नवीन कुमार, मुंबई. चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार जिस तरह से पारिवारिक खेल खेल रहे हैं उसमें पूरे महाराष्ट्र की राजनीति उलझ गई है. इसका असर आने वाले समय में राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया और राज्य स्तर पर महा विकास आघाड़ी पर दिख सकता है. चाचा पवार इन दोनों मोर्चों में रीढ़ की तरह एक प्रमुख स्तंभ जो हैं. यह स्तंभ थोड़ा भी डगमगाता है तो इसका फायदा भाजपा को होने वाला है. चर्चा तो है कि चाचा-भतीजे के खेल में परदे के पीछे भाजपा ही है. उसकी रणनीति स्पष्ट है. वह चाहती है कि 2024 में नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री हों. इसलिए चाचा पवार जैसे स्तंभ को हिलाने के लिए मोदी के साथ भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने भी महाराष्ट्र पर फोकस किया हुआ है. मोदी और शाह के हालिया कार्यक्रमों में चाचा पवार ने सम्मान के साथ मंच साझा किया था. फिर चर्चा होने लगी कि राज्य की एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणवीस सरकार में भतीजे पवार की तरह चाचा पवार भी शामिल हो सकते हैं. चर्चा को बल इसलिए मिला कि राज्य की सत्ता में शामिल होने के बाद भतीजे पवार लगातार चाचा पवार से मिल रहे हैं. अभी पुणे में भी एक बिजनेसमैन के घर पर चाचा-भतीजे मिले और चर्चा आम हो गई. हालांकि, सीनियर पवार ने सफाई दी कि वह अपने गुट के साथ भाजपा में शामिल नहीं होंगे. क्योंकि, उनकी पार्टी एनसीपी और भाजपा के बीच वैचारिक मतभेद है. लेकिन सीनियर पवार कई मौकों पर अपनी सफाई के विपरीत भाजपा से नजदीकी दिखाते रहे हैं. हाल में ही नगालैंड में भाजपा के समर्थन वाली सरकार में सीनियर पवार ने अपनी पार्टी एनसीपी को शामिल कराया. इससे पहले महाराष्ट्र में भी 2014 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा की अल्पमत सरकार को एनसीपी ने बाहर से समर्थन देकर बचा लिया था और तब सीनियर पवार भाजपा के संकटमोचक बने थे. बाद में भाजपा और शिवसेना ने साथ मिलकर सरकार चलाई थी. तब मोदी लहर के बावजूद भाजपा अपने दम पर सत्ता हासिल करने से वंचित रह गई थी.
भाजपा ने बागी एकनाथ शिंदे गुट को अपने पाले में करने के बाद एनसीपी के बागी अजित पवार गुट को भी अपने साथ कर लिया. शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया तो जूनियर पवार को उपमुख्यमंत्री के साथ वित्त मंत्री का पद दिया गया. लेकिन शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने से ही भाजपा संतुष्ट नहीं है. उसकी कवायद है कि राज्य में उनकी सरकार में सीनियर पवार भी शामिल हो जाएं. अगर यह संभव हो गया तो 2024 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में भाजपा का विशाल दमखम दिखेगा. यह हकीकत है कि भाजपा के लिए उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना और कांग्रेस से मुकाबला करना बहुत आसान नहीं है. यह भी सच है कि तमाम नजदीकियों के बावजूद भाजपा के सामने सीनियर पवार अब भी चुनौती के रूप में खड़े दिख रहे हैं. इसलिए चाचा पवार का मन बदलने के लिए भतीजे बार-बार उनके पास जा रहे हैं. शिंदे सरकार में शामिल होने के बाद भतीजे पवार ने अब तक चार बार चाचा पवार से मुलाकात की है. होती है यह राजनीतिक मुलाकात पर इसे कहा जाता है पारिवारिक मुलाकात. इस मुलाकात का खुलासा सीनियर पवार ने यह कहकर किया कि कुछ शुभचिंतक चाहते हैं मैं भाजपा में शामिल हो जाऊं. यानी कि उन पर भाजपा का दबाव बना हुआ है. इसके साथ वह वैचारिक मतभेद की भी बात करते हैं. अगर किसी स्वार्थ में वह वैचारिक मतभेद की दीवार को तोड़ देते हैं तो उनके अब तक के राजनीतिक जीवन का आखिरी परदा यहीं पर गिर सकता है. सीनियर पवार राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं और वह यह भी जानते हैं कि बतौर आखिरी बल्लेबाज मैच कैसे जीता जा सकता है. फिलहाल वह अपनी पार्टी में यही रोल निभाने की कोशिश कर रहे हैं.
