मराठा आरक्षण आंदोलन का महाराष्ट्र की राजनीति पर प्रभाव

मराठा आरक्षण आंदोलन का महाराष्ट्र की राजनीति पर प्रभाव

प्रेषित समय :15:12:38 PM / Tue, Sep 19th, 2023
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नवीन कुमार, मुंबई, देश के लगभग हर समुदाय में ऐसे लोग हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. वे आरक्षण का सहारा लेना चाहते हैं ताकि उनका सामाजिक और आर्थिक रूप से विकास हो सके. मराठा समाज भी इसके लिए आंदोलन कर रहा है. यह आंदोलन महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित कर रहा है. राज्य के जालना जिले में मनोज जरांगे के आंदोलन ने अलग रूप दे दिया है. इससे एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपानीत सरकार की परेशानी बढ़ गई है. कुछ महीने बाद ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव को भी मराठा समाज प्रभावित कर सकता है. राज्य में मराठा समाज की आबादी लगभग 33 फीसदी है. इस समाज का राज्य की राजनीति पर दबदबा है. इस समाज ने ही राज्य को सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री दिया है. सांसद और विधायक भी इस समाज के अधिक हैं. इस समय एकनाथ शिंदे मराठा मुख्यमंत्री हैं तो उपमुख्यमंत्री अजित पवार भी मराठा हैं. मराठा समाज राज्य की राजनीति को भले ही प्रभावित करे, बावजूद इसके मराठा आरक्षगया थाराजनीति में उलझ गया है. हर राजनीतिक दल इसे अपने बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रहा है. इसी वजह से मराठा आरक्षण आंदोलन ‌पांच दशक से भी ज्यादा पुराना हो चुका है. मराठा आरक्षण का मसला सुलझ नहीं रहा है. कानूनी तौर पर तो इसे एक तरह से खारिज ही कर दिया गया है. फिर भी मराठा को आरक्षण दिलाने के लिए राज्य सरकार ही नहीं बल्कि विपक्ष भी सकारात्मक भूमिका में है. जरांगे के आंदोलन से मराठा समाज जागा हुआ है और एक मराठा लाख मराठा का संदेश दे रहा है.

कांग्रेस और एनसीपी ने मराठा आरक्षण को समझा और इसे कानूनी मान्यता दिलाने की पहल भी की. 25 जून 2014 को पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली कांग्रेस-एनसीपी की डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठों के लिए 16 फीसदी और मुसलमानों के लिए 5 फीसदी सीटें आरक्षित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी. शायद चव्हाण को भरोसा था कि चुनाव से पूर्व मराठा आरक्षण राजनीतिक लाभ दिलाने में मददगार साबित होगा. लेकिन मराठा आरक्षण पर इस तरह से काम करने के बाद भी फिर से कांग्रेस-एनसपी की सरकार नहीं बन पाई. नरेंद्र मोदी का करिश्मा रंग लाया और महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई. लेकिन मराठों को जिस तरह से आरक्षण देने का फैसला लिया गया था वह अदालत में कमजोर पड़ गया. स्वाभाविक तौर राजनीतिक लाभ के चक्कर में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का खेल शुरू हो गया. भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कांग्रेस ने मराठा आरक्षण को लेकर गंभीर नहीं थी. आनन-फानन में इस पर फैसला लिया गया जिससे यह अदालत में टिक नहीं पाया. जब भाजपा की सरकार बनी तो कांग्रेस ने भी उसी तरह का आरोप भाजपा पर लगाया. भाजपा ने भी उसी गलती दोहराया. कांग्रेस-एनसीपी की उसी सुधार को भाजपा ने दोहराया और अदालत से इसे लागू करने की मांग की. लेकिन भाजपा सरकार की सारी दलीलें अदालत में नाकाम साबित हुई. मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता. कोर्ट ने साल 1992 में आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फीसदी तक सीमित कर दिया था. अदालत में मात‌ खाने के बावजूद राज्य की शिंदे सरकार भी मराठा को आरक्षण दिलाने का खोखला दावा कर रही है. जब कानूनी तौर पर इसे टिकाना मुश्किल है तो अदालती खेल खेलना उचित नहीं है. जरांगे के आंदोलन के कारण शिंदे सरकार हरकत में है. शिंदे सरकार ने एक जीआर के जरिए मराठों को कुणबी जाति का प्रमाण पत्र देने की तैयारी की है. यह मराठवाड़ा के मराठों के लिए है. यह तर्क है कि जिनके पास निजाम काल के रिकॉर्ड हैं उनको कुणबी-मराठा, मराठा-कुणवी के रूप में जाति प्रमाण पत्र दिया जाएगा. जरांगे ने जीआर का स्वागत तो किया. लेकिन उन्होंने इसमें से वंशावली शब्द हटाने की मांग की. शिंदे ने जीआर में किसी तरह का संशोधन करने से साफ मना कर दिया है. इस मुद्दे पर अब राजनीति गरमा गई है. कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने शिंदे सरकार के इस फैसले की आलोचना की. वहीं मराठा क्षत्रप और एनसीपी प्रमुख शरद पवार का मानना है कि मराठा समुदाय को ओबीसी में आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. मराठा समाज को 2018 में अलग से आरक्षण दिया गया था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है.

