रेप पीड़िता से टू फिंगर टेस्ट के दौरान डॉक्टर ने पूछा क्या तुम वर्जिन हो, हाईकोर्ट ने लगाई फटकार, यह है पूरा मामला

रेप पीड़िता से टू फिंगर टेस्ट के दौरान डॉक्टर ने पूछा क्या तुम वर्जिन हो, हाईकोर्ट ने लगाई फटकार, यह है पूरा मामला

प्रेषित समय :17:49:21 PM / Mon, Jan 15th, 2024
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शिमला. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को एक नाबालिग बलात्कार पीडि़ता को मुआवजे के रूप में पांच लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसका टू-फिंगर टेस्ट किया गया था और उसकी मेडिकल जांच के दौरान डॉक्टरों ने अपमानजनक सवाल पूछे थे. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने अस्पताल द्वारा तैयार किए गए प्रोफार्मा में कुछ सवालों पर भी कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें बलात्कार पीडि़ता से उसके कौमार्य पर सवाल भी शामिल था.

कोर्ट ने राज्य में स्वास्थ्य पेशेवरों को टू-फिंगर परीक्षण करने से सख्ती से परहेज करने का निर्देश दिया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रतिबंध लगा रखा है. हाईकोर्ट ने चेतावनी दी कि बलात्कार पीडि़तों पर टू-फिंगर परीक्षण करने वाले ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ अन्य कार्रवाई के अलावा, उन पर अदालत की अवमानना कानून के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है और सजा भी दी जा सकती है. हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि टू-फिंगर टेस्ट बलात्कार पीडि़ताओं की निजता, शारीरिक, मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है. इसलिए डॉक्टरों को बच्चे को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है. पीडि़ता को सिविल अस्पताल पालमपुर में डॉक्टरों के हाथों शर्मिंदगी, अपमान और उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा. अदालत ने एक नाबालिग लड़की के बलात्कार के लिए उनकी सजा को चुनौती देने वाले आरोपियों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश पारित किया है.

हाईकोर्ट ने एमएलसी पर किया गौर

हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने सिविल अस्पताल पालमपुर द्वारा जारी किए गए मेडिकल-लीगल सर्टिफिकेट (एमएलसी) पर गौर किया और एमएलसी की सामग्री को अपमानजनक और कुछ हद तक पीडि़त बच्ची के लिए आत्म-दोषी और आत्म-दोषपूर्ण भी पाया. कोर्ट ने कहा कि उन सभी लोगों द्वारा दिखाई गई घोर असंवेदनशीलता, जिन्होंने एमएलसी और उसके कॉलम को डिजाइन किया था, पर ध्यान नहीं दिया जा सकता. विशेष रूप से, न्यायालय ने पाया कि अस्पताल द्वारा तैयार किए गए प्रोफार्मा में निम्नलिखित प्रश्न पीडि़त बच्चे की गोपनीयता पर सीधे प्रहार कर रहे हैं.

डिजाइन किया गया प्रोफार्मा को कानून की दृष्टि से खराब

हाईकोर्ट कोर्ट ने अस्पताल द्वारा डिजाइन किए गए प्रोफार्मा को कानून की दृष्टि से खराब करार देते हुए यह भी कहा कि यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53ए को पूरी तरह से नजरअंदाज करता है, जिसमें कहा गया है कि चरित्र या पिछले यौन अनुभव के साक्ष्य कुछ मामलों में प्रासंगिक नहीं हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि प्रोफार्मा यौन हिंसा से बचे लोगों से निपटने के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों और प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन करता है. हाईकोर्ट ने कहा कि उपरोक्त दिशानिर्देशों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि टू-फिंगर टेस्ट, जिसे चिकित्सा शब्द के अनुसार, प्रति-योनि परीक्षा कहा जाता है, इन दिशानिर्देशों और प्रोटोकॉल के तहत सख्ती से प्रतिबंधित किया गया है. यहां यह उल्लेख करना उचित है कि ये दिशानिर्देश हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अपनाए गए हैं और इस प्रकार पूरे हिमाचल प्रदेश राज्य में स्वास्थ्य पेशेवरों पर लागू होते हैं.

डॉक्टरों ने पीडि़त बच्ची में भय और आघात पैदा करता है

कोर्ट ने कहा कि अगर सवाल पर्याप्त नहीं थे, तो एमएलसी जारी करने वाले डॉक्टरों ने टू-फिंगर टेस्ट किया. इस तथ्य के बावजूद कि इसे निजता के अधिकार, शारीरिक और मानसिक अखंडता और बलात्कार की गरिमा का उल्लंघन माना गया है. कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों ने पीडि़त बच्ची में भय और आघात पैदा करने के अलावा उसकी निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा का उल्लंघन किया है. राज्य के स्वास्थ्य सचिव, जिन्हें अदालत में बुलाया गया था, सिविल अस्पताल पालमपुर द्वारा जारी किए गए प्रोफार्मा को सही नहीं ठहरा सके और कहा कि इसे तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया गया है.

डॉक्टरों को बरी नहीं किया जा सकता

हालांकि, अदालत ने कहा कि इसे डिजाइन करने वाले गैर-जिम्मेदार चिकित्सा पेशेवरों और उन डॉक्टरों जिन्होंने पीडि़ता की चिकित्सकीय जांच की, उन्हें बरी नहीं किया जा सकता. अदालत ने राज्य को पीडि़ता को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश देते हुए कहा कि वह जांच के बाद चिकित्सा पेशेवरों से इसकी वसूली कर सकती है. अदालत ने आदेश दिया कि उन सभी डॉक्टरों के खिलाफ जांच की जाएगी, जिन्होंने प्रोफार्मा तैयार किया था और केवल यह तथ्य कि इनमें से कुछ डॉक्टर सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उन पर वित्तीय दायित्व तय करने में प्रतिवादी-राज्य के रास्ते में नहीं आएगा. हाईकोर्ट ने आगे कहा कि इसके अलावा, उन सभी डॉक्टरों के खिलाफ जांच की जाए, जिन्होंने पीडि़त बच्चे की चिकित्सकीय जांच की और संबंधित एमएलसी जारी की है. इतना ही नहीं कोर्ट ने कहा कि जो डॉक्टर सेवानिवृत्त हो गए हैं उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट ने यह भी देखा कि निचली अदालत के जज भी इस मामले की सुनवाई के दौरान पर्याप्त संवेदनशील नहीं थे. कोर्ट ने इस मामले की जांच रिपोर्ट और पीडि़त बच्चे को मुआवजे के भुगतान को स्वीकार करने वाली रसीद को रिकॉर्ड पर रखने के लिए 27 फरवरी को मामले की सुनवाई करेगी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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