मुम्बई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ़ फर्ज़ी व झूठी सामग्री की पहचान करने, उसे विनियमित करने के उद्देश्य से संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियमों को आधिकारिक रूप से रद्द कर दिया. यहां तक कि उन्हें असंवैधानिक करार दिया. 20 सितंबर को जस्टिस एएस चंदुरकर की एकल पीठ ने कहा कि संशोधित नियम अस्पष्ट व व्यापक हैं. जिससे न केवल किसी व्यक्ति पर बल्कि सोशल मीडिया मध्यस्थ पर भी नकारात्मक प्रभाव पडऩे की संभावना है. इस वर्ष के प्रारंभ में एक खंडपीठ द्वारा इस मामले पर विभाजित फैसला सुनाए जाने के बाद न्यायमूर्ति चंदुरकर ने टाई-ब्रेकर न्यायाधीश के रूप में कार्य किया था.
तीसरे जज के फैसले के बाद जस्टिस एएस गडकरी व नीला गोखले की खंडपीठ ने आज स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन द्वारा नए नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर औपचारिक रूप से फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि बहुमत की राय को देखते हुएए नियम 3 (1), (वी) को असंवैधानिक घोषित कर इसे रद्द किया जाता है. तदनुसार याचिकाओं को स्वीकार किया जाता है. विवाद का मुख्य कारण तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) स्थापित करने का प्रावधान था. जिसका उद्देश्य सरकार के बारे में भ्रामक या झूठी मानी जाने वाली ऑनलाइन सामग्री की पहचान करना था. अदालत ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे से सहमति जताई कि इन नियमों का मौलिक अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. केंद्र सरकार ने छह अप्रैल 2023 को सूचना प्रौद्योगिकी मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता नियम 2021 में संशोधनों को लागू किया था. जिसमें सरकार से संबंधित फर्जी, झूठी या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के लिए एफसीयू का प्रावधान किया जाना भी शामिल था.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-