पितृ स्तोत्र*
*संस्कृत एवं हिन्दी अर्थ सहित
पितृ स्तोत्र पितृदोष निवारण के लिए रामवाण ओषधि है. पितृ स्तोत्र मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है. इस स्तोत्र का पितृ पक्ष में संध्या के समय तेल का दीपक जला के पितरों को स्मरण करके पाठ करें. और पितृ पक्ष के अतिरिक्त आप इसका पाठ नित्य प्रति कर सकते हैं. या चतुर्दशी व अमावस्या के दिन भी पितृ स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है. इसके पाठ मात्र से पितृ खुश होते हैं और हमारे जीवन को सुख-समृद्धि से भर देते हैं.
मान्यता है कि स्वप्न में अपने पूर्वजों को बार बार देखना अच्छा नहीं माना जाता है. अगर पितृ स्तोत्र पाठ नियमित रूप से किया जाये तो इस से छुटकारा मिल सकता है.
पितृ स्तोत्र पाठ के पाठ से घर में सुख शांति बनी रहती है. और घर में क्लेश नहीं होते.
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कुंडली में पितृदोष होने के कारण अगर संतान प्राप्ति में समस्या आ रही हो तो भी पितृ स्तोत्र का पाठ अवस्य करें.
पितृ स्तोत्र का पाठ करने से पहले निम्नलिखित मंत्र जरूरी बोले.
ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः | प्रथम पितृ नारायणाय नमः | नमो भगवते वासुदेवाय नमः
पितृ गायत्री मंत्र : ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात् ..
*.. अथ पितृस्तोत्र ..*
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्. नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ..
अर्थ– जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न है. उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूं.
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा. सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्..
अर्थ– जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता है, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूं.
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा. तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि..
अर्थ– जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक है. उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूं.
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा. द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:..
अर्थ– नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं.
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्. अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:..
अर्थ– जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं.
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च. योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:..
हिन्दी अर्थ– प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं.
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु. स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे..
अर्थ– सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है. मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूं.
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा. नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्..
अर्थ– चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूं. साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूं.
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्. अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:..
अर्थ– अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूं, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है.
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:. जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:..
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:. नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज..
अर्थ– जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूं. उन्हें बारम्बार नमस्कार है. वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हो.
पितर दोष निवारण के लिए पितृ स्तोत्र पाठ जरूर करना चाहिए
प्रेषित समय :19:53:36 PM / Fri, Sep 27th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर