जितिया व्रत की सही तिथि, मुहूर्त और महत्व

जितिया व्रत की सही तिथि, मुहूर्त और महत्व

प्रेषित समय :21:48:11 PM / Mon, Sep 23rd, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को संतान से संबंधित जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. 
इसे जितिया व्रत भी कहा जाता है. इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. माना जाता है कि निर्जला व्रत रखकर माताएं भगवान जीमूतवाहन की विधिवत पूजा अर्चना करती है. इसके साथ ही सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता है. ये पर्व मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार अष्टमी तिथि दो दिन होने के कारण हर किसी को जितिया के व्रत की सही तिथि को लेकर काफी असमंजस की स्थिति बनी हुई है. आइए जानते हैं जितिया व्रत की सही तिथि, मुहूर्त और महत्व…
#कब_है_जीवित्पुत्रिका_व्रत?
हिंदू पंचांग के अनुसार,आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर प्रारंभ होगी और 25 सितंबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी. इसलिए जितिया का व्रत 25 सितंबर 2024 को रखा जाएगा.
#जितिया_व्रत_का_शुभ_मुहूर्त:
चौघड़िया शुभ मुहूर्त- शाम 04 बजकर 43 मिनट से शाम 06 बजकर 13 मिनट तक रहेगा.
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:35 से सुबह 05:22 तक.
अमृत काल- 12:11 पी एम से 01:49 पी एम तक.
प्रातः संध्या – सुबह 04:59 बजे से सुबह 06:10 बजे तक.
विजय मुहूर्त- दोपहर 02:12 बजे से दोपहर 03:00 बजे तक.
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:13 से शाम 06:37 बजे तक.
सायाह्न संध्या- शाम 06:13 बजे से शाम 07:25 बजे तक.
Astrologer - Nawal Pandey
#जितिया_व्रत_का_महत्‍व:
जितिया व्रत प्रमुख रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्‍तर प्रदेश की कुछ हिस्‍सों में रखा जाता है. माताएं संतान के लिए निर्जला व्रत करके भगवान जीमूतवाहन की विधि विधान से पूजा करती हैं. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से आपकी संतान के ऊपर से हर प्रकार का संकट टल जाता है. इस व्रत को महिलाओं को हर साल करना होता है और बीच में कभी छोड़ा नहीं जाता.
#जितिया_व्रत_की_पूजाविधि:
जीवित्पुत्रिका व्रत को करने के लिए महिलाएं सुबह ही स्‍नान करने के बाद व्रत करने का संकल्‍प लेती हैं और गोबर से लीपकर पूजास्‍थल को साफ कर देती हैं. उसके बाद महिलाएं एक वहां पर एक छोटा सा कच्‍चा तालाब बनाकर उसमें पाकड़ की डाल लगा देती हैं. तालाब में भगवान जीमूतवाहन की प्रतिमा स्‍थापित करते हैं. इस प्रतिमा की धूप-दीप, अक्षत, रोली और फूलों से पूजा की जाती है. इस व्रत में गोबर से चील और सियारिन की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं. इन पर सिंदूर चढ़ाया जाता है और उसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनाकर पूजा को संपन्‍न किया जाता है.
Astrologer - Nawal Pandey

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-