-विरक्त साधु, संत, संन्यासी या मन्दिर के पुजारी का चरण-स्पर्श के जरिए शरीर स्पर्श दोषपूर्ण है.
-राजा दशरथ के यहां ब्रह्मर्षि विश्वामित्र जब आए तब राजा दशरथ ने उन्हें दण्डवत किया न कि चरण-स्पर्श.
-दण्डवत का अर्थ साधु, संत, संन्यासी, महात्मा का शरीर स्पर्श किए बिना भूमि में शीश नवाना.
महिलाओं के लिए-'धर्मसिन्धु’ नामक ग्रंथ में इसका निर्देश दिया गया है- ‘ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम्. वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं..’ (ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ एवं स्त्रियों का वक्षस्थल यदि प्रत्यक्ष रूप से भूमि का स्पर्श करते हैं तो हमारी पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है. यदि पृथ्वी इस असहनीय भार को सहन कर भी लेती है तो वह इस भार को डालने वाले से उसकी अष्ट-लक्ष्मियों का हरण कर लेती है.
स्त्रियां ऐसे करें प्रणाम :
स्त्रियां दंडवत प्रणाम के बजाय घुटनों के बल बैठकर अपने मस्तक को भूमि से लगाकर प्रणाम कर सकती हैं.
ऐसा न करना दोनों पक्ष, चरणस्पर्श करने और कराने वाले के लिए घातक है.
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