गुप्त नवरात्रि में सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने करें

गुप्त नवरात्रि में सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने करें

प्रेषित समय :21:47:14 PM / Sun, Jun 25th, 2023

गुप्त नवरात्रि में करे इस महामंत्र का पाठ और जागृत करे अपने अन्दर की छुपी हुई महाशक्ति को.  इस पाठ से आप को लाभ मिलेगा ..

श्री दुर्गा सप्तसती में वर्णित अत्यंत प्रभावशली सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ इस सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने से संपूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का फल मिलता है . यह महामंत्र देवताओं को भी दुर्लभ नहीं है , इस मंत्र का नित्य पाठ करने से माँ भगवती जगदम्बा की कृपा बनी रहती है .
कुन्जिका स्तोत्रं
 शिव उवाच

 शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌.
 येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्‌॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌.
 न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्‌॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌.
 अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति.
 मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌.
 पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥4॥
अथ मंत्र  ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे. ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः
 ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
 ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
इति मंत्रः॥
 नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि.
 नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे.
 ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते.
 चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥
धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी.
 क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी.
 भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
 धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
 पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥
 इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे.
 अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
 यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्‌.
 न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
Koti Devi Devta 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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