चंद्रमा का जातक के जीवन पर प्रभाव

चंद्रमा का जातक के जीवन पर प्रभाव

प्रेषित समय :21:42:48 PM / Thu, Sep 21st, 2023
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वैदिक ज्योतिष के 9 ग्रहों में चन्द्रमा सबसे तेज चलने वाला ग्रह है इसकी प्रतिदिन औसत चाल 12 अंश से
14 अंश के आस-पास में है. तीव्र गति चलने के कारण शरीर में इस का सम्बन्ध खून से जोड़ा गया है क्योंकि खून भी बहुत तेज चलता है. कमजोर चन्द्रमा खून की खराबी पैदा करता है. यह एक राशि को सवा दो दिन में पार कर लेता है. सूर्य के 12 अंश के अन्दर चन्द्रमा अशुभ फल देता है. मानसिक विकास में प्रभाव डालता है समुद्र में ज्वारभाटा, मधुमक्खी का अपना शहद शुक्ल पक्ष में खा जाना अन्धेरे में इकट्ठा करना इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है.
चन्द्र ग्रह और व्यवसाय
चन्द्रमा ग्रह का रंग सफेद तथा ठण्डा ग्रह है जब इसका संबंध जातक के व्यवसाय से होता है तो जातक इस प्रकार के व्यवसाय करता हैं जैसे जल सेना में कार्य करना, सोडा वाटर फैक्ट्री में कार्य करना, रंग निर्माण आदि कार्य करना, शर्बत बेचना, नाव चलाना, पानी के वितरण विभाग में काम करना, पोने का कार्य जैसे होटल का कार्य, दूध और खाद्य पदार्थो की बिक्री आदि.
चन्द्र पर राहु का प्रभाव हो तो मनुष्य शराब बेचने का कार्य करता है क्योंकि शराब भी विष की तरह होती है. चन्द्र स्त्री ग्रह है जब यह ग्रह दूसरे स्त्री ग्रहों शुक्र बुध शनि आदि को लेकर धन्धे का परिचायक होता है तो मनुष्य को स्त्रियों के साथ मिलकर काम करने का अवसर प्राप्त होता है जैसे कि फिल्म लाइन में अभिनेता होना आदि.
चन्द्र, ग्रहों की रानी है. अतः राज्य से भी इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है. अत: जब यह ग्रह राज्य घोतक सूर्य, गुरू आदि ग्रहों से मिले तो राज्य संबंधी कार्य जैसे शासन कार्य, राज्य अधिकारी कार्य, राज्य कर्मचारी कार्य करवाता है.
चन्द्रमा चौथे भाव का कारक होने के कारण जनता का कारक भी है जिसका चन्द्रमा अच्छा होता है उस व्यक्ति को जनता से पूरा सहयोग मिलता है और जनता की मदद से संसद विधान सभा में पहुंच जाता है जनता उसे बहुत चाहती है और उसे जनता से पूरा सहयोग मिलता है. जब चन्द्रमा बलवान होता है और अच्छे घर में स्थित होता है तो व्यक्ति का जीवन बहुत ही खुशहाल बीतता है लेकिन जब चन्द्रमा अच्छे स्थान में राहु केतु और शनि की युति या दुष्टि में होता है तब चन्द्रमा नुकसानदायक हो जाता है और ऐसे व्यक्ति का जीवन बहुत ही खराब बीतता है.
चन्द्रमा मन का कारक भी है यदि यह ग्रह चतुर्थ स्थान तथा चातुर्थ भाव का स्वामी तथा शनि एवं राहु की दृष्टि आदि के प्रभाव में हो तो मनुष्य का मन मन्दगामी, उदासहीनता, विरक्त हो जाता है जिसके फलस्वरुप वह मनुष्य कोई भी कार्य नहीं करती. साधुओं, फकीरों और सन्त महात्माओं की कुण्डली में ऐसा योग बनता है.
