भैरव शाबर मन्त्र
प्रयोग 1-निम्न मन्त्र की सिद्धि के लिए किसी भैरव मन्दिर या शिव मन्दिर में मंगलवार या शनिवार के दिन 11 बजे रात्रि के बाद पूरब या उत्तर दिशा में मुंह करके लाल या काला आसन लगाकर पहले भैरव देव की षोडशोपचार पूजा करें. इसके बाद गुड़ से बनी खीर, शक्कर नैवेद्य अर्पण करें फिर रुद्राक्ष माला से 1008 बार निम्न मन्त्र का जप करके भैरव देव को दाहिने हाथ में जप-समर्पण करें. यह प्रयोग 21 दिन लगातार करना है. 21 वें दिन जप पूर्ण होते ही भैरव देव प्रत्यक्ष हो जाते हैं, तुरंत लाल कनेर के फूल की माला भैरव देव को पहनाकर आशीर्वाद मांग लें.
मन्त्रः-
“ॐ रिं रिक्तिमा भैरो दर्शय स्वाहा. ॐ क्रं क्रं-काल प्रकटय प्रकटय स्वाहा. रिं रिक्तिमा भैरऊ रक्त जहां दर्शे. वर्षे रक्त घटा आदि शक्ति. सत मन्त्र-मन्त्र-तंत्र सिद्धि परायणा रह-रह. रूद्र, रह-रह, विष्णु रह-रह, ब्रह्म रह-रह. बेताल रह-रह, कंकाल रह-रह, रं रण-रण रिक्तिमा सब भक्षण हुँ, फुरो मन्त्र. महेश वाचा की आज्ञा फट कंकाल माई को आज्ञा. ॐ हुं चौहरिया वीर-पाह्ये, शत्रु ताह्ये भक्ष्य मैदि आतू चुरि फारि तो क्रोधाश भैरव फारि तोरि डारे. फुरो मन्त्र, कंकाल चण्डी का आज्ञा. रिं रिक्तिमा संहार कर्म कर्ता महा संहार पुत्र. ‘अमुंक’ गृहण-गृहण, मक्ष-भक्ष हूं. मोहिनी-मोहिनी बोलसि, माई मोहिनी. मेरे चउआन के डारनु माई. मोहुँ सगरों गाउ. राजा मोहु, प्रजा मोहु, मोहु मन्द गहिरा. मोहिनी चाहिनी चाहि, माथ नवइ. पाहि सिद्ध गुरु के वन्द पाइ जस दे कालि का माई ॥”
इसकी सिद्धि से साधक की सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा श्री भैरवजी की कृपा बनी रहती है. इस मन्त्र से झाड़ने पर सभी व्याधियों का नाश होता है.
प्रयोग 2 — 41 दिनों तक किसी शिव मंदिर या भैरव मंदिर में भैरव की पंचोपचार पूजा करने के बाद उड़द के बड़े और मद्य का भोग लगाएं. भैरव देव प्रसन्न होकर भक्त की सब मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
मन्त्रः-
“आद भैरों, जुगाद भैरों, भैरों हैं सब भाई. भैरों ब्रह्मा, भैरों विष्णु भैरों ही भोला साईं. भैरों देवी, भैरों सब देवता, भैरों सिद्ध भैरों नाथ, गुरु, भैरों पीर, भैरों ज्ञान, भैरों ध्यान. भैरों योग-वैराग. भैरों बिन होय ना रक्षा. भैरों बिन बजे ना नाद. काल भैरों, विकराल भैरों. घोर भैरों, अघोर भैरों. भैरों की कोई ना जाने सार. भैरों की महिमा अपरम्पार. श्वेत वस्त्र, श्वेत जटाधारी. हत्थ में मुदगर, श्वान की सवारी. सार की जंजीर, लोहे का कड़ा. जहां सिमरुं, भैरों बाबा हाजिर खड़ा. चले मन्त्र, फुरे वाचा. देखा आद भैरों. तेरे इल्म चोट का तमाशा ॥”
प्रयोग 3 - भैरव जी के चित्र या मूर्ति के सम्मुख दीप, धूप, गुग्गल देकर भैरवदेव की पंचोपचार पूजा करें. पूजा के उपरांत 108 बार नित्य निम्न मन्त्र का जप करें. फिर मद्य अर्पित करें. यह प्रयोग 8 दिन करना है, 8वें दिन नारियल, बाकला सवा पाव, रोट सवा सेर, लाल कनेर के फूल से भैरव देव को बलि दें. भैरव देव प्रसन्न होकर सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं.
