बकू COP29: जलवायु सम्मेलन में CBAM पर विवाद, विकसित और विकासशील देशों में टकराव

बकू COP29: जलवायु सम्मेलन में CBAM पर विवाद, विकसित और विकासशील देशों में टकराव

प्रेषित समय :21:30:23 PM / Tue, Nov 12th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

बकू, अज़रबैजान में चल रहे COP29 जलवायु सम्मेलन के पहले दिन का आरंभिक सत्र एक बड़े विवाद के कारण देरी से शुरू हुआ. भारत और चीन जैसे विकासशील देशों ने यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को सम्मेलन के एजेंडा में शामिल करने की मांग की, जिसका विकसित देशों ने कड़ा विरोध किया. CBAM पर यह विवाद सत्र के दौरान एक अहम मुद्दा बना रहा, जिससे सम्मेलन के एजेंडा पर व्यापक असर पड़ा.

CBAM पर विवाद: क्या है विकासशील देशों की चिंता?

CBAM, यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तावित एक कर व्यवस्था है जो लोहे, स्टील, सीमेंट, उर्वरक, और एल्युमीनियम जैसे ऊर्जा-गहन उत्पादों पर लगाया जाएगा. इसका उद्देश्य इन उत्पादों के निर्माण के दौरान उत्सर्जित कार्बन के आधार पर शुल्क लगाना है. यूरोपीय संघ का मानना है कि इस कर से घरेलू और विदेशी उत्पादकों के बीच कार्बन उत्सर्जन आधारित लागत में समानता आएगी, जो पर्यावरण के लिए लाभदायक होगी.

विकासशील देशों का मानना है कि ऐसी नीतियाँ उनके लिए आर्थिक बोझ बन सकती हैं और उनके यूरोप के साथ व्यापार को महंगा बना सकती हैं. भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे "एकतरफा और मनमाना" बताया और चेताया कि इससे भारत के उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार, इस कर से भारत के सकल घरेलू उत्पाद पर 0.05% का प्रभाव पड़ सकता है.

पहले दिन की मुख्य घटनाएं और वित्तीय एजेंडे पर तनाव

COP29 का पहला सत्र काफी विलंब से शुरू हुआ. CBAM को एजेंडा में शामिल करने पर विकसित और विकासशील देशों के बीच तीखी बहस होती रही. UNFCCC प्रमुख साइमन स्टीएल ने सभी देशों से जल्द समाधान निकालने की अपील की और कहा कि जलवायु वित्त किसी भी देश के स्वार्थ में नहीं, बल्कि सभी के लाभ के लिए है. BASIC देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें CBAM जैसी व्यापारिक नीतियों को रोकने का आग्रह किया गया.

विशेषज्ञों की राय: CBAM का संभावित प्रभाव

BASIC देशों की चिंताओं का समर्थन करते हुए चीन क्लाइमेट हब के निदेशक ली शुओ ने कहा कि CBAM जैसी नीतियाँ विकासशील देशों के औद्योगिक हितों को नुकसान पहुँचा सकती हैं. तीसरी दुनिया नेटवर्क की मीना रमन ने जलवायु वित्त को COP29 का केंद्रीय मुद्दा बनाने की बात कही और कहा कि विकसित देश अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जबकि विकासशील देशों को वित्तीय सहायता की आवश्यकता है.

निष्कर्ष: CBAM का भविष्य और COP29 की चुनौतियाँ

COP29 में CBAM पर विवाद ने केवल जलवायु परिवर्तन ही नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार और आर्थिक स्थिरता के मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया है. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी नीतियों में वैश्विक समन्वय का अभाव विकासशील देशों की प्रगति में बाधा डाल सकता है. COP29 में इस मुद्दे पर बने समझौते का प्रभाव न केवल पर्यावरण पर, बल्कि वैश्विक व्यापारिक नीतियों पर भी पड़ेगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-