द्वादश भावो पर चन्द्र का प्रभाव
प्रथम भाव का स्वामी कर्क लगन की कुण्डली में चन्द्रमा प्रथम भाव का स्वामी होने के कारण लगनेश बन जाता है. अगर चन्द्रमा बलवान है शुभ ग्रहों की दृष्टि या युति में है पक्ष में बली है तो अपनी दशा में धन सम्मान और प्रसन्नता की वृद्धि करता है. तरल पदार्थ से लाभ दिलवाता है माता और दादी या वृद्ध स्त्रियों से लाभ करवाता है . स्वास्थ्य सुन्दर रहता है मन में दया के भावों को पैदा करता है. लगनेश चन्द्रमा जिस भाव में स्थित होता है उससे संबंधित वस्तु से विशेष लगाव होता है.
यदि लगनेश चन्द्रमा पक्ष में निर्बल पाप ग्रहों की युति या दृष्टि से पीड़ित है तो मनुष्य रोगी रहता है उससे धन का नाश और मान हानि होती है जातक को खांसी, निमोनियां और छाती से संबंधित रोगों से कष्ट होता है. क्षीण चन्द्रमा जिस भाव में स्थित होगा उस भाव से संबंधित वस्तु को मनुष्य जान बूझकर हानि पहुंचाने का प्रयत्न करते है.
द्वितीय भाव का स्वामी मिथुन लगन की कुण्डली में चन्द्रमा द्वितीय भाव का स्वामी बन जाता है. बलवान है तो अपनी दशा/ अन्तरदशा में धन की वृद्धि करता है. परिवार से सुख मिलता है. इस अवधि में विवाह या सन्तान होने का योग बनता है विद्या में उन्नति होती है. भाषण शक्ति तेज होती है. आंखो की ज्योति स्वस्थ्य रहती है माता की बड़ी बहन की उन्नति होती है, पुत्र को सम्मान प्राप्त होता है. खाने पीने की वस्तुएं प्रचुर मात्रा में और अच्छी प्राप्ति होती है.
यदि द्वितीयेश चन्द्रमा पीड़ित है तो मनुष्य के धन का नाश उसकी दशा/अन्तरदशा में होता है. परिवार से बिगाड़ हो जाता है. आंख में कष्ट रहता है. विद्या में हानि हो जाती है. विशेषतया जब चन्द्रमा राहु तथा शनि से पीड़ित हो ऐसा पीड़ित चन्द्रमा जुबान का कोई कमी खड़ा करता है. अप्रिय भोजन और कभी-2 विष पान तक की नौबत आ जाती है.
तृतीय भाव का स्वामी वृष लगन की कुण्डली में चन्द्रमा तीसरे भाव का स्वामी बन जाता है. यदि तृतीयेश बलवान हो मित्रों एवं भाई बन्धुओं की प्राप्ति होती है और मनुष्य अपने बाहुबल का खूब परिचय देता है. उसको विजय प्राप्ति होती है और नौकरों चाकरों का सुख मिलता है. लेखन शक्ति में वृद्धि होती है.
यदि चन्द्रमा निर्बल है तो उसे मित्रों तथा बहन भाईयों से अच्छा व्यवहार नहीं मिलता. मित्रगण बात मानने से इन्कार कर देते है. पराजय का मुंह देखना पड़ता है. चन्द्रमा जिस भाव में जाकर स्थित हो उसको मनुष्य जान बूझकर हानि पहुंचाने का यत्न करता है. माता की आंख में कष्ट रहता है.
चतुर्थ भाव का स्वामी मेष लगन की कुण्डली में चन्द्रमा चौथे भाव का स्वामी बन जाता है. यदि बलवान है तो मन में विशेष हर्ष, प्रसन्नता, उत्साह अपनी दशा भुक्ति में देता है. इस अवधि में व्यक्ति को जन साधारण के सम्पर्क में आने का अधिक अवसर प्राप्त होता है. वाहन और मकान का सुख प्राप्त होता है. जलीय स्थानों में उसका भ्रमण होता है. मनुष्य उन्नति की ओर अग्रसर रहता है.
