विरहपीडा़हर स्तोत्रम्
साधनाविधि:-आधुनिक युग में पति पत्नी के बीच तनाव,टकराव, आपसी कलह आदि की स्थिति प्रायः देखने को मिलती है। इस परिस्थिति में यह स्तोत्र विशेष लाभकारी है।
पति पत्नी के बीच समस्त विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल करके उनके बीच सामंजस्य स्थापित कर प्रेम में वृद्धि करने वाला यह अचूक प्रयोग है।
पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर बैठकर घी का दीपक जलाकर इस स्तोत्र का 100 या 1000 पाठ करने से अभीष्ट सिद्धि होती है। सोते समय बिस्तर पर बैठकर 11दिनों तक एक एक पाठ प्रतिदिन करने से आपसी कलह क्लेश शीघ्र दूर होता है। गुरुवार को इसका पाठ करना विशेष लाभदायक होता है।
विनियोग:-ॐ अस्य विरहपीडा़हर स्तोत्रस्य धाताऋषिः अनुष्टुप् छन्दः कामिनी स्वरूपा परमेश्वरी देवता मम (अमुकस्य / अमुक्याः) समस्त विरह वेदना निवारणे प्रिया /प्रेमी वियोग नाशने च पाठे विनियोगः ।
~~ करन्यासः~~
ॐ ब्राह्म्यै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ परमात्मस्वरूपायै तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ परमानन्दरूपिण्यै मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ प्रकृत्यै अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ भद्रदायिन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ सर्वमङ्गलायै करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
~~हृदयादिन्यासः~~
ॐ ब्राह्म्यै हृदयाय नमः ।
ॐ परमात्मस्वरूपायै शिरसे स्वाहा ।
ॐपरमानन्दरूपिण्यै- शिखायै वषट् ।
ॐ प्रकृत्यै कवचाय हुम्।
ॐ भद्रदायिन्यैक्षनेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ सर्वमङ्गलायै अस्त्राय फट् ।
~~ध्यानम्~~
चराचरे विश्वमिदं प्रपञ्चे सर्वत्र व्याप्तास्ति शिवावरेण्या।
त्वमेव प्रकृतिश्च परानृरूपा त्वं योगिनी भद्रप्रदाप्रसिद्धा।।
आत्मा- मनश्चेन्द्रिय बुद्धिरूपा सर्वस्वरूपा ननु कालरूपा।
अर्द्धश्वरी योगकरी सुध्येया हृदिस्थिता रिक्तहृदा मनस्विनी।।
मंत्र:-"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं ह्रीं ऐं।"
!! स्तोत्रम्!!
"ब्राह्मी ब्रह्मस्वरूपे त्वं मां प्रसीद सनातनि ।
परमात्म-स्वरूपे च परमानन्दरूपिणि ।।1।।
ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे मां प्रसीद भवार्णवे।
सर्वमङ्गलरूपे च प्रसीद सर्वमङ्गले।। 2।।
विजये शिवदे देवी मां प्रसीद जयप्रदे।
वेदवेदाङ्गरूपे च वेदमातः प्रसीद मे।। 3।।
शोकघ्ने ज्ञानरूपे च प्रसीद भक्तवत्सले।
सर्वसम्पत् प्रदे माये प्रसीद जगदम्बिके।।4।।
लक्ष्मीर्नारायण क्रोडे स्रष्टुर्वक्षसि भारती।
मम क्रोडे महामाया विष्णुमाये प्रसीद मे।।5।।
कालरूपे कार्यरूपे प्रसीद दीनवत्सले ।
कृष्णस्य राधिके भद्रे प्रसीद कृष्णपूजिते।।6।।
समस्त कामिनीरूपे कलांशेन प्रसीद मे।
सर्वसम्पत् स्वरूपे त्वं प्रसीद सम्पदां प्रदे।।7।।
यशस्विभिः पूजिते त्वं प्रसीद यशसां निधेः ।
चराचर स्वरूपे च प्रसीद मम माचिरम् ।।8।।
मम योगप्रदे देवी प्रसीद सिद्ध योगिनि ।
सर्वसिद्धि स्वरूपे च प्रसीद सिद्धिदायिनि।।9।।
अधुना रक्ष मामीशे प्रदग्धं विरहाग्निना ।
स्वात्मदर्शन पुण्येन क्रीणीहि परमेश्वर ।।10।।"
!! फलश्रुतिः!!
" एतत् पठेच्छृणुयात् च न वियोगज्वरो भवेत् ।
न भवेत् कामिनी भेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि ।।"
॥पतिपत्नी विरहपीडाहर स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-ग्रह-नक्षत्रों की चाल...कुंडली का हाल जानकर टीम इंडिया में खिलाड़ियों का चयन
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