जाति, धर्म और सम्प्रदाय से उपर उठकर है छठ महापर्व

जाति, धर्म और सम्प्रदाय से उपर उठकर है छठ महापर्व

प्रेषित समय :20:09:27 PM / Fri, Nov 17th, 2023
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अनिल मिश्र,/पटना लोक आस्था का महापर्व छठ नहाय खाय के साथ आज से शुरू हो गए हैं. इस महापर्व को आदि काल से बिहार सहित देश के कई हिस्से के साथ-साथ विदेशों में भी मनाए जाने की प्रचलन बढ चढ़कर है. इस महापर्व के अवसर पर विभिन्न तरह की सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है .जिन्हें समाज के विभिन्न वर्ग के लोग इसे बनाते हैं.

इस महापर्व में जाति, धर्म, पंथ और सम्प्रदाय से उठकर इस पवित्र महापर्व छठ को पूरी आस्था के साथ मनाने का प्रचलन वर्षों से चली आ रही है.  जहां वगैर पंडों और पुरोहितों के बिना यह महापर्व अपनी जानकारी के मुताबिक मनाए जाने का प्रचलन जीवित है .वहीं इस आस्था के महापर्व कुछ जिले के कुछ गांवों में अजान पड़ने वाले घरों में छठ के गीत सुनने को इधर हाल के वर्षों से मिल रहे हैं. 

सूर्योपासना का महापर्व छठ केवल लोक आस्था का पर्व नहीं है बल्कि इस पर्व में जाति के साथ मज़हबों के बीच की दूरियां भी मिट जाती है. इस छठ महापर्व में मिट्टी के चूल्हे पर खरना के लिए खीर, अर्ध्य के लिए ठेकुआं सहित पूरी प्रसाद का पकवान छठ व्रती बनाती हैं. वह अधिकांश चूल्हे मुस्लिम परिवार बनाते आ रहे हैं. पटना के वीरचंद पटेल मार्ग पर मिट्टी के चूल्हे बनाकर बेचने वाली सकिना खातुन बताती है कि मेरे ससुर 40-50साल  पहले छठ के अवसर पर चूल्हे बनाने का काम शुरू किया था. उनके देहांत के बाद उनका पूरा परिवार इस पेशा से जुड़कर पूरी पवित्रता के साथ नहा- धोकर प्रति दिन बिना लहसुन प्याज खाये इसका निर्माण पूरी लगन के साथ करते आ रहे हैं. वहीं कटिहार शहर के रहने वाले मोहम्मद कासिम और उनका परिवार पिछले 20साल से छठ के मौके पर उनका परिवार मिट्टी का चूल्हे बना रहे हैं. मोहम्मद कासिम की वेवा रवीना खातुन बताती हैं कि उनके शौहर का इंतकाल छह साल पहले हो गई थी. फिर भी उनके साथ काम करने के कारण उनके गुजरने के बाद मेरे साथ परिवार के अन्य सदस्य इसका निर्माण कर रहे हैं. 

जबकि छठ महापर्व में प्रसाद के रुप में सूप पर चढ़ाने के बाद घर के दरवाजे पर साटने वाले अरता बिहार के छपरा जिले के झौवा नामक गांव में पिछ्ले 100साल से ज्यादा वक्त से एक मुस्लिम परिवार द्वारा बनाई जाती है. जिसका बिक्री बिहार सहित देश के कोने कोने के साथ विदेशों में भी सप्लाई होती है. यह अरता अकवन के फूल से निकलने  वाला रुई से बनाया जाता हैं.                       
  जहां पूजन के विभिन्न सामग्रियां अलग-अलग जाति और वर्ग के लोग से खरीददारी करते हैं वहीं सारण, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, पटना सहित अन्य जिले के कई ऐसे गांव मिल जायेंगें जहां कभी अजान पड़ते थे वहां आज छठ के गीत बज रहे हैं. इन गांवों में मुस्लिम महिलाएं पूरी हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाज से यह महापर्व करती हैं. वैशाली जिले के लालगंज प्रखण्ड के एतवारपुर गांव की सकीना खातुन कहती हैं कि गांव के एक वृध्द महिला की सलाह पर उन्होने छठ पर्व मनाना शुरू किया था, उसके बाद से उनके घर में सब मंगल हो रहा है. किसी तरह का कोई अनहोनी नहीं हुई है. सकिना के मुताबिक इस गांव की  और कई मुस्लिम महिलाएं भी पूरी निष्ठापूर्वक यह महापर्व मनाती हैं.इसी तरह गोपालगंज के बरौली प्रखण्ड के रतनसराय गांव के नजीया खातुन कहतीं हैं कि वे पिछ्ले छह सात साल  से छठ करतीं आ रहीं हैं. वो बताती हैं कि छठी मइया सबकी मनोकामना पूरी करती हैं. जबकि छपरा (सिवान)के विठुला गांव निवासी अजहर मियां की पत्नी सफेदा बेगम हर साल छठ की व्रत रखती हैं. छठ को लेकर उनके मन में बहुत बड़ी आस्था है. दरअसल उनके बेटे का पैर कई साल पहले टूट गया था. सफेदा बताती हैं कि काफी जगह अपने बेटे को दिखाया मगर कोई भी ठंग से इलाज किया. और तो और डाक्टरों ने टूटे हुए पैर को काटने तक का विचार दे दिये. जिससे सफेदा पूरी तरह से टूट गई थी. जब सभी जगहों से निराशा हाथ लगी तो छठी मइया के शरण में चली गई. सफेदा को उम्मीद थी कि छठ करने से दूख दूर होगी और ऐसा हुआ भी. छठ व्रत करने से उनकी मनोकामना पूरी हुई और बेटा का पैर ठीक ठाक हो गए तभी से सफेदा छठ महापर्व पूरी आस्था के साथ कर रही हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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