यदि चन्द्रमा पीड़ित और निर्बल है तो यह अपनी दशा/अन्तरदशा में मन में क्रोध उदासीनता वैरागय आदि कई प्रकार की खराबी को जन्म देता है यदि चन्द्रमा बुध से तथा सूर्य और मंगल से मिलकर राहु शनि द्वारा पीड़ित हो तो मस्तिष्क से सम्बन्धित रोगों से मनुष्य बहुत पीड़ित रहता है और अधिक पाप प्रभाव होने पर पागल तक हो जाता है. यदि चन्द्रमा और चतुर्थ भाव पर केवल राहु का प्रभाव हो तो मनुष्य इस अवधि में उसे मानसिक क्लेश बहुत प्राप्त होते है. माता रोगी रहती है. स्वयं जातक की छाती के रोगों से पीड़ित रहता है. पीड़ित चन्द्रमा की दशा में मनुष्य धन का बहुत नाश देखता है. इस अवधि में उसके पिता को महान शरीरिक कष्ट सहना पड़ता है. यदि स्त्री की कुण्डली है तो उसके पति को कुछ अपमानित होना पड़ता है. घर से प्राय: बाहर रहना पड़ता है. जनता के हाथों दुख: उठाना पड़ता है.
पंचम भाव का स्वामी मीन लगन की कुण्डली में चन्द्रमा पंचमेश बन जाता है. यदि चन्द्रमा बलवान हो तो अपनी दशा/ अन्तरदशा में अच्छी बुद्धि की प्राप्ति होती है. उसमें मन्त्रय शक्ति आ जाती है जिससे वह अच्छी सलाह दे सकता है. जातक को अपने इष्ट देवता पर पूरा विश्वास हो जाता है उसको सट्टा आदि से भी कुछ प्राप्ति होती है. धन में विशेष बृद्धि होती है. किसी पुत्री की प्राप्ति होती है या होने की संभावना बनती है. उसका मन आमोद-प्रमोद की ओर विशेष रूप से इस अवधि में आकर्षक होता है.
यदि पंचमेश चन्द्रमा पीड़ित है तो व्यक्ति के धन का नाश होता है उसके भाग्य की सख्त हानि होती है. जातक की स्मरण (शक्ति) में कमी आ जाती है विशेषतः 1. जबकि चन्द्र पर पंचम भाव पर राहु तथा शनि का प्रभाव हो तो जातक की योजनाएं पूरी नहीं हो पाती उसको सट्टे आदि में हानि होती है. यदि बुध. चन्द्र और गुरू इक्ट्ठे अथवा अलग-2 राहु तथा शनि का प्रभाव होने की दशा में पागल तक हो जाने का भाव रहता है.
षष्ठ भाव का स्वामी कुम्भ लगन की कुण्डली में चन्द्रमा छठे भाव का स्वामी बन जाता है. यदि चन्द्रमा बलवान हो तो धन का मध्यम सुख देता है. शत्रुओं को कम करता है स्वास्थ्य को सुन्दर रखता है. इसके अतिरिक्त अपनी दशा/अन्तरदशा में अधिक परिश्रम करता है.
यदि चन्द्रमा षष्ठेश होकर निर्बल और पीड़ित है तो रक्त में खराबी पैदा करता है इस अवधि में शत्रुओं की वृद्धि होती है और पुत्र के धन का नाश होता है यदि चन्द्रमा पर राह तथा शनि प्रभाव हो तो पुत्र, विद्या में खराबी पैदा करता है.
सप्तम भाव का स्वामी मकर लगन की कुण्डली में चन्द्रमा सप्तम भाव का स्वामी बन जाता है यदि बलवान हो तो अपनी दशा/ अन्तरदशा में विवाह का सुख देता है विलासता में वृद्धि करता है राज्य की ओर से लाभ देता है मान तथा धन में वृद्धि कराता है भूमि, जायदाद, वाहन आदि का सुख भी देता है. यदि चन्द्रमा निर्बल है और पाप प्रभाव में है तो जातक को अपनी दशा भुक्ति में रोगी रखता है. व्यापार में हानि राज्य की ओर से परेशानी भूमि जायदाद, वाहन आदि सुख से वंचित रखता है शादी होते-2 टूट जाती है.
