अभिमनोज
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका ने आज के राजनीतिक माहौल और नेताओं पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि- कई बार राजनेता आपराधिक घटनाओं को भुनाने के लिए दोषियों की मौत की सजा का अश्वासन देते हैं, ऐसा करके भीड़तंत्र को प्रोत्साहित करते हैं, इस तरह भीड़ का शासन बनाने का प्रयास किया जा रहा है.
खबरों की माने तो.... उनका स्पष्ट कहना है कि- यह फैसला करने का अधिकार केवल न्यायपालिका को ही होता है, किसी और को नहीं.
खबर है कि.... जस्टिस अभय ओका पुणे में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र और गोवा द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे, इस अवसर पर उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने और त्वरित, न्यायपूर्ण निर्णय देने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि- कुछ मामलों में जमानत देने को लेकर बिना किसी कारण के न्यायपालिका की आलोचना की जा रही है, यदि न्यायपालिका का सम्मान करना है तो उसकी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रहनी चाहिए और संविधान का पालन तभी होगा जब वकील और न्यायपालिका संवेदनशील रहेंगे, न्यायपालिका को बनाए रखने में वकीलों की बड़ी भूमिका होती है और उन्हें यह जिम्मेदारी निभानी होगी, नहीं तो लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा.
उन्होंने वर्तमान सियासी हालातो पर टिप्पणी करते हुए कहा कि- एक "भीड़तंत्र" बनाया जा रहा है, जिसमें राजनेता कुछ घटनाओं को भुनाते हैं और लोगों को दोषियों के लिए मौत की सजा का आश्वासन देते हैं, जबकि केवल न्यायपालिका के पास कानूनी फैसले पारित करने की शक्ति है.
जस्टिस अभय ओका का यह नजरिया जितना स्पष्ट है उतना ही आंखों को खोलनेवाला भी है, बड़ा सवाल यह है कि- न्यायतंत्र से जुड़े प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जिम्मेदार लोग और बयानबाजी करने वाले राजनेता क्या इससे सबक लेंगे?
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