सुप्रीम अदालत में मात खाने के बावजूद शिंदे सरकार भी मराठा समाज को खुश करने का खेल खेल रही है. मराठा आरक्षण को लेकर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका. फिर भी शिंदे कहते हैं कि मराठा समाज को आरक्षण दिलाने की हर संभव कोशिश की जाएगी. अदालत में ऐसे तर्क रखे जाएंगे जिससे मराठा आरक्षण दिए जा सकेंगे. दूसरी ओर मराठा आरक्षण को लेकर शिंदे सरकार जिस तरह से काम कर रही है उससे कुणबी समाज और पिछड़े वर्ग ने अपना विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है. कुणबी समाज और पिछड़े वर्ग के लोगों का कहना है कि मराठा को कुणबी की प्रमाण पत्र देने से उसे ओबीसी में शामिल किया जाएगा और मराठा समाज को इस तरह से आरक्षण देने से उनके हक मारे जाएंगे. इसलिए कुणबी समाज और पिछड़ा वर्ग भी आंदोलन के मूड में है. यह शिंदे सरकार के लिए परेशानी का सबब है. शिंदे सरकार में शामिल कुणबी समाज और पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने भी मराठा आरक्षण के खिलाफ बोलना शुरू किया है. शिंदे सरकार में कैबिनेट मंत्री और पिछड़ों के नेता छगन भुजबल और भाजपा की वरिष्ठ नेता एवं पिछड़ों की नेता पंकजा मुंडे ने स्पष्ट कहा है कि पिछड़ों के आरक्षण में मराठा समाज को हिस्सेदारी नहीं दी जा सकती है. हालांकि, राज्य के उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने पिछड़े वर्ग के मूड को देखते हुए दावा किया है कि मराठा आरक्षण की वजह से पिछड़ा वर्ग को कोई नुकसान नहीं होगा. लेकिन यह भी आशंका जाहिर की जा रही है कि मराठा आरक्षण के कारण समाज में मराठा, कुणबी और पिछड़े वर्ग के बीच द्वेष बढ़ेगा. आरक्षण की यह आग महाराष्ट्र और देश दोनों के लिए बेहतर नहीं है. मुस्लिम समाज भी पांच फीसदी आरक्षण की मांग कर रहा है.

महाराष्ट्र में आरक्षण की जो वर्तमान स्थिति है उसके मुताबिक अनुसूचित जाति 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 7.5 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग 27 फीसदी और अन्य 2.5 फीसदी है यानि कुल 52 फीसदी आरक्षण है. राज्य की राजनीति में हावी रहने वाले मराठा समाज में शक्तिशाली शक्कर मिल मालिकों और जमींदारों के अलावा संकटग्रस्त किसान और बेरोजगार युवा भी हैं. मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में रहने वाले मराठा को 1980 के मंडल आयोग ने अगड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत किया था. लेकिन महाराष्ट्र में सैद्धांतिक तौर सभी राजनीतिक दल मराठा आरक्षण के समर्थक में है. बावजूद इसके मराठा आरक्षण का पेंच अब तक फंसा हुआ है. शिंदे के लिए भी मराठा आरक्षण एक चुनौती है. इस समय उन पर मोदी के लिए महाराष्ट्र से 48 लोकसभा की सीटों में अधिकांश सीटें जीताने का दबाव है. राज्य में मराठों की मजबूत राजनीतिक काम है. राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक माना जाता है. इसे नाराज करके शिंदे सरकार को जीत का सपना साकार करना कठिन काम है. अब मराठा समाज इस इंतजार में है कि शिंदे सरकार कब और किस तरह से उसे आरक्षण दिलाने में कामयाब होती है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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