अलग शख्सियत के धनी सीनियर पवार के अपने भतीजे पवार से मुलाकात करने के कारण सहयोगी पार्टी शिवसेना और कांग्रेस उन पर संदेह करने लगी है. वे इस पर उनसे सफाई की उम्मीद कर रहे हैं. अजीब स्थिति है कि संदेह की चारदीवारी में रहकर भी वह भरोसेमंद बने रहते हैं. हर पार्टी उनके इस राजनीतिक चरित्र से वाकिफ है. बावजूद इसके भाजपा उन्हें जहां अपने लिए तारणहार मान रही है वहीं वह विपक्ष के लिए बरगद बने हुए हैं. यह स्पष्ट है कि सीनियर पवार जब तक विपक्ष के साथ हैं तब तक भाजपा के लिए कांग्रेस सहित विपक्ष को खत्म करना आसान नहीं है. यही वजह है कि भाजपा सीनियर पवार को कथित रूप से कुछ प्रलोभन भी दे रही है. मोदी के फैलते आभा मंडल को देखकर ही सीनियर पवार ने प्रधानमंत्री बनने का सपना छोड़ दिया. लेकिन यह सपना अभी भी उनके अंदर बचा हुआ है. अगर विपक्ष ने 2024 में कुछ करिश्मा कर दिया तो सीनियर पवार अपने अंदर के बचे हुए सपने का पूरा कर सकते हैं. कुछ ओपिनियन पोल से भाजपा डरी हुई है. चर्चा है कि भाजपा के संदेशवाहक बनकर भतीजे पवार ने चाचा पवार को अगला राष्ट्रपति बनाने का प्रलोभन दिया है. इसके लिए सीनियर पवार को अभी कम से कम चार साल और इंतजार करना पड़ेगा. इससे पहले उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्री और उनकी बेटी सुप्रिया सुले को भी केंद्र में मंत्री पद देने के अलावा राज्य में उनके गुट के विधायकों को भी मंत्री बनाने की बात कही जा रही है. सीनियर पवार गुट के कुछ विधायकों को ईडी ने घेर रखा है जिससे वे सीनियर पवार को छोड़ने के मूड में हैं. ऐसे में इंडिया के घटक दलों के अलावा महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी की शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और कांग्रेस को अपना भविष्य अच्छा नहीं दिख रहा है. महाराष्ट्र में तो महा विकास आघाड़ी बनाने में सीनियर पवार ने ही पूरी ब्यूहरचना की थी. इसमें सबसे ज्यादा नुकसान उद्धव ठाकरे गुट को हुआ. सीनियर पवार के कहने पर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने जिससे उनकी पार्टी में अब तक का सबसे बड़ा विभाजन हुआ. जबकि उद्धव ठाकरे चाहते थे कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया जाए. इस दर्द को एकनाथ शिंदे ने भी लगभग ढ़ाई साल तक सीने में दबाए रखा और आखिर में भाजपा के सहयोग से बगावत करके मुख्यमंत्री बन गए.
सीनियर पवार ने 2019 में महा विकास आघाड़ी बनाने में अहम भूमिका निभाई. यह प्रयोग वह 2014 में भी कर सकते थे. भाजपा को बाहर से समर्थन नहीं देकर शिवसेना और कांग्रेस के साथ सरकार बना सकते थे. 2014 में भाजपा गठबंधन को 123 सीटें मिली थी जबकि शिवसेना ने 63, एनसीपी ने 41 और कांग्रेस को 42 सीटें जीती थी. अगर आघाड़ी सरकार बनती तो बहुमत का आंकड़ा 145 के पार हो जाती. 2019 में भी भाजपा 105 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. लेकिन शिवसेना (56), एनसीपी (54) और कांग्रेस (44) ने मिलकर ढ़ाई साल तक आघाड़ी सरकार चला ली. बगावत के खेल में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई. ईडी ने बगावत के खेल को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई. सीनियर पवार को भी ईडी ने नोटिस भेजा था. लेकिन दिल्ली के आका ने ईडी को रोक दिया. क्योंकि, इससे भाजपा को राजनीतिक फायदा नहीं होने वाला था. जबकि सीनियर पवार पर लगे आरोपों की डायरी के पन्नों में कई कहानियां हैं. उनपर सबसे पहले 2007 में करोड़ों रुपये के गेहूं खरीद और 2009 में चीनी की कीमतों में भारी वृद्धि के संबंध में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. उनपर जमाखोरों और आयातकों को लाभ पहुंचाने के लिए कीमतों में बढ़ोतरी की योजना बनाने का भी आरोप लगाया गया था. उन्हें खतरनाक कीटनाशक एंडोसल्फान को बढ़ावा देने के लिए भी कठघरे में खड़ा किया गया था. यही नहीं, उन्हें यूपीए-2 के दौरान कृषि उत्पादों की कीमतों में वृद्धि के लिए भी दोषी ठहराया गया था. बीसीसीआई अध्यक्ष के तौर पर उनके कार्यकाल की लंबे समय तक आलोचना होती रही. आलोचकों का कहना था कि उन्होंने अपने मंत्री पद के कर्तव्यों को निभाने के बजाय भारत में क्रिकेट चलाने में ज्यादा समय बिताया. ऐसे और भी कई आरोप हैं जिसे भाजपा उसे मौके पर इस्तेमाल करने के लिए सुरक्षित रखा है. फिलहाल तो भाजपा सीनियर पवार के सहयोग से अगले चुनावों में महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना और कांग्रेस का सफाया करना चाहती है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-मुंबई-बेंगलुरु उद्यान एक्सप्रेस में लगी आग, टला बड़ा हादसा
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