शास्त्र अनुसार हमारे वायुमंडल में दिशाएं 10 होती हैं
जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो. एक मध्य दिशा भी होती है. इस तरह कुल मिलाकर 11 दिशाएं हुईं. प्रत्येक दिशा का एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे ‘दिग्पाल’ कहा गया है अर्थात दिशाओं के पालनहार.
1. ऊर्ध्व दिशा - उर्ध्व दिशा के देवता ब्रह्मा हैं. इस दिशा का सबसे ज्यादा महत्व है. आकाश ही ईश्वर है. जो व्यक्ति उर्ध्व मुख होकर प्रार्थना करते हैं उनकी प्रार्थना में असर होता है. वेदानुसार मांगना है तो ब्रह्म और ब्रह्मांड से मांगें, किसी और से नहीं. उससे मांगने से सब कुछ मिलता है.
2. ईशान दिशा - पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं. वास्तु अनुसार घर में इस स्थान को ईशान कोण कहते हैं. भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है. चूंकि भगवान शिव का आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशा में होता है इसीलिए इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है. इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति और केतु माने गए हैं.
3. पूर्व दिशा - ईशान के बाद पूर्व दिशा का नंबर आता है. जब सूर्य उत्तरायण होता है तो वह ईशान से ही निकलता है, पूर्व से नहीं. इस दिशा के देवता इंद्र हैं.
4. आग्नेय दिशा - दक्षिण और पूर्व के मध्य की दिशा को आग्नेय दिशा कहते हैं. इस दिशा के अधिपति हैं अग्निदेव.
5. दक्षिण दिशा - दक्षिण दिशा के अधिपति देवता हैं भगवान यमराज.
6. नैऋत्य दिशा - दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान को नैऋत्य कहा गया है. यह दिशा नैऋत देव के आधिपत्य में है.
7. पश्चिम दिशा - पश्चिम दिशा के देवता, वरुण देवता हैं और शनि ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं. यह दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति की प्रतीक है.
8. वायव्य दिशा - उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य में वायव्य दिशा का स्थान है. इस दिशा के देव वायुदेव हैं
9. उत्तर दिशा - उत्तर दिशा के अधिपति हैं रावण के भाई कुबेर. कुबेर को धन का देवता भी कहा जाता है.
10. अधो दिशा - अधो दिशा के देवता हैं शेषनाग जिन्हें अनंत भी कहते हैं.
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