मन्त्रः-
“ॐ काला भैरुं, कबरा केश. काना कुण्डल, भगवा वेष. तिर पतर लिए हाथ, चौंसठ योगनियां खेले पास. आस माई, पास माई. पास माई, सीस माई. सामने गादी बैठे राजा, पीड़ो बैठे प्रजा मोहि. राजा को बनाऊ कुकड़ा, प्रजा का बनाऊं गुलाम. शब्द साचा, पिण्ड काचा, गुरु का वचन जुग जुग सांचा ॥”
प्रयोग 4 - निम्न मन्त्र का अनुष्ठान रविवार से प्रारम्भ करें. एक पत्थर का तीन कोने वाला काला टुकड़ा लेकर उसे अपने सामने स्थापित करें. उसके ऊपर तेल और सिंदूर का लेप करें. पान और नारियल भेंट में चढ़ावें. नित्य सरसों के तेल का दीपक जलावें. अच्छा होगा कि दीपक अखण्ड हो. मन्त्र को नित्य 21 बार 41 दिनों तक जपें. जप के बाद नित्य छार, छरीला, कपूर, केशर और लौंग से हवन 21 बार करें. भोग में बाकला रखें. जब श्री भैरव देव दर्शन दें, तो डरें नहीं. भक्तिपूर्वक प्रणाम करें और मांस मदिरा की बलि दें. जो मांस-मदिरा का प्रयोग न कर सकें, वे उड़द के पकौड़े, बेसन के लड्डू और गुड़ मिली खीर की बलि दें. सिद्ध होने के बाद सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसे भैरव दर्शन विधान भी कहते हैं.
मन्त्रः-
“ॐ गुरूजी ! काला भैरू, कपला केश. काना मदरा, भगवाँ भेष. मार-मार काली-पुत्र, बारह कोस की मार. भूतां हात कलेजी, खूं हाँ गेडिया. जाँ जाऊँ, भैरू साथ. बारह कोस की रिद्धि ल्यावो, चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो. सुत्यो होय, तो जगाय ल्यावो. बैठ्या होय, तो उठाव ल्यावो. अनन्त केसर को थारी ल्यावो, गौराँ पार्वती की बिछिया ल्यावो.
गेले की रस्तान मोय, कुवें की पणियारी मोय. हटा बैठया बणियाँ मोय, घर बैठी बणियाणी मोय. राजा की रजवाड़ मोय, महल बैठी राणी मोय. डकणी को, सकणी को, भूतणी को, पलीतणी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धकमा कूँ, अलीया को, पलीया को, चौड़ को, चौगट को, काचा को, कलवा को, भूत को, पलीत को, जिन को, राक्षस को, बैरियाँ से बरी कर दे. नजराँ जड़ दे ताला.
इता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे. माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे. चल डकणी-सकणी, चौड़ूँ मैला बाकरा. देस्यूं मद की धार, भरी सभा में. छूं ओलमो कहाँ लगाई थी बार. खप्पर में खा, मुसाण में लोटे. ऐसे कुण काला भैरूँ की पूजा मेटे. राजा मेटे राज से जाय. प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय. जोगी मेटे ध्यान से जाय. शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा, चलो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ॥”
प्रयोग 5 — निम्न भैरव मन्त्र शत्रु पीड़ा, वशीकरण, मोहन, आकर्षण में अचुक प्रयोग है. इस मन्त्र का अनुष्ठान शनि या रविवार से प्रारम्भ करना चाहिए. एक तिकोना पत्थर लेकर उसे एकांत कमरे में स्थापित करके उसके ऊपर तेल-सिंदूर का लेप करें. नारियल और पान भेंट में चढ़ाएं. नित्य सरसों के तेल का दीपक अखंड जलाएं. नित्य 27 बार 40 दिन तक मन्त्र का जप करके कपूर, केसर छबीला, लौंग, छार की आहुति देनी चाहिए. भोग में बाकला, बाटी रखनी होती है. जब भैरव दर्शन दें तो डरे नहीं, भक्तिपूर्वक प्रणाम करके उड़द के पकौड़े, बेसन के लड्डू, गुड़ से बनी खीर बलि में अर्पित करें. मन्त्र में वर्णित सभी कार्य सिद्ध होते हैं.
