MP हाईकोर्ट ने कहा, नाबालिग अपराधियों के साथ नरमी बरतना दुर्भाग्यपूर्ण है, रेप मामले में आरोपी की सजा बरकरार

MP हाईकोर्ट ने कहा, नाबालिग अपराधियों के साथ नरमी बरतना दुर्भाग्यपूर्ण है, रेप मामले में आरोपी की सजा बरकरार

प्रेषित समय :20:25:41 PM / Mon, Sep 16th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

पलपल संवाददाता, इंदौर। मध्यप्रदेश की हाईकोर्ट बैंच ने 4 साल की मासूम बच्ची के साथ रेप के आरोपी की सजा के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि देश में नाबालिग अपराधियों के साथ नरमी बरती जा रही हैं। ऐसे अपराधों के पीडि़तों का दुर्भाग्य है कि विधानमंडल ने 2012 के निर्भया कांड की भयावहता से अभी तक कोई सबक नहीं सीखा।
                                 हाईकोर्ट ने 29 दिसम्बर 2017 को हुए घटनाक्रम को लेकर ये टिप्पणी की है। जिसमें 17 साल के नाबालिग आरोपी ने मासूम से दुष्कर्म किया था। निचली अदालत ने उसे 10 साल की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की थी। जिस पर 11 सितंबर को जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने सुनवाई करते हुए अपील खारिज कर ये टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि आरोपी अभी 23 साल का है। जब उसने अपराध किया था तब उम्र 17 साल 3 महीने और 27 दिन थी। उसे निचली अदालत ने 2019 में रेप और पॉक्सो एक्ट में 10-10 साल की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट में यह बात भी आई कि यह घटना 29 दिसंबर 2017 को हुई थी, जब पीडि़ता की मां ने अपनी चार वर्षीय बेटी को बेहोशी की हालत में पाया था, उसके गुप्तांगों से खून बह रहा था। आरोपी ने 17 साल की उम्र में अपराध किया था। दो साल के अंदर मई 2019 में जिला अदालत ने उसे जुवेनाइल एक्ट में दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी। जिला कोर्ट ने कहा था कि आरोपी की उम्र 21 साल होने तक उसे बाल सुधारगृह में रखा जाए। उसके बाद जेल में शिफ्ट कर दें। इसी बीच आरोपी जिला कोर्ट के फैसले के चार महीने के भीतर सितंबर 2019 में बाल सुधार गृह से 7 अन्य के साथ फरार हो गया था। कोर्ट में उसकी इस हरकत को लेकर भी जानकारी दी गई कि आरोपी ने न सिर्फ अपराध किया। बल्कि 18 साल की आयु होने के बाद पुन: बालगृह से भागकर एक और अपराध किया। आरोपी के अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि किराए के विवाद के कारण मामला गढ़ा गया है। अधिवक्ता ने पीडि़ता की उम्र के दस्तावेजों पर सवाल उठाया। इस पर कोर्ट ने कहा कि पीडि़ता की मां जो स्वयं घटना के तुरंत बाद मौके पर पहुंची थी, जहां उसने आरोपी को अपनी बेटी के पास खड़ा पाया था। पहले से ही खून बह रहा था। आरोपी के खिलाफ झूठा मामला दर्ज करने व असली अपराधी को बचाने का कोई कारण नहीं था। अपीलकर्ता को सही तरीके से दोषी ठहराया गया है। इसके अलावा अदालत ने मेडिकल गवाही व परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर पीडि़ता की उम्र को विश्वसनीय पाया। हाई कोर्ट ने टिप्पणी की अभियोजन पक्ष ने पीडि़ता की उम्र व उसे लगी चोटों की प्रकृति को पर्याप्त रूप से साबित कर दिया है जो आरोपों की पुष्टि करता है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-