लखनऊ. समाजवादी के पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अखिलेश यादव को पत्र भी लिखा जिसमें इस्तीफा देने की वजह का जिक्र किया है. मौर्य पिछले कई दिनों से पार्टी के अन्य नेताओं से नाराज चल रहे थे. हालांकि मौर्य सपा से एमएलसी बने रहेंगे. मौर्य ने पत्र में अखिलेश यादव के बयान से आहत होने की बात कही है.
पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है
मौर्य ने पत्र की शुरुआती में ही सपा में आने के मकसद का खुलासा करते हुए लिखा, जब से मैं समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हुआ, लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की. सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है. हमारे महापुरूषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी.
बिना किसी मांग के मुझे विधान परिषद में भेजा
किंतु पार्टी द्वारा लगातार इस नारे को निष्प्रभावी करने एवं वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सैकड़ों प्रत्याशियों का पर्चा और सिंबल दाखिल होने के बाद अचानक प्रत्याशियों के बदलने के बावजूद भी पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहे. उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां मात्र 45 विधायक थे, वहीं पर विधानसभा चुनाव 2022 के बाद यह संख्या 110 विधायकों की हो गई थी. फिर भी बिना किसी मांग के आपने मुझे विधान परिषद में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया. इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए अपने तौर-तरीके जारी रखे
मौर्य ने पत्र में आगे लिखा, पार्टी का जनाधार बढ़ाने का क्रम मैंने अपने तौर-तरीके से जारी रखा. इसी क्रम में मैंने आदिवासियों, दलितों व पिछड़ोंं को जगाकर और सावधान कर वापस लाने की कोशिश की तो पार्टी के ही कुछ छुटभैये व कुछ बड़े नेता मौर्य जी का निजी बयान है कहकर इस धार को कुंठित करने की कोशिश की. मैंने अन्यथा नहीं लिया. मैंने पाखंड व आडंबर पर प्रहार किया तो भी यही लोग फिर इसी प्रकार की बात कहते नजर आए. इसी अभियान के दौरान मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने की सुपारी भी दी गई. अनेकों बार जानलेवा हमले भी हुए, अपनी सुरक्षा की बिना चिंता किये हुए में अपने अभियान में निरंतर चलता रहा.
राष्ट्रीय महासचिव का कोई भी बयान निजी कैसे
हैरानी तो तब हुई जब पार्टी के वरिष्ठतम नेता चुप रहने के बजाय मौर्य जी का निजी बयान कहकर कार्यकर्ताओं के हौसले को तोडऩे की कोशिश की. मैं नहीं समझ पाया एक राष्ट्रीय महासचिव में हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव व नेता ऐसे भी हैं जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है. एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली में 30 दिन के लिए लगी धारा-144, जानिए किस चीज की इजाजत, किस पर रहेगी रोक?
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