मन्त्रः—
“ॐ गुरु, ॐ गुरु, ॐ गुरु, ॐकार, ॐ गुरु भूमसान, ॐ गुरु सत्य गुरु. सत्य नाम काल भैरव. कामरू जटा चार पहर खोले चौपटा. बैठे नगर में. सुमरों तोय. दृष्टि बांध दे सबकी. मोय हनुमान बसे हथेली. भैरव बसे कपाल. नरसिंह जी को मोहिनी, मोहे सकल संसार. भूत मोहूं, प्रेत मोहूं, जिन्द मोहूं, मसान मोहूं. घर का मोहूं, बाहर का मोहूं. बम रक्कस मोहूं, कोढ़ा मोहूं, अघोरी मोहूं, दूती मोहूं, दुमनी मोहूं, नगर मोहूं, घेरा मोहूं, जादू-टोना मोहूं, डंकनी मोहूं, संकनी मोहूं, रात का बटोही मोहूं, बाट का बटोही मोहूं, पनघट की पनिहारी मोहूं, इंद्र का इंद्रासन मोहूं, गद्दी बैठा राजा मोहूं, गद्दी बैठा बणिया मोहूं, आसन बैठा योगी मोहूं. और को देख जले भुने. मोय देख के पायन परे. जो कोई काटे मेरा वाचा, अंधा कर, लूला कर, सिड़ी वोरा कर, अग्नि में जलाय दे. धरी को बताए दे, गढ़ी को बताय दे, हाथ को बताए दे, गांव को बताए दे, खोए को मिलाए दे, रूठे को मनाए दे, दुष्ट को सताए दे, मित्रों को बढ़ाए दे. वाचा छोड़ कुवाचा चले, तो माता क चौखा दूध हराम करे. हनुमान आण. गुरुन को प्रणाम. ब्रह्मा, विष्णु साख भरे, उनको भी सलाम. लोना चामरी की आण, माता गौरा पार्वती महादेव जी की आण. गुरु गोरखनाथ की आण, सीता रामचंद्र की आण मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति. गुरु के वचन से चले, तो मन्त्र ईश्वरो वाचा ॥”
प्रयोग 6 — यह भैरव प्रयोग किसी अटके हुए कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु है. प्रयोग रविवार से प्रारम्भ करके 21 दिन तक मृत्तिका की मणियों की माला से नित्य 28 बार जप करें. जप करने से पहले भैरव देव की पंचोपचार पूजा करें. जप के बाद गुड़ व तेल, उड़द का दही-बडा चढ़ाएं और पूजा से उठने के बाद उसे काले कुत्ते को खिला दें.
मन्त्रः-
“ॐ नमो भैरूनाथ, काली का पुत्र हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत. कमर विराज मस्तंग लंगोट, घूघर माल. हाथ बिराज डमरू खप्पर त्रिशूल. मस्तक विराज तिलक सिंदूर. शीश विराज जटाजूट, गल विराज नादे जनेऊ. ॐ नमो भैरूनाथ काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा कारज करो तुरत. नित उठ करो आदेश-आदेश ॥”
प्रयोग 7 — निम्न मन्त्र नवरात्री, दीपावली या सूर्यग्रहण की रात्रि में सिद्ध करें. त्रिखुटा चौका देकर, दक्षिण की ओर मुंह करके, मन्त्र का जप 1008 बार करें. तब लाल कनेर के फूल, लड्डू, सिंदूर, लौंग, भैरव देव को चढ़ावें. जप से पहले भैरव देव की पंचोपचार पूजा करें. अखंड दीपक निरंतर जलता रहना चाहिए. जप के दशांश का हवन छार, लौंग छबीला, कपूर, केसर से करें. जब भैरव जी भयंकर रूप में दर्शन दें तो डरें नहीं. तत्काल फूल की माला उनके गले में डालकर बेसन का लड्डू उनके आगे रखकर वर मांग लेना चाहिए. श्री भैरव दर्शन न दें तो भी कार्य सिद्धि अवश्य होगी. दर्शन न मिले तो उनकी मूर्ति को माला पहनाकर लड्डू वहीं रख दें. अभीष्ट कार्य कुछ ही दिनों में हो जाएगा.
