घर में पूजा स्थान के लिये शास्त्र क्या कहता है*
शास्त्र के अनुसार विद्वान 'ईशान' की सिफारिश करते है. हमको यह भी देखना होगा कि, शास्त्र क्या कहते हैं-
*ॐ ईशान सर्व विद्यानां ईश्वर सर्व भूतानां ब्रम्हाधिपति ब्रम्हणोधिपति ब्रम्हा शिवोमेSस्तु सदा शिवोम.*
- संक्षेप में 'ईशान' शिव के सूक्ष्म और अलौकिक स्वरूप को दर्शाता है.
चुम्बकीय कंपास की दृष्टि से 22.5° से 67.5° के मध्य के क्षेत्र को 'ईशान' कहा जाता है. इस दिशा का स्वामी ग्रह गुरु और देवता परमपिता परमेश्वर स्वयं हैं.
यह दिशा बुद्धि, ज्ञान, विवेक, धैर्य और साहस की सूचक है.
यह दिशा दूषित हो तो घर में तरह-तरह के कष्ट उत्पन्न होते हैं.
एक अवधारणा - सभी तरह की पूजा (कर्म-कांड) केवल ईशान या उत्तर-पूर्व में ही की जानी चाहिये.
इस अवधारणा को गहराई से समझने के लिए आइये एकबार देखें कि वास्तुशास्त्र - विश्वकर्मा प्रकाश में क्या लिखा है - 'इशान्यां देवतागृहम' अर्थात देवता उतर-पूर्व वास्तु क्षेत्र में निवास करते हैं. लेकिन् इसका ये मतलब नहीं है कि पूजा इसी क्षेत्र में ही करनी आवश्यक है. यदि विश्वकर्मा प्रकाश के रचयिता का विभिन्न वास्तु क्षेत्रों की आदर्श गतिविधियों का उल्लेख करते हुए ये मतलब होता, तो इस श्लोक में उन्होंने 'देवतागृहम' बजाय 'पूजा गृहम' का उल्लेख किया होता.
"देव" शब्द का मतलब होता है कोई ऐसी मूर्ति अथवा आत्मा का मार्गदर्शक, जिससे आप ध्यान की अवस्था में बात कर सकें.
यह क्षेत्र विचारों की स्पष्टता और पूर्वाभास देने वाला होने के कारण आपको जीवन मे लाभ प्राप्त करने में आपको मदद करता है. इसलिए देवताओं की मूर्तियों को यहां रख सकते हैं, परन्तु कर्म-कांड यहां नहीं करने चाहिये. दैनिक ध्यान, संध्या-पूजा जैसे रीति-रिवाज के लिए आप इसके निकटवर्ती वास्तु-क्षेत्र उत्तर-
उत्तर-पूर्व एवं पूर्व-उत्तर-पूर्व को चुन सकते/सकती हैं.
वैसे तो हर दिशा के अपने खास देवता हैं, जो उस दिशा के प्रजापति हैं और हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं, इसलिये विशेष पूजा के लिये उस दिशा विशेष में ही पूजा करनी चाहिए, जिसका वह अधिपति हो. उदाहरण स्वरूप भगवान हनुमानजी और मां दुर्गा की पूजा दक्षिण क्षेत्र में करनी चाहिये.. आदि...आदि.
यदि पूजा गृह के उत्तर दिशा में खिड़की हो तो व्यक्ति साफ-सुथरी डीलिंग में काफी मशहूर होता है और यदि इसके पूर्व में खिड़की हो तो उस व्यक्ति की सेहत दिन- ब दिन ठीक होती जाती है और उस परिवार के बच्चे अच्छे संस्कारों वाले बनते हैं.
पूजा कक्ष छोटा हो तो ऊर्जा पूर्ण मात्रा में प्राप्त नहीं होती
ईशान दिशा में मंदिर देवस्थान पूजा कक्ष का स्थापत्य हो तो उत्तर और पूर्व मुख करके पूजा पाठ अर्चना कर सकते है इस दिशा से भरपूर मात्रा में चुंबकीय इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और कॉस्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है जो मनुष्य को जीवन में अच्छा स्वास्थ्य ,उत्साह ,शांति और आर्थिक सुख समृद्धि प्रदान करती है ईशान दिशा का पूजा कक्ष 10*10 फिट या 100 वर्ग फीट का होना चाहिए यदि पूजा कक्ष छोटा हो तो ऊर्जा पूर्ण मात्रा में प्राप्त नहीं होती घर के सभी लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है ज्ञान की वृद्धि और आत्मा की शुद्धि होती है. पूजा कक्ष बड़ा हो तो कक्ष को दो भागों में पार्टीशन लगाकर विभाजित कर देना चाहिए यहां के पूजा कक्ष में खिड़की और वेंटिलेशन होना चाहिए. इस कक्ष में किसी भी प्रकार के धार्मिक विधि विधान नहीं करने चाहिए क्योंकि यह स्थान पर वास्तु पुरुष का मस्तक होता है.
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार फॉल्स सीलिंग के डिजाइन से सकारात्मक ऊर्जा बनाए
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