महाराष्ट्र में सरकारी अस्पताल या राज्य सरकार बीमार!

महाराष्ट्र में सरकारी अस्पताल या राज्य सरकार बीमार!

प्रेषित समय :19:18:51 PM / Wed, Oct 11th, 2023
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नवीन कुमार

महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों में दो से तीन दिनों के अंदर नवजात शिशुओं, गर्भवती महिलाओँ सहित लगभग सौ लोगों की मौत ने स्वास्थ्य सेवाओं के साथ राज्य के एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपानीत सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार खुद ही बीमार है जिससे सरकारी अस्पताल भी बीमार हैं और इसका नतीजा सरकारी अस्पतालों में देखने को मिल रहा है. विपक्ष का आरोप काफी हद तक सही है. लेकिन राज्य के मुखिया शिंदे की प्राथमिकता हमेशा से स्वास्थ्य को लेकर रही है. वे चाहते हैं कि राज्य का हर व्यक्ति स्वस्थ रहे और सरकारी अस्पतालों में सही इलाज मिले. इसलिए उनकी सरकार ने 15 अगस्त से राज्य के लोगों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की घोषणा की. यहां तक कि नासिक और अमरावती के कैंसर अस्पतालों में भी मुफ्त में इलाज होगा. इस घोषणा से पहले शिंदे के गृह जिला ठाणे के कलवा सरकारी अस्पताल में 18 लोगों की मौत ने उन्हें परेशान कर दिया था. इसके बाद उन्होंने मुफ्त स्वास्थ्य सेवा की घोषणा की थी. इस घोषणा के एक महीने के अंदर ही नांदेड़, छत्रपति संभाजीनगर और नागपुर के सरकारी अस्पतालों में मौत का तांडव जिस तरह से हुआ उससे अस्पताल प्रशासन की लापरवाही भी उजागर हुई है. अस्पताल प्रशासन ने अपना दामन बचाने के लिए यह कहना शुरू कर दिया कि उनके पास क्षमता से ज्यादा और बुरी हालत में मरीज आते हैं. लेकिन अस्पताल प्रशासन ने यह नहीं बताया कि उसने सरकार से अस्पताल में क्षमता बढ़ाने की मांग क्यों नहीं की. अस्पताल प्रशासन की लापरवाही ज्यादा है. अस्पताल में दवाओं की कमी नहीं है. शिंदे सरकार ने सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओँ के लिए बजट में तीन गुना बढ़ोतरी की है.

शिंदे सरकार ने मुफ्त चिकित्सा की जो घोषणा की है उसका लाभ 2418 सरकारी अस्पतालों में राज्य के 25 मिलियन से ज्यादा लोगों को मिलेगा. लेकिन ठाणे, नांदेड़, छत्रपति संभाजीनगर और नागपुर के सरकारी अस्पतालों ने मौत का जो दृश्य दिखाया है उससे यह डर भी पैदा हो गया है कि सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में इलाज होगा या मुफ्त में मौत मिलेगी. अस्पतालों में इलाज के दौरान मरीजों की मौत तो हो जाती है. लेकिन इस मौत की जिम्मेदारी से अस्पताल और राज्य प्रशासन दोनों अपने हाथ खड़े कर लेते हैं. इसके बाद राजनीति शुरू हो जाती है. आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच असली मुद्दा यूं ही रह जाता है और कुछ दिनों के बाद मौत का सिलसिला फिर से देखने को मिलता है. इस समय भी मौत पर राजनीति हो रही है. लेकिन जिनके बच्चे गए या जो गर्भवती महिलाएं गुजर गईं उनके परिवार का दर्द समझने वाला कोई नहीं है. अगर राज्य सरकार ने अपना दिल बड़ा किया तो परिजनों को मुआवजे दे देती है. लेकिन राज्य और अस्पताल के प्रशासन की ओर से बरती जाने वाली लापरवाही का निदान नहीं किया जाता है. एक चिंता की बात यह भी है कि नागपुर के सरकारी अस्पतालों में मौत की घटना घटी है. यह नागपुर राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का गृह जिला है जो राजनीतिक रूप से काफी जागरूक हैं. लेकिन वे अपने जिले की जनता के स्वास्थ्य को लेकर सजग नहीं दिख रहे हैं. अगर वे थोड़े भी सजग रहते तो उनके जिले के सरकारी अस्पतालों में शायद इस तरह से मौत वाली घटना नहीं घटती. इसी नागपुर में आरएसएस का मुख्यालय भी है. अब आरएसएस के स्वयंसेवकों की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे नागपुर के सरकारी अस्पतालों में दुर्व्यवस्था को ठीक कराने के लिए काम करें. आरएसएस के स्वयंसेवक हमेशा लोगों की सेवा करने के लिए आगे रहते हैं. अगर आरएसएस के स्वयंसेवक जागरूक हो गए तो अस्पताल के प्रशासन की लापरवाही का शिकार आम मरीज नहीं हो पाएंगे और फिर से मौत का तांडव देखने को नहीं मिलेगा.