मन्त्रः—
“ॐ काली कंकाली महाकाली के पुत्र, कंकाल भैरव ! हुकम हाजिर रहे, मेरा भेजा काल करे. मेरा भेजा रक्षा करे. आन बाँधू, बान बाँधू. चलते फिरते के औंसान बाँधू. दसों स्वर बाँधू. नौ नाड़ी बहत्तर कोठा बाँधू. फूल में भेजूँ, फूल में जाए. कोठे जीव पड़े, थर-थर काँपे. हल-हल हलै, गिर-गिर पड़ै. उठ-उठ भगे, बक-बक बकै. मेरा भेजा सवा घड़ी, सवा पहर, सवा दिन सवा माह, सवा बरस को बावला न करे तो माता काली की शैया पर पग धरै. वाचा चुके तो ऊमा सुखे. वाचा छोड़ कुवाच करे तो धोबी की नांद में, चमार के कूड़े में पड़े. मेरा भेजा बावला न करे, तो रूद्र के नेत्र से अग्नि की ज्वाला कढ़ै. सिर की लटा टूट भू में गिरै. माता पार्वती के चीर पर चोट पड़ै. बिना हुक्म नहीं मारता हो. काली के पुत्र, कंकाल भैरव ! फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा. सत्य नाम, आदेश गुरु को ॥”
प्रयोग 8 — निम्न मन्त्र होली, दीपावली, शिवरात्री, नवरात्रा या ग्रहण के समय लाल मिट्टी से चौका देकर अरंडी (एरंड) की सूखी लकड़ी पर तेल का हवन करें. जब लौ प्रज्वलित हो तो उसी प्रज्वलित लौ को चमेली के फूलों की माला पहना के सिंदूर, मदिरा, मगौड़ी, इत्र, पान चढ़ाकर फिर गुग्गुल से हवन करें. उपरोक्त क्रिया करने से पहले 1008 बार निम्न मन्त्र का पहले जप कर लें. मन्त्र सिद्ध हो जाएगा. प्रारम्भ में भैरव देव का पंचोपचार पूजन कर दें. प्रत्येक वर्ष नवरात्र या दीपावली में शक्ति बढ़ाने के लिए 108 बार मन्त्र का जप कर दिया करें. जब कोई कार्य सिद्ध करना हो तो जहां ‘मेरा’ कहना लिखा है, वहां कार्य का नाम कहें.
मन्त्रः—
“भैरों उचके, भैरों कूदे. भैरों सोर मचावे. मेरा कहना ना करे, तो कालिका को पूत न कहावै. शब्द सांचा, फूरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ॥”
प्रयोग 9 — निम्न मन्त्र का अनुष्ठान 21 दिन का है, साधक श्मशान में भैरव देव का पंचोपचार पूजन करने के उपरांत 10 माला का जप नित्य 7 दिनों तक करें, फिर 7वें दिन मद्य, मांस की आहुति दें, फिर चौराहे में बैठकर 10 माला जप नित्य 7 दिन करें, 7वें दिन दही-बाड़ा, मद्य, मांस की आहुति दें, उसके बाद घर के एकांत कमरे में 7 दिन तक नित्य 10 माला का जप करें और 7वें दिन दही-बाड़ा, बाकला-बाटी और मद्य, मांस की आहुतियां दें, इससे भैरव जी प्रसन्न होकर साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
मन्त्रः—
“ॐ भैरों ऐंडी भैरों मैंडी. भैरों सबका दूता देवी का दूत, देवता का दूत, गुरु का दूत, पीर का दूत, नाथों का दूत, पीरों का दूत, भैरों छड़िया कहाए. जहां सिमरुं तहां आए. जहां भेजूं, तहां जाए. चले मन्त्र फूरे वाचा. देखूं छड़िया भैरों, तेरे इल्म का तमाशा ॥”
प्रयोग 10 — होली, दिवाली अथवा ग्रहण के समय मन्त्र का एक हजार जप करे. किसी को ओपरी (तान्त्रिक आभिचारिक) बाधा हो, तो लौंग, इलायची और विभूति बनाकर दे. लाभ होगा.
