निकल पड़ा हूँ साइकिल पर मैं…

निकल पड़ा हूँ साइकिल पर मैं…

प्रेषित समय :20:28:10 PM / Sun, Sep 8th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

- डॉ अशोक कुमार वर्मा

निकल पड़ा हूँ साइकिल पर मैं सच्ची बात बताने.

नशा मुक्ति अभियान चलाकर जन जन को समझाने.

गाँव गाँव और शहर शहर में जन-जागृति लाने.  

कितने घर उजड़ गए और कितने बने निशाने.  

निकल पड़ा हूँ साइकिल पर मैं…..

नशे की लत मौत का खत सच का आईना दिखाने.

घर का भेदी लंका ढहाए कह गए बात सयाने.

पग-पग पर तम्बाकू पाउच टंगे दिख रहे, लगे हैं लुभाने.  

निकल पड़ा हूँ साइकिल पर मैं…..

बच्चे बूढ़े और युवा जुट गए, होंठों तले दबाने.

सड़कों पर मारे पिचकारी, लगे हैं गंद फ़ैलाने.  

बीड़ी सिगरेट के धूंवें से फेफड़े लगे सुलगाने.

निकल पड़ा हूँ साइकिल पर मैं…..

ये नशे कम थे क्या, जो हुक्के लगे गुड़गुड़ाने.  

पहले थे चौपालों में, अब बन गए इस पर गाने.

विवाह शादी की बात छोड़ो, हो गए बहुत ठिकाने.

न तीर्थ छोड़ा न मंदिर छोड़ा, चाहे गंगा जाओ नहाने.

निकल पड़ा हूँ साइकिल पर मैं…..

प्रतिवर्ष तम्बाकू से मरती, 80 लाख जानें.  

टीबी कैंसर लकवा अधरंग, रोग ये पुराने.  

ड्रग्स का पड़ाव तम्बाकू चाहे माने या न माने.    

निकल पड़ा हूँ साइकिल पर मैं…..

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-