मीठे पानी के छबीले और भंडारे में प्रयुक्त डिस्पोजल पर्यावरण और सड़क सुरक्षा के लिए घातक

मीठे पानी के छबीले और भंडारे में प्रयुक्त डिस्पोजल पर्यावरण और सड़क सुरक्षा के लिए घातक

प्रेषित समय :19:21:41 PM / Tue, Jun 18th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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डॉ. अशोक कुमार वर्मा

भारत में वर्षों से ग्रीष्म काल में मीठे जल की छबीले लगाकर यात्रियों की थकान और प्यास बुझाने की प्रथा है. इसके साथ ही भंडारे और लंगर के आयोजन प्रतिदिन अथवा समय समय पर होते आ रहे हैं. भारत की संस्कृति सदा से संसार के लिए आदर्श रही है. आज एक और जहां पानी बोतलों में बंद होकर बिक रहा है वहीं दूसरी और मीठे जल की छबील परम्परा चलायमान है. बढ़ती गर्मी के साथ निर्जला एकादशी और अन्य धार्मिक अवसरों पर लोग धार्मिक आस्था के फलस्वरूप मीठे जल की सेवा और भंडारे का आयोजन करते हैं. यह एक अच्छी परम्परा है क्योंकि भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाने से बढ़कर कोई पुण्य नहीं हो सकता लेकिन ऐसा करते हुए हम पर्यावरण से खिलवाड़ करने के साथ साथ सड़क व्यवस्था में कहीं न कहीं बाधा उत्त्पन्न कर रहे होते हैं. आज अधिकतर पानी की छबीले सड़कों के किनारे पर लगाईं जाती हैं ताकि आने जाने वाहनों को रोककर उन्हें जल पिलाया जा सके.

ऐसा करते समय एक और तो सड़कों पर जाम लग जाता है तो दूसरी और जाम के कारण सड़क सुरक्षा व्यवस्था में चूक होने का भय बना रहता है. सेवा करने वाले लोग सड़क के बीच में वाहनों को रोककर उन्हें जल सेवा प्रदान करने का प्रयास करते हैं और ऐसे में अनेक बार सड़क दुर्घटना होने का भय निरतर बना रहता है. इतना ही नहीं कई स्थानों पर पानी और मिट्टी मिलकर कीचड़ की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं फलस्वरूप फिसलन बढ़ जाती है. 

दूसरी और आजकल डिस्पोज़ल का प्रयोग बहुतायत में किया जा रहा है. लोग भोजन और जल ग्रहण करने के बाद उसे सडकों पर इधर उधर फेंक देते हैं जिससे सड़कों पर उनका ढेर लग जाता है. सड़कों पर गंदगी फ़ैल जाती है. अस्वच्छता के कारण मक्खियां पैदा हो जाती हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान तक गंदगी फैलाने का कार्य करती है जिससे अनेक प्रकार की व्याधियां होने का संकट उत्पन्न हो जाता है. इतना ही नहीं ये डिस्पोजल मिट्टी में घुलनशील न होने के कारण पर्यावरण को बहुत अधिक क्षति पहुंचाते हैं. बहुत अधिक लोग स्वच्छता की दृष्टि से कूड़े कर्कट और इनमें आग लगा देते हैं जिससे एक और वायु प्रदूषण होता है तो दूसरे पृथ्वी का तापमान भी बढ़ता है. अनेक स्थानों पर कूड़े कर्कट के ढेर में ये डिस्पोज़ल और पॉलिथीन विद्यमान होते हैं जिन्हें बेसहारा पशु जैसे गौमाता आदि खा लेते हैं और भयानक रोगों के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है.  

प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि जब भी भंडारे अथवा ठन्डे पानी की छबीले लगाए तो स्टील के अथवा कांच के गिलास का प्रयोग करें ताकि उपरोक्त समस्याओं से छुटकारा मिल सके और सेवा के साथ पुण्य भी प्राप्त हो. हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में पुलिस लाइन में रोटी बैंक शाखा पिछले 6 वर्षों से चलायमान है जो प्रतिदिन जरूरतमंदों को भोजन परोसने का काम करती है. यह संस्था न केवल प्रतिदिन भोजन परोसती है अपितु कोरोना और बाढ़ जैसी आपदा के समय में भी इस संस्था ने जरूरतमंद लोगों के घरों तक भोजन पहुँचाने का काम किया लेकिन कभी भी पॉलिथीन अथवा डिस्पोज़ल का प्रयोग नहीं किया. ये भोजन परोसते समय पत्तल अथवा स्टील के बर्तन का प्रयोग करते हैं. अन्य संस्थाओं को भी रोटी बैंक शाखा कुरुक्षेत्र से प्रेरणा लेनी चाहिए.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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