आरम्भ करनी चाहिए. प्रथम पूजा के दिन मुहूर्त (सूर्योदय के साथ अथवा द्विस्वभाव लग्न में कलश स्थापना करना चाहिए.
कलश स्थापना के लिए अपने घर के उस स्थान को चुनना चाहिए जो पवित्र स्थान हो अर्थात घर में मंदिर के सामने या निकट या मंदिर के पास. यदि इस स्थान में पूजा करने में दिक्कत हो तो घर में ही ईशान कोण अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में, एक स्थान का चयन कर ले तथा उसे गंगा जल से शुद्ध कर ले.
जौ पात्र का प्रयोग
सर्वप्रथम जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लेना चाहिए . इस पात्र में मिट्टी की एक अथवा दो परत बिछा ले . इसके बाद जौ बिछा लेना चाहिए. इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं. अब पुनः एक परत जौ की बिछा ले . जौ को इस तरह चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे पूरी तरह से न दबे. इसके ऊपर पुनः मिट्टी की एक परत बिछाएं.
कलश स्थापना
पुनः कलश में रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गले में तीन धागावाली मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख ले. कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से अष्टदलकमल बनाकर निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करना चाहिए.
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री.
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।
कलश स्थापन मंत्र
ॐ आ जिघ्न कलशं मह्यं त्वा विशंतिवन्दवः.
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नह सहत्रम् धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।
पुनः इस मंत्रोच्चारण के बाद कलश में गंगाजल मिला हुआ जल छोड़े उसके बाद क्रमशः चन्दन, सर्वौषधि(मुरा,चम्पक, मुस्ता, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, सठी) दूब, पवित्री, सप्तमृत्तिका, सुपारी, पञ्चरत्न, द्रव्य कलश में अर्पित करे. पुनःपंचपल्लव(बरगद,गूलर,पीपल,पाकड़,आम) कलश के मुख पर रखें.अनन्तर कलश को वस्त्र से अलंकृत करें. तत्पश्चात चावल से भरे पूर्णपात्र को कलश के मुख पर स्थापित करें.
कलश पर नारियल की स्थापना
इसके बाद नारियल पर लाल कपडा लपेट ले उसके बाद मोली लपेट दें. अब नारियल को कलश पर रख दे . नारियल के सम्बन्ध में शास्त्रों में कहा गया है:
“अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै.
प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”।
अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है .नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं. पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है. इसलिए नारियल की स्थापना के समय हमेशा इस बात का ध्यान रखनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे. ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है.
माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए.
नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन एवं पूजन इस प्रकार करें
आरती के बाद माँ को शाष्टांग प्रणाम कर प्रसाद को बांट दें. भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.
अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.
नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. तथा दुर्गा जी के १०८ नामों को मंत्र रूप में उसका अधिकाधिक जप करें.
विशेष
यह पूजन विधि जिन साधको को वैदिक मंत्रों का ज्ञान नही है अथवा जिनके पास पूजा के लिये उपयुक्त समय नही है उनकी भावनाओं एवं यहाँ शब्द सीमा को ध्यान में रखकर बनाई गई है विस्तृत वैदिक मंत्रों से पूजन विधि जिसे आवश्यकता हो उसे व्यक्तिगत रूप से बतायी जाएगी.
नवरा‍त्रि की कथा
नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें. हिन्दू धर्मानुसार यह पर्व वर्ष में दो बार आता है. एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है. जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं.
नवरात्र शब्द से 'नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध' होता है. इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है क्योंकि 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है. भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है. यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है. यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता. जैसे- नवदिन या शिवदिन. लेकिन हम ऐसा नहीं कहते.
नवरात्र के वैज्ञानिक महत्व को समझने से पहले हम नवरात्र को समझ लेते हैं.
दिन का महत्व:
नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है. जिसमे चैत्र और आश्विन की नवरात्रियों का विशेष महत्व है. चैत्र नवरात्रि से ही विक्रम संवत की शुरुआत होती है. इन दिनों प्रकृति से एक विशेष तरह की शक्ति निकलती है. इस शक्ति को ग्रहण करने के लिए इन दिनों में शक्ति पूजा या नवदुर्गा की पूजा का विधान है. इसमें मां की नौ शक्तियों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है. पहले दिन मां के शैलपुत्री स्वरुप की उपासना की जाती है. इस दिन से कई लोग नौ दिनों या दो दिन का उपवास रखते हैं.
पहले दिन की पूजा का विधान:
नवरात्रि व्रत कथा
एक समय की बात है बृहस्पति जी ब्रह्मा जी से कहते हैं कि ब्रह्मन ! आप अत्यंत बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में सबसे श्रेष्ठ हैं. हे प्रभु कृपया कर मेरा कथन भी सुनिए! चैत्र व आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में नवरात्र का व्रत व उत्सव क्यूँ किया जाता है? इस व्रत का क्या फल मिलता है? पहले इस व्रत को किसने किया था? बृहस्पति जी का कथन सुनकर ब्रह्माजी बोले – बृहस्पते! तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है. जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं वे मनुष्य धन्य हैं. नवरात्र का यह पर्व सम्पूर्ण कामनाओं को पूरा करने वाला है.
ब्रह्माजी कहते है – हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को इस व्रत की विधि व फल बताकर देवी अन्तर्ध्यान हो गई.जो मनुष्य इस व्रत को करता है वह इस लोक में सुख पाकर अंत में मोक्ष प्राप्त करते हैं. ब्रह्माजी फिर कहते हैं कि हे बृहस्पते! इस व्रत का माहात्म्य मैने तुम्हें बतलाया है! ब्रह्माजी का कथन सुन बृहस्पति आनन्द विभोर हो उठे और ब्रह्माजी जी से कहने लगे – हे ब्रह्माजी ! आपने मुझ पर अति कृपा की है जो आपने मुझे अमृत के समान इस नवरात्री व्रत का माहात्म्य सुनाया है.
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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