हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास हिंदू वर्ष का चौथा महीना होता है. आषाढ़ माह की अमावस्या के दिन का बहुत महत्व माना गया है. इसे हलहारिणी अमावस्या भी कहते हैं. इसके बाद गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ हो जाता है. इस अमावस्या को दान-पुण्य और पितरों की शांति के लिए किए जाने वाले तर्पण के लिए बहुत ही उत्तम एवं विशेष फलदायी माना गया है. दैनिक पंचांग के अनुसार आषाढ़ अमावस्या की तिथि 17 जून शनिवार को सुबह 9 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 18 जून रविवार को 10 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगी. अतः 17 जून को दर्श अमावस्या और 18 जून को आषाढ़ अमावस्या है. इस दिन पूजा, जप, तप और दान किया जाएगा.*
1. इस दिन नदी या गंगाजल से स्नान करके पितरों के निमित्त सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें.
2. इस दिन पितरों की शांति के लिए आप चाहें तो उपवास रख सकते हैं.
3. पितरों की शांति के लिए किसी गरीब ब्राह्मण को दान दक्षिणा दें.
4. पितरों की शांति के लिए किसी भूखे को भरपेट भोजन कराएं.
5. इस दिन संध्या के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों का स्मरण करके पीपल की 7 परिक्रमा करें.
6. इस दिन पितरों की शांति के लिए हवन कराकर दान-दक्षिणा देना चाहिए.
7. इस दिन नदी के किनारे स्नान करने के बाद पितरों का पिंडदान या तर्पण करना चाहिए.
8. पितरों के निमित्त अमावस्या पर भगवान भोलेनाथ और शनिदेव की विशेष पूजा करके उन्हें प्रसन्न करना चाहिए.
9. अमावस्या पर घर में खीर पुरी आदि बनाकर उसका उपले (अग्यारी ) पर गुड़ घी काले तिल के साथ पितरों के निमित्त भोग लगाएं.
10. इस दिन कौवों को अन्न और जल अर्पित करने के साथ ही गाय एवं कुत्तों को भी भोजन कराएं.
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-नवरात्रि व्रत में बनाएं-कुट्टू पनीर पकौड़े
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