मुंबई. महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नारवेकर के सामने शिवसेना बनाम शिवसेना मामले की सुनवाई हुई. दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जल्द ही स्पीकर सुनवाई के संबंध में समय सारिणी घोषित करेंगे. अगली सुनवाई 13 अक्तूबर को तय की गई है.
दरअसल, सभी याचिकाओं को एक साथ जोडऩे और साथ में ही सुनवाई करने के लिए शिवसेना (यूबीटी) की ओर से याचिका दायर की गई थी. इसका शिवसेना शिंदे गुट ने विरोध किया था. उनका कहना है कि याचिकाओं को व्यक्तिगत रूप से सुना जाए और प्रत्येक याचिका के संबंध में साक्ष्य दिए जाएं.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 18 सितंबर को महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट के शिवसेना विधायकों की अयोग्यता संबंधी याचिका पर फैसला लेने के लिए समयसीमा तय करने का निर्देश दिया था. फैसला लेने में हो रही देरी पर नाराजगी जताते हुए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष को उच्चतम न्यायालय की गरिमा का सम्मान करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत 56 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं को एक सप्ताह के भीतर सुनवाई के लिए अपने सामने सूचीबद्ध करें. कोर्ट ने अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए एक समय-सारणी निर्धारित करने का भी निर्देश दिया था.
कोर्ट ने कहा था कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही को अनिश्चितकाल तक टालकर नहीं रख सकते. कोर्ट के निर्देशों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए. सीजेआई ने संविधान पीठ के फैसले का जिक्र करते हुए पूछा कि कोर्ट के 11 मई के फैसले के बाद स्पीकर ने क्या किया? पीठ ने यह भी कहा कि मामले में दोनों पक्षों को मिलाकर कुल 34 याचिकाएं लंबित हैं. दरअसल, फैसले में स्पीकर को उचित अवधि में अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने का निर्देश दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर ने कहा था कि अयोग्यता याचिकाओं पर सुनवाई का अपना तरीका होता है. उचित समय में निर्णय लिया जाएगा. मेरी जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि स्पीकर एक सांविधानिक पद है और कोर्ट उसके कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा था कि फैसला लेने में न तो जल्दबाजी करेंगे और न ही विलंब.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-मराठा आरक्षण आंदोलन का महाराष्ट्र की राजनीति पर प्रभाव
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