कुंडली के 7वें भाव में राहु के साथ शुक्र की युति जातक के जीवन को जबरदस्त रुप से प्रभावित करती है; विशेषकर दोस्ती और संगति के क्षेत्र में। शुक्र प्रेम, अंतरंग संबंध, विवाह, सम्भोग इत्यादि का कारक हैं; जबकि राहु दोहरे व्यवहार, जुनून और विचित्रता, छल-कपट, प्रपंच, कुटनीतिक व्यवहार, स्वार्थ इत्यादि का कारक है। जन्मकुंडली के सातवें भाव में जब ये दोनों ग्रह युति करते हैं, तब राहु का विषैला व्यवहार शुक्र के कोमलता में मिलकर जातक को दोहरा चरित्र देता है। जातक देखने में कुछ और एवं वास्तव में कुछ और होता है।
राहु का प्रभाव संबंधों में छल और रहस्य पैदा करता है, जो विश्वास को तोड़ सकता है। जातक अपने सहयोगियों या पिछले प्रेम हितों के इर्द-गिर्द अनुचित रूप से ध्यान केंद्रित करते रहते हैं हैं, जिससे वर्तमान जीवन में उनकी प्रवृत्ति धोखेबाजी की हो जाती है।
यह संयोजन विवाह में चुनौतियाँ पैदा करता है; संघर्ष, अलगाव या यहाँ तक कि विभाजन को भी भड़का सकता है। जातक के अवैध अनैतिक संबंध होने की प्रबल संभावना रहती है।
जातक की सामाजिक छवि भी खराब हीं रहती है, जातक अपने चारित्रिक दुर्गुणों के कारण बहुत बदनाम होता है।
सातवे भाव में राहु और शुक्र की युति शारीरिक संबंधों में उत्साह और रुचि की प्रबल इच्छा पैदा करता है लेकिन साथ ही अनिश्चितता और आवेग भी देता है। व्यक्ति अपनी लालसाओं और दायित्वों को बदलने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे विवाह और संबंधों में चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। जातक/जातिका क्रुरता से सम्भोग करने का शौकीन होता है। शारीरिक संबंध बनाते वक्त पशु प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं। वासना के जाल में उलझे ऐसे जातक रिश्तों के मर्यादाओं को भी कभी-कभी याद नहीं रख पाते।
व्यक्तिगत जीवन में अति महात्वाकांक्षी होते हैं। संघर्षशील और मेहनत से धन और जन ( बहुत से मित्र और जान पहचान बनाते हैं) दोनों हासिल करते हैं।
Krishna Pandit Ojha
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-पाकिस्तान : सेना पर बड़ा आतंकी हमला, 17 जवानों की मौत, हेलीकॉप्टर भी मार गिराया
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