नवीन कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगभग एक दशक पहले मुंबई के बिहारी उद्यमियों को सपने दिखाए थे जो अब उनके ही शासनकाल में बिखरने वाले हैं. नीतीश ने ही फतुहा में एक लेदर हब का उदघाटन किया था. इस लेदर हब के लिए मुंबई के धारावी में लेदर व्यवसाय से जुड़े बिहारी उद्यमियों ने अपना बिहारी प्रेम जाहिर किया और धारावी से अपना लेदर उद्यम फतुहा में शिफ्ट करने के लिए पैसे भी लगाए. लेकिन इन बिहारी उद्यमियों को सरकार से उचित सहयोग नहीं मिला. बावजूद इसके कुछ बिहारी उद्यमियों ने अपने दम पर उद्यम शुरू भी किए. इस लेदर हब से 10 हजार बिहारी मजदूरों को रोजगार मिलना था. उन बिहारी मजदूरों के भी सपने सपने ही रह गए. क्योंकि, बियाडा ने फतुहा के इस लेदर हब में जमीन का आवंटन रद्द कर दिया है. उद्यमियों का कहना है कि उन्हें इस बारे में पहले से किसी तरह की जानकारी नहीं दी गई. अब मुख्यमंत्री नीतीश से बियाडा की ओर से जमीन आवंटन रद्द करने के मामले की जांच कराने की मांग की जा रही है.
फतुहा में लेदर हब खोलने की योजना तब बनाई गई थी जब बिहारी भी अपने राज्य बिहार में निवेश करने से डर रहे थे. उन दिनों नीतीश के आश्वासन पर ही बिहार फाउंडेशन (मुंबई चैप्टर) के प्रयास से मुंबई के धारावी इलाके में लेदर व्यवसाय से जुड़े बिहारी उद्यमियों को फतुहा में लेदर उद्योग लगाने के लिए तैयार किया गया. लगभग 40 बिहारी उद्यमियों को मेसर्स अपर्णा इंडस्ट्रियल प्रमोशन काउंसिल का शेयरधारक बनाकर फतुहा में लेदर हब शुरू किया गया. यह लेदर हब नीतीश के सपनों का भी लेदर हब था. इस लेदर हब पर कोरोना की भी मार पड़ी और अब तो बियाडा ने जमीन का आवंटन रद्द करके यह लेदर हब बंद करने की ही तैयारी कर ली है. हालांकि, अभी भी कुछ बिहारी उद्यमी वहां अपना लेदर कारखाना चला रहे हैं. एक शेयरधारक के मुताबिक बियाडा ने गैरकानूनी तरीके से आवंटित जमीन को रद्द किया है और इस बारे में फैसला लेने के लिए शेयरधारकों की कोई मीटिंग भी नहीं बुलाई. अब बियाडा ने शेयरधारकों के सामने एग्जिट पॉलिसी 2023 के तहत विकल्प चुनने का प्रस्ताव रखा है. इससे बिहारी उद्यमी अपने ही राज्य में छल महसूस कर रहे हैं जबकि बिहारी उद्यमी अपने राज्य से प्रेम करने की खातिर फतुहा के लेदर हब प्रोजेक्ट से जुड़े थे. उनकी भावना का ख्याल नहीं रखा जा रहा है. ऐसी स्थिति में प्रवासी बिहारी अपने राज्य में कैसे निवेश करने के बारे में सोचेंगे, यह गंभीर सवाल है.
फतुहा लेदर हब शुरू करने क पीछे सोच बहुत ही अच्छी थी. बिहार में लेदर व्यवसाय को इसलिए प्रमोट किया जा रहा है ताकि इस व्यवसाय में चीन को मात दिया जा सके. मुंबई के धारावी में लेदर व्यवसाय से जुड़े बिहारी उद्यमियों ने इसमें बिहार सरकार को सहयोग दिया और अब बिहार की जमीन से उन्हें ही बेदखल किया जा रहा है. इस मामले में मुंबई के बिहारी उद्यमियों को बिहार फाउंडेशन (मुंबई चैप्टर) से सहयोग नहीं मिल रहा है. बिहारी उद्यमी महसूस करते हैं कि बियाडा और बिहार सरकार के कुछ प्रशासनिक अधिकारी पूर्वाग्रह के कारण फतुहा के लेदर हब के लिए आवंटित जमीन को लेकर गलत निर्णय ले रहे हैं जिससे प्रवासी बिहारियों में नाराजगी भी है. सरकारी स्तर पर यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब इसी साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. विपक्ष के लिए यह एक बड़ा मुद्दा हो सकता है.
फतुहा लेदर हब उजड़ने की स्थिति में है. इससे कई बिहारी मजदूरों के हाथ से रोजगार छिन जाएंगे. फिर बिहारी मजदूरों का पलायन होगा और दूसरे राज्यों में बिहारी मजदूरों को मारपीट का शिकार होना पड़ेगा. इस बारे में नीतीश को खुद ही पहल करनी चाहिए ताकि बिहारी निवेशक और बिहारी मजदूर अपने राज्य छोड़ने को मजबूर न हों. इससे पहले पाटलिपुत्र इंडस्ट्रियल एरिया में हीरे तराशने वाली फैक्टरी बंद हो चुकी है. इसमें 600 करोड़ रूपए का निवेश हुआ था. इस फैक्टरी के बंद होने से बिहारी मजदूरों का रोजगार छिन गया. जब यह इंडस्ट्री पटना में खुला था तब इसको लेकर काफी राजनीतिक बातें हुई थीं और ऐसी बातों के कारण खामियाजा बिहारी मजदूरों को ही भुगतना पड़ता है. आज भी बिहारी मजदूरों के साथ दूसरे राज्यों में अच्छा व्यवहार नहीं होता है. लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए ये बिहारी मजदूर अपने राज्य के साथ दूसरे राज्यों में भी सब कुछ सहने को तैयार रहते हैं.
