अनिल मिश्र. बिहार के शिक्षा मंत्री और विभागीय अपर मुख्य सचिव के बीच तनातनी समाप्त करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पिछले दिनों पहल करना पड़ा था.बिहार में शिक्षा व्यवस्था को लेकर प्रदेश से लेकर देश भर में वर्षों से चर्चा का विषय बना रहा है.बिहार में शिक्षा की गिरावट का राजनीतिक पार्टियां लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्रित्व काल को सबसे बुरा दौर मानते हैं .लेकिन अब भी बिहार में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति काफी लचर बनी हुई है. हालांकि नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल से हीं बिहार में शिक्षा से विमुख हो रहे बच्चों को स्कूल लाने का कार्य सराहनीय कदम रहा है. हाल के दिनों में प्रदेश के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक के बीच तनातनी ने देश भर में सुर्खियां बटोरी बिहार में शिक्षा में सुधार को लेकर. शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ करने के लिए लगातार अनेक प्रकार के प्रयास किए जा रहें हैं .लेकिन गनीमत है कि प्रदेश के नौनिहाल इससे अभी काफी वंचित हैं. यह तथ्य हाल में सामने आये हैं.
एक ताजा सर्वे के अनुसार बिहार के प्रारंभिक विद्यालयों में महज 20 प्रतिशत बच्चे हीं स्कूल आ रहे हैं. सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी (कोविड)के बाद कक्षा एक से पांच तक के बच्चे पढ़ना भूल गए हैं. बिहार में शिक्षा व्यवस्था अब भी बदहाल स्थिति में है. यहां की शिक्षा व्यवस्था सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा है. इसका फिलहाल कोई इलाज नहीं दिख रहा है. ऐसे में इसे सुधारने के लिए सामाजिक चेतना की बड़ी जरूरत है. इसके बिना बिहार की शिक्षा को नहीं सुधारा जा सकता है. यह उक्त बातें सामाजिक कार्यकर्ता और प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने "बच्चे कहां हैं "के सर्वे रिपोर्ट जारी करते हुए कही. यह आंकड़ा कटिहार और अररिया जिले के 81 स्कूलों में करवाये गए सर्वे के मुताबिक रिपोर्ट में हुई है. सर्वे के अनुसार महज पांच फीसदी उच्च प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की संख्या समुचित है. बिहार में शिक्षा की बदहाली का मुख्य कारण स्कूलों में पढ़ाई का न होना, प्राइवेट ट्यूशन, डीबीटी सिस्टम और बच्चों को समय पर किताबें नहीं मिलने के साथ-साथ शिक्षकों के नियमित अनुपस्थित रहना बताई गई. सर्वे के दौरान मात्र 58 फीसदी हीं नियोजित शिक्षक उपस्थित मिले. इधर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक के सख्ती के बाद विभाग में नित्य नए प्रयोग किए जा रहें हैं. 16 अगस्त से किसी भी विद्यालय में पचास प्रतिशत से कम बच्चों की उपस्थिति पर प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी पर कारवाई करने के आदेश ने हड़कंप मचा दिया है.
राज्य में शिक्षा को लेकर चलाए गए विशेष अभियान के तहत एक सप्ताह के अंदर 4.73लाख बच्चों का नामांकन हुआ. बिहार शिक्षा परियोजना परिषद (बीईपी) के मुताबिक 2.50लाख छठी कक्षा में तथा 2.23लाख नौवीं कक्षा में नामांकन हुआ है. वहीं 2.06लाख नौवीं कक्षा में और 1.88लाख छठी कक्षा में नामांकन नहीं हो पाया है. इस संबंध में नौवीं कक्षा में सौ फीसदी बच्चों का दाखिला नहीं होने के कारण पटना सहित राज्य के 16 जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डीपीओ)का 20 प्रतिशत वेतन की कटौती की गई है. वहीं बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के मुताबिक बच्चों की उपस्थिति के मामले में प्रारंभिक (कक्षा 1से 8) से अधिक खराब स्थिति में माध्यमिक-उच्च माध्यमिक (कक्षा 9से 12) स्कूलों की है. 4 अगस्त के निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार 5.89फीसदी प्रारंभिक स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति आधे से कम रही. इस दिन 27 हजार 935 स्कूलों का निरीक्षण किया गया.जिसमें माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों बच्चों की उपस्थिति 34 फीसदी के साथ रही.
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