मन्त्रः—
“काला भैरों कपली जटा. हत्थ वराड़ा, कुन्द वडा. काला भैरों हाजिर खड़ा. चाम की गुत्थी, लौंग की विभूत. लगे लगाए की करे भस्मा भूत. काली बिल्ली, लोहे की पाखर, गुर सिखाए अढ़ाई अखर. अढ़ाई अखर गए गुराँ के पास, गुराँ बुलाई काली. काली का लगा चक्कर. भैरों का लगा थप्पड़. लगा – लगाया, भेजा-भेजाया, सब गया सत समुद्र-पार ॥”
प्रयोग 11 — निम्न मन्त्र की साधना 40 दिन की है. यह साधना शुद्ध जल से स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र धारण करके शनिवार से प्रारम्भ करें. पहले भैरव देव की पंचोपचार पूजा करके एक मिट्टी के घड़े के ऊपरी हिस्से को तोड़कर नीचे का जो आधा और ज्यादा भाग रहे, उस हिस्से में आग जलाएं, उसके पास एक बाजू में सरसों के तेल का दीपक जलाकर रखें और दूसरे बाजू में गुग्गुल की धूप जलाएं और उसके सामने मद्य, मांस का भोग रखकर निम्न मन्त्र की एक माला का जप करें. जप के बाद भोग को अग्नि में डाल दें, प्रतिदिन भोग आदि देकर जप करते रहें. प्रत्येक आठवें दिन भोग सामग्री का विशेष हवन 10 बार अलग से किया कीया करें तो मन्त्र सिद्ध होता है और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
मन्त्रः—
“ॐ काला भैरव काला बान. हाथ खप्पर लिए फिर मसान. मद्य मछली का भोजन करें सांचा भैरव हांकता चले. काली का लाड़ला. भूतों का व्यापारी. डाकिनी शाकिनी सौदागरी. झाड़-झटक, पटक-पछाड़. सर खुला मुख बला. नहीं तो माता कालिका का दूध हराम. शब्द सांचा, पिंड कांचा. चलो भैरव. ईश्वरो वाचा ॥”
प्रयोग 12 — भैरव शत्रु-संहारक शाबर मन्त्र – रात्रि को दस बजे के बाद कडुए तेल का दीपक जला कर बैठे. सामने भैरव की प्रतिमा या चित्र हो. मन्त्र पढ़कर एक नींबू खड़ा काटे. १०८ बार. ऐसा ही ग्यारह दिनों तक करे. १२वें दिन १२ ‘बटुक’ — छोटे-छोटे ब्राह्मण बालकों को भोजन कराए और उन्हें दक्षिणा दे. रात्रि को हवन करे. सम्भव हो, तो यह हवन श्मशान में सन्ध्या के बाद करे. १३वें दिन सुबह जल्दी श्मशान जाए और उक्त हवन की भस्मी, जो भी चिता वहाँ अधजली या जली हो, उसमें डाल दे. उस चिता पर कुंकुम, अक्षत, पुष्प एवं कुछ मीठा प्रसाद छोड़कर नमस्कार करके चला आए.
मन्त्रः—
“ॐ नमो, आदेश गुरू को. काला भेरू-कपिल जटा. भेरू खेले चौराह-चौहट्टा. मद्य-मांस को भोजन करे.
जाग जाग से काला भेरू ! मात कालिका के पूत ! साथे जोगी जङ्गम और अवधूत.
मेरा वैरी ………. (अमुक) तेरा भक. काट कलेजा, हिया चक्ख. भेजी का भजकड़ा कर. पाँसला का दाँतन कर. लोहू का तू कुल्ला कर.
मेरे वैरी ………… (अमुक) को मार. मार-मार तू भसम कर डार. वाह वाह रे काला भेरू ! काम करो बेधड़क-भरपूर.
जो तू मेरे वैरी दुश्मन (अमुक) को नहीं मारे, तो मात कालिका का पिया दूध हराम करे. गाँगली तेलन, लूनी चमारन का-कुण्ड में पड़े.
वाचा, वाचा, ब्रह्मा की वाचा, विष्णु की वाचा, शिव-शङ्कर की वाचा, शब्द है साँचा, पिण्ड है काचा. गुरू की शक्ति, मेरी भक्ति. चलो मन्त्र ! इसी वक्त. ॐ हूं फट्.”
प्रयोग 13 — श्री भैरव-सिद्धि मन्त्र — निम्न मन्त्र का एक लाख जप तथा दशांश होम करने से मन्त्र सिद्ध होता है. प्रति-दिन प्रातः-काल पवित्रावस्था में यथा-विधि पूजन इत्यादि कर यथा-शक्ति जप करना चाहिए.
मन्त्र —
“ॐ नमो काला-गोरा क्षेत्र-पाल ! वामं हाथं कान्ति, जीवन हाथ कृपाल. ॐ गन्ती सूरज थम्भ प्रातः-सायं रथभं जलतो विसार शर थम्भ. कुसी चाल, पाषान चाल, शिला चाल हो चाली, न चले तो पृथ्वी मारे को पाप चलिए. चोखा मन्त्र, ऐसा कुनी अब नार हसही ॥”
जप के बाद निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए भैरव जी को नमस्कार करना चाहिए. यथा — “ह्रीं ह्रों नमः.’ इस प्रकार साधना करने से भैरव जी सिद्ध होते हैं और साधक की सभी अभिलाषाएँ पूर्ण होती हैं.