बिहार सरकार उद्योग के लिए भूमि नहीं होने का रोना भी रोती है. जब कोई निवेशक अपना प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए बिहार आता है तो उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. निवेशक के पैसे लग जाते हैं. उसके बाद उद्यम को छोड़ना आसान नहीं होता है. बियाडा की अदूरदर्शिता के कारण ही पटना के पास बिहटा में भी एक शैक्षणिक संस्थान शुरू नहीं हो पाया है. यह संस्थान मरीन और शीपिंग से संबंधित है. मुंबई का पेंटागन मैरीटाइम ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट है जो आधी अधूरी जमीन आवंटन के कारण शुरू नहीं हो पा रहा है. आज मरीन और शीपिंग इंडस्ट्री में बिहारी युवाओं की संख्या ज्यादा है. इसलिए अगर उन्हें अपने ही राज्य में प्रशिक्षण मिलता है तो ज्यादा से ज्यादा बिहारी युवाओँ को रोजगार मिलना आसान हो जाता. मगर वर्षों से यह इंस्टीट्यूट अधर में लटका पड़ा है. खगड़िया के मानसी में भी प्रिस्टीन मेगा फूड पार्क में एक दशक के बाद भी पूरी तरह से काम नहीं हो रहा है. यह कछुआ गति से चल रहा है. 70 एकड़ में फैले सूबे के इस पहले मेगा फूड पार्क से कोशी के मक्का, केला और लीची के किसानों की तकदीर बदलने वाली थी. मगर इससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है. पिछले दिनों किसान नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में बियाडा और प्रिस्टीन के खिलाफ आंदोलन भी हुआ.
बिहार सरकार को ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने की जरूरत है. क्योंकि, बड़े निवेशक भी बिहार आने से कतरा रहे हैं. आज भी राजनीतिक अपराध और अपराध के कारण बिहार की छवि खराब बताई जाती है. बावजूद इसके कुछ बड़े निवेशक बिहार में निवेश करने की हिम्मत जुटा रहे हैं. इससे बिहार में औद्योगिक निवेश का माहौल बनता दिख रहा है. पटना के ज्ञान भवन में आयोजित बिहार बिजनेस कनेक्ट-2023 में 300 कंपनियों ने 50,530 करोड़ रुपए के निवेश के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए. अडानी इंटरप्राइजेज के डायरेक्टर प्रणव अडानी ने बिहार में 8 हजार करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की. अडानी ग्रुप बिहार में पहले ही 850 करोड़ रुपए का निवेश कर चुका है. बिहार सरकार इसे बिहार के औद्योगिक विकास में मील का पत्थर मान रही है. इधर सरकार की नीति भी समझ में पड़े है. एक तरफ फतुहा में लेदर हब की आवंटित जमीन रद्द करने का निर्णय लिया गया है तो वहीं, दूसरी तरफ निवेशकों को लुभाने के लिए सरकार यह भी कह रही है कि राज्य में उद्योग के लिए पहले से तीन हजार एकड़ जमीन उपलब्ध है. सरकार और तीन हजार एकड़ का लैंड बैंक बनाने में जुटी हुई है ताकि उद्यमियों के लिए जमीन की कमी न हो. बियाडा के पास उद्योग लगाने के लिए जमीन है और उसने राज्य में उद्यम शुरू करने के लिए जमीन आवंटित भी किया है. लेकिन उसने कोरोना काल के दौरान भी कई उद्यमियों को नोटिस जारी कर दिया था. इसके बाद लगभग 600 ईकाइयों की आवंटित जमीन रद्द कर दी गई. जमीन रद्द करने के बजाय अगर फिर से उद्यम शुरू कराने की रणनीति पर बियाडा ने काम किया होता तो बिहार में औद्योगिक विकास की शक्ल कुछ अलग होती. जमीन के मामले में सरकार को छोटे और बड़े उद्यमियों के लिए समान नीति रखने की जरूरत है. तभी यहां उद्योग फलेंगे फूलेंगे और बिहार का विकास हो पाएगा. आज बिहार में औद्योगिक विकास की जरूरत है. इसके लिए निवेशकों का आना भी जरूरी है. अगर उद्योग नहीं लगेंगे तो युवाओं को रोजगार नहीं मिलेगा और अपराध बढ़ेगा. गरीबी से मजदूरों की संख्या बढ़ेगी और बिहार सिर्फ और सिर्फ मजदूर सप्लायर बनकर रह जाएगा जो बिहार के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-Election : बिहार की 6 राज्यसभा सीटों पर चुनाव की तारीखों का ऐलान, 27 फरवरी को होगा मतदान
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