यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो उसकी माता पर किसी भी प्रकार का बड़ा कष्ट आ सकता है
चंद्रमा के जन्म-कर्म के संबंध में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. कहीं, वर्णित है कि चंद्रमा महर्षि अत्रि की संतान हैं. कहीं, त्रिपुरी सुंदरी की बाईं आंख से समुद्भूत कहे गए हैं. वहीं, उदधि के पुत्र बताए गए हैं. लेकिन इन सबसे अलग चंद्रमा विराट पुरुष के मन से उत्पन्न हुए हैं. कहा गया है कि "चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत . श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च हृदयात्सर्वमिदं जायते" चंद्रमा को मां और मन का कारक बताया गया है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा की राशि कर्क है. कुंडली के सभी 12 भावों में चंद्रमा की उपस्थिति बहुत अहम मानी गई है. कहा जाता है कि यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो उसकी माता पर किसी भी प्रकार का बड़ा कष्ट आ सकता है. स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है. व्यक्ति के मन में आत्महत्या के विचार आते हैं. इसके साथ ही कई अशुभ प्रभाव देखने को मिलते हैं. आइये जानते हैं कुंडली के 12 भावों में चंद्रमा की स्थिति.
1.यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के पहले लग्न भाव में चंद्रमा विराजमान रहता है तो ऐसे जातक शरीर से बलशाली, ऐश्वर्यवान, सुख, व्यवसायी, गायन के शौकीन और स्थूल शरीर वाले होते हैं.
2.यदि जातक की कुंडली के दूसरे भाव में चंद्र देव विराजित होते हैं तो ऐसे जातक मृदुभाषी, सुंदर, आकर्षक, गौरवर्ण, भोगी, परदेशवासी, सहनशील और शांति प्रिय होते हैं.
3.कुंडली के तीसरे भाव में चंद्रमा की उपस्थिति से जातक पराक्रम से धन प्राप्त करने वाला, धार्मिक, यशस्वी, प्रसन्नचित रहने वाला, आस्थावान, आस्तिक और मधुरभाषी होता है.
4.कुंडली के चतुर्थ भाव में चंद्रमा होने से जातक दानी, मानी, सुखी, उदार, रोगरहित, विवाह के पश्चात कन्या संततिवान, सदाचारी, सट्टे से धन कमाने वाला एवं क्षमाशील स्वभाव का होता है.
5.यदि कुंडली के पांचवें भाव में चंद्रमा विराजमान होता है तो जातक शुद्ध बुद्धि, स्वभाव से चंचल, सदाचारी, क्षमावान तथा शौकीन होता है.
6.कुंडली के छठवें भाव में चंद्रमा की उपस्थिति से जातक नेत्र रोगी, कफ रोगी, अल्पायु, व्ययी और आसक्त होता है.
7. कुंडली में चंद्रमा सातवें स्थान में होने से जातक सभ्य, धैर्यवान, नेता, विचारक, प्रवासी, जलयात्रा करने वाला, व्यापार करने वाला और वकील होता है.
8.चंद्रमा कुंडली के आठवें भाव में विराजित रहते हैं तो जातक विकारग्रस्त, कामी,वाचाल, स्वाभिमानी, व्यापार से लाभ लेने वाला, बंधन से दुखी होने वाला, ईर्ष्या की भावना से भरा होता है.
9. कुंडली के नौंवे भाव में चंद्रमा की उपस्थिति होने से जातक संतति, संपत्तिवान, धर्मात्मा, कार्यशील, प्रवास प्रिय, न्यायी, विद्वान एवं साहसी होता है.
10. कुंडली के दसवें भाव में चंद्रमा विराजमान होने से जातक संतोषी, दयालु, निर्मल बुद्धि, कार्यकुशल, व्यापारी, यशस्वी और लोगों का हित करने वाला होता है.
11. कुंडली के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा की उपस्थिति दर्शाती है कि जातक चंचल बुद्धि, गुणी, संतति एवं संपत्ति से युक्त, यशस्वी, दीर्घायु, परदेशप्रिय एवं राज्यकार्य में दक्ष होगा.
12. कुंडली के बारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक क्रोधी स्वभाव वाला, एकांत प्रिय, चिंतनशील, मृदुभाषी, नेत्र रोगी, कफ रोगी होने के साथ अधिक खर्च करने वाला होगा.