अष्टम भाव का स्वामी धनु लग्न की कुण्डली में चन्द्रमा अष्टम भाव का स्वामी बन जाता है अगर चन्द्रमा बलवान है तो धन के विषय में अच्छा कार्य करेगा अनुसन्धान में रत रहता है मनुष्य का स्वास्थ्य साधारण रहता है. यह इसकी दशा भूक्ति का फल है. यदि चन्द्रमा क्षीण है और पाप प्रभाव में हो अचानक व्यक्ति को काफी शारीरिक कष्ट सहना पड़ता है धन की कमी रहती है. अनुसन्धान कार्यों में जातक को सफलता हैं प्राप्त नहीं होती. यदि अष्टम भाव और चन्द्रमा दोनों पीड़ित हो और साथ ही चन्द्रमा लग्न से अष्टम अष्टमेश हो तो इस अवधि में मनुष्य विदेश यात्रा करता है. यदि ऐसी अवस्था में चन्द्र का संबंध द्वितीय भाव और उसके स्वामी से रहे तो मनुष्य विदेश यात्रा संबंधी होती, ऐसा धनु लगन की कुण्डली में दूसरे भाव में शनि और चन्द्रमा के युति के समय होता है.
नवम भाव का स्वामी वृश्चिक लगन की कुण्डली में चन्द्रमा नवम भाव का स्वामी बनता है यदि बलवान हो तो वह अपनी दशा भुक्ति में मनुष्य को धर्मप्रिय बनाता है. उसके विचार इस अवधि में बहुत ऊँचे रहते है उसके भाग्य तथा धन में विशेष वृद्धि होती है उसकी स्त्री के छोटे बाई के भाग्य में तथा मान में वृद्धि होती है क्योंकि पत्नी से तीसरा स्थान पत्नी के छोटे भाई का बनता है. छोटे भाई बहन के पत्नी/पति की भाग्य उन्नति बनती है क्योंकि तीसरा स्थान नौवा स्थान तीसरे से सप्तम बन जाती है सट्टें आदि व्यापार से लाभ रहता है राज्य की और कृपा दृष्टि बनी रहती है पुत्र भी उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है.
नवमेश चन्द्रमा यदि क्षीण हो और पाप प्रभाव में हो तो अपनी दशा मुक्ति में धन
का नाश करता है. जातक को व्यापार अथवा नौकरी में भारी हानि उठानी पड़ती है. उसका मन धार्मिक कार्यों से उचाट रहता है. उसके पिता को आर्थिक हानि और शरीरिक कष्ट रहता है जातक की स्त्री के छोटे बहन भाईयों के भाग्य को भी हानि पहुंचती है. जातक की स्त्री के छोटे बहन के पति के स्वस्थ्य तथा धन को भी हानि पहुंचती है सट्टे आदि व्यापार में घाटा उठाना पड़ता है. पुत्र को भी आर्थिक हानि का समय होता है. 
दशम भाव का स्वामी तुला लगन की कुण्डली में चन्द्रमा दशम भाव का स्वामी बन जाता है यदि चन्द्रमा दशमेश होकर बलवान हो तो राज्य सत्ता तथा अधिकार को प्राप्ति इसकी दशा भुक्ति में होती है जातक को मान और यश मिलता है उसके धन में भी वृद्धि होती है. इस अवधि में इसे सास से धन मिलने की सम्भावना रहती है क्योंकि सप्तम स्थान पत्नी का है और सप्तम से दसवां चौथा स्थान बना जो कि पत्नी के मां का स्थान बनता है जातक का मन यज्ञीय और परोपकार का भावनाओं से भरपूर रहता है उसके मन में महत्वाकांक्षा रहती है और उसको कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. यदि चन्द्र सप्तम में हो तो प्रायः प्रेम विवाह होता है.
यदि चन्द्रमा दशमेश होकर क्षीण हो और पाप प्रभाव में हो तो राज्य के अधिकारियों की ओर से परेशानी रहती है मनुष्य को अधिकार से हाथ धोने पड़ते है विशेषता जबकि दशम भाव और चन्द्र पर राहु तथा शनि का प्रभाव हो. ऐसी स्थिति में उसे सर्वत्र विफल होना पड़ता है क्योंकि दोनों शत्रु चन्द्रमा को घेरे रहे है. उसके भाव और यश में कमी आती है. जातक के धन में बहुत कमी आ जाती है. जातक का मन धर्म के कार्य में बहुत कम लगता है.
एकादश भाव का स्वामी कन्या लगन की कुण्डली में चन्द्रमा एकादश भाव का स्वामी धन की प्राप्ति होती है स्त्री वर्ग से लाभ इस की दशा भुक्ति में रहता है जातक का मन शुभ कर्मों की और प्रवृत रहता है. उसको बड़े भाईयों, बहनों तथा मित्रों से इस अवधि में सहायता मिलती है छोटे भाई के भाग्य में वृद्धि होती है यदि चन्द्रमा और शुक्र इक्ट्ठे हो तो इस अवधि में बहुत धन आता है. क्योंकि कन्या लगन में शुक्र द्वितीयेश और चन्द्रमा लाभेश बनता है इसलिए दोनों के युति से धन आता है.
चन्द्रमा यदि एकादशेश होता हुआ क्षीण हो और उस पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो धन की आय कम हो जाती है. स्त्री वर्ग से जातक को इस चन्द्रमा की दशा युक्ति में हानि उठानी पड़ती है. मन में दुख की अनुभूति होती है जिस भाव में चन्द्रमा की स्थिति हो उसका विरोध जातक जान बूझकर करता है. अत: इस दिशा में उस भाव से हानि उठानी पड़ती है. (यह समय माता के स्वास्थ्य के लिए विशेष रूप से हानिप्रद रहती है) क्योंकि पंचम से यह भाव अष्ठम बनता है.
द्वादश भाव का स्वामी सिंह लगन की कुण्डली में चन्द्रमा द्वादश भाव का स्वामी बनता है यदि बलवान और शुभ प्रभाव में हो तो धन में वृद्धि करवा कर अपनी दशा भुक्ति में बहुत अच्छा धन और सुविधा देता है. जातक को नींद आदि पलंग के सुख खूब मिलते रहते है. व्यय भी साथ-2 बढ़ जाता है परन्तु शुभ दिशा में होता है. मनुष्य का मन भ्रमण में बहुत रहता है. द्वादश भाव भोग है और जब द्वादशेश बलवान हो तब भोग की सब सामग्री मिलती है.
यदि चन्द्रमा द्वादशेश क्षीण और पापयुक्त पापदृष्ट हो और साथ ही द्वादश भाव पर भी ऐसा ही पाप प्रभाव हो तो चन्द्रमा की दशा अथवा भुक्ति में जातक आंख से हीन हो जाता है. विशेषतया उसकी बाई आंख को कष्ट पहुंचता है. उसका व्यय अनुचित होता है यदि चन्द्र पर तथा द्वादश भाव पर राहु का प्रभाव है और लगनेश पर भी तो कारागार में व्यक्ति पहुंच जाता है इस अवधि मे पिता को विशेष मानसिक कष्ट होता है. छोटे भाई को मान हानि होती है. क्योंकि तीसरा स्थान छोटे भाई बहन से बारहवां स्थान उसके लिए दसवां बन जाता है और दसवां स्थान मान सम्मान का है. द्वादशेश पीड़ित होने से मनुष्य को सुख सुविधा की चीजें मुश्किल से प्राप्त होती है.
यह चन्द्रमा के 12 घरों के स्वामी बनने का फल है लेकिन सही और सम्पूर्ण फलादेश पूरी कुण्डली देखने से पता चलेगा ज्योतिष में 2000 नियम है जब एक नियम दूसरे नियम को क्रास कर जाता है तब परिणाम कुछ और किस्म का होता है.

Astro nirmal  ·

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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