प्रयोग 14 — श्रीभैरव-चेटक मन्त्र — निम्न नवाक्षर मन्त्र का कुल ४० हजार जप कर गो-धूल से दशांश हवन करे. १८ दिनों तक इस तरह हवन करने से भैरव जी प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
मन्त्रः—
“ॐ नमो भैरवाय स्वाहा ॥”
प्रयोग 15 — भैरव जी की चौकी मूकने का मन्त्र — उक्त चौकी मन्त्र को पढ़कर अपने चारों ओर एक घेरा खींचे तो किसी भी प्रकार का डर नहीं रहता. स्व-रक्षा और दूसरों द्वारा किए गए अभिचार कर्म के लिए यह उपयोगी मन्त्र है.
मन्त्रः—
“ॐ गुरुजी चेत सूना ज्ञान, औंधी खोपड़ी मरघटियां मसान, बाँध दे बाबा भैरों की आन ॥”
प्रयोग 16 — अरिष्ट-निवारक-भैरव मन्त्र — उक्त मन्त्र का दस हजार जप करने से अरिष्टों की शान्ति होती है. शान्ति-करन सम्बन्धी यह उत्तम मन्त्र है.
मन्त्रः—
“ॐ क्ष्रौं क्ष्रौं स्वाहा.”
प्रयोग 17 — भय-निवारक भैरव मन्त्र — 5 हजार जप से उक्त मन्त्र की सिद्धि होती है. बाद में जब किसी भी प्रकार का भय हो, तब उक्त मन्त्र का जप करे. इससे भय दूर होता है.
मन्त्रः—
“ॐ ह्रीं भैरव – भैरव भयकर-हर मां, रक्ष-रक्ष हुँ फट् स्वाहा ॥”
प्रयोग 18 — शिशु-बाधा-निवारक भैरव मन्त्र — ५ वर्ष से कम उम्रवाले बच्चों की सुरक्षा के लिए उक्त मन्त्र अमोघ है. रोग, बाधा, टोना या टोटका आदि से पीडित बच्चों को बलाओं से बचाने के लिए बच्चे की माँ के बाँएँ पैर के अँगूठे को एक छोटे ताम्र-पत्र में रखवाकर धोए. धोए हुए जल के ऊपर ११० बार निम्न मन्त्र का जप कर उसे अभिमन्त्रित करे. इस अभिमन्त्रित जल से उक्त मन्त्र का जप करते हुए बच्चे को कुश या पान के पत्ते से छींटे मारे. इससे बच्चा स्वस्थ हो जाता है. यदि एक बार में लाभ न हो, तो ऐसा ३ या ७ या ६ दिनों तक नित्य करे. बच्चे को आराम अवश्य होगा.
मन्त्रः—
“ॐ श्री भैरवाय वं वं वं ह्रां क्षरौं नमः ॥”
प्रयोग 19 — सर्व-विघ्न-निवारक मन्त्र मन्त्र — पहले श्री काल-भैरव जी के पास धूप-दीप-फल-फूल-नैवेद्य आदि यथा-शक्ति चढ़ाए. फिर मन्त्र का एक माला जप करे. ऐसा तब तक करे, जब तक ध्येय-सिद्धि न हो. मन्त्र को एक कागज के ऊपर लिख कर पूजा – स्थान में रख लेना चाहिए. जिससे मन्त्र-जप में भूल न हो.
मन्त्रः—
“ॐ हूँ ख्रों जं रं लं बं क़ों ऐं ह्रीं महा-काल भैरव सर्व-विघ्न-नाशय नाशय ह्रीं फट स्वाहा ॥”
प्रयोग 20 — सिद्धि-प्रदायक महा-काल भैरव जी का मन्त्र — शुभ मुहूर्त में अथवा जब आपकी राशि का चन्द्र बली हो, तब उक्त मन्त्र का 21 हजार जप करे. इससे मन्त्र-सिद्धि होगी. बाद में नित्य 1 माला जप करता रहे, तो श्री महा – काल भैरव जी प्रसन्न होकर अभीष्ट-सिद्धि प्रदान करते हैं. जप के साथ कामनानुसार ध्यान भी करना चाहिए.
मन्त्रः—
“ॐ हं ष नं ग फ सं ख महा-काल भैरवाय नमः ॥”
भविष्य संकेत संस्थापक
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-गुप्त नवरात्री मे छठा, षष्ठ एवं दस महाविद्याओ मे एक माँ त्रिपुर भैरवी साधना