राज्य सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की घोषणा करने से पहले स्वास्थ्य का अधिकार नीति को मंजूरी दी थी. राज्य सरकार का मुफ्त इलाज का फैसला चिकित्सा शिक्षा विभाग के अस्पतालों और मेडिकल कालेजों पर लागू नहीं है. राज्य में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, ग्रामीण अस्पताल, महिला अस्पताल, जिला अस्पताल और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के अलावा नासिक और अमरावती के कैंसर अस्पतालों में लागू है. सरकारी स्तर पर घोषणाएं तो होती हैं. लेकिन चिकित्सा को लेकर क्या सच में राज्य के सरकारी अस्पतालों की हालत ऐसी है कि लोग मुफ्त में इलाज कराकर स्वस्थ होकर अपने घर लौट सकते हैं. एक जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में सरकारी स्वास्थ्य सेवा में डॉक्टरों के 62 फीसदी और विशेषज्ञों के 80 फीसदी पद खाली हैं. इससे भी कल्पना की जा सकती है कि मरीजों का इलाज कैसे संभव है. किसी भी तरह की घोषणाएं कागजों पर ज्यादा दिन जिंदा रहती हैं. अब सरकार के मंत्री खुद बताते हैं कि सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में केस पेपर बनाने आदि के लिए लोगों को देर तक कतार में रहना पड़ता है जिससे इलाज में देर होती है. इस सच्चाई के साथ ही केस पेपर से सरकार की तिजोरी में 71 करोड़ रुपए हर साल जमा होते हैं. अब जब मुफ्त सेवा की बात आती है तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल तक पेपर खर्च से लेकर ऑपरेशन तक का खर्च नहीं करना पड़ेगा. लेकिन सरकार की मुफ्त सेवा योजना का लाभ सिर्फ राज्य सरकार के अस्पतालों में ही लागू होगी. महानगरपालिकाओं के अस्पतालों में यह लाभ नहीं मिलेगा. महाराष्ट्र में स्वास्थ्य योजनाओं को चलाने के लिए राज्य सरकार के पास कुल 12 से 13 हजार करोड़ रूपए का बजट है और मुफ्त इलाज सेवा योजना लागू करने से राज्य सरकार को करीब 100 से 150 करोड़ रुपए का बोझ उठाना पड़ेगा. हालांकि, इससे लोगों को मेडिकल जांच कराने और इलाज कराने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.

सरकारी घोषणाओं में जनहित कम और राजनीति ज्यादा होती है. महाराष्ट्र में कोरोना काल से पहले और बाद में भी स्वास्थ्य सेवाओं पर सवालिया निशान लगे हुए हैं. कोरोना महामारी के दौरान महाराष्ट्र देश का पहला राज्य था जिसने राज्य के लोगों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की थी. इस योजना का लाभ लोगों को महात्मा ज्योतिबा फुले आरोग्य योजना के तहत दिया जाता है. लेकिन अब शिंदे सरकार ने जो योजना लागू की है उसके लिए कमोबेश इसी तरह से लोगों को लाभ मिलेगा. इस योजना के लागू होते ही राज्य के सरकारी अस्पतालों ने अपनी दयनीयता का परिचय दे दिया. मौत की खबर आते ही मुख्यमंत्री शिंदे ने जांच के आदेश दे दिए हैं. यह सिर्फ खानापूर्ति है. ऐसा नहीं है कि सरकारी अस्पतालों की असलियत से राज्य सरकार वाकिफ नहीं है. लेकिन इस समय राज्य में राजनीतिक उथल पुथल भी मची हुई है. राज्य में भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) गठबंधन की सरकार है. आगामी लोकसभा और विधानसभा के चुनावों को देखते हुए तीनों दलों के मुखिया अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में लगे हुए हैं. विपक्ष उतना मुखर नहीं है. इसलिए सत्ता पक्ष के दल कागजी जांच को आगे बढ़ा रहे हैं ताकि लोग इसी जांच में उलझे रहें. शिंदे गुट के एक नेता ने राजनीतिक लाभ के लिए नांदेड़ के डॉक्टर शंकरराव चव्हाण सरकारी अस्पताल के डीन श्यामराव वाकोड़े से अस्पताल के गंदे टॉयलेट साफ करवाया. लेकिन उस नेता ने इस अस्पताल की दयनीय हालत पर कुछ नहीं किया. अब सोचिए, नेताजी की इस हरकत से उन परिजनों के दिल पर क्या बीत रही होगी जिनके नवजात शिशु या गर्भवती महिला मौत के शिकार हुए. इस समय तो जरूरत यह है कि अस्पताल और राज्य प्रशासन मिलकर अस्पतालों में ऐसी व्यवस्था करे जिससे आने वाले समय में मौत का यह तांडव दोबारा देखने को न मिले.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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