अभिमनोज
अक्सर लोग शादी, नौकरी जैसे अपने फायदे के लिए धर्म परिवर्तन करते हैं, ताकि उन्हें वह फायदा मिल सके जो उस धर्म विशेष के लिए है.
ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि- केवल आरक्षण का लाभ लेने के लिए धर्म परिवर्तन करना संविधान के मूल भावना के खिलाफ है.
खबरों की मानें तो.... सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसमें एक ईसाई महिला को एससी सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया गया था.
यह महिला पुडुचेरी में यूडीसी की नौकरी के लिए एससी सर्टिफिकेट चाहती थी और इसके लिए उसने स्वयं को हिंदू बताया था.
इस मामले में जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच का कहना है कि- महिला ईसाई धर्म का पालन करती है और नियमित रूप से चर्च जाती है, बावजूद इसके, वह आरक्षण के लाभ के लिए स्वयं को हिंदू और एससी बता रही है, जो व्यक्ति ईसाई है, लेकिन आरक्षण के लिए स्वयं को हिंदू बताता है, उसे एससी प्रमाण-पत्र देना आरक्षण के उद्देश्य के खिलाफ है, यह संविधान के साथ धोखा है.
उल्लेखनीय है कि- याचिकाकर्ता सी. सेल्वरानी ने मद्रास हाईकोर्ट के 24 जनवरी, 2023 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें हाईकोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी. अपने पक्ष में सेल्वरानी का कहना था कि- वह हिंदू धर्म मानती है और वल्लुवन जाति से है, जो 1964 के संविधान (पुडुचेरी) अनुसूचित जाति आदेश के तहत आती है, इसलिए, वह आदि द्रविड़ कोटे के तहत आरक्षण की हकदार है.
अदालत ने इस मामले के तथ्यों का अध्ययन करने के बाद कहा कि- ग्राम प्रशासनिक अधिकारी की रिपोर्ट और दस्तावेजी सबूतों से स्पष्ट है कि- उसके पिता एससी समुदाय से थे और मां ईसाई थीं, उनकी शादी ईसाई रीति-रिवाजों से हुई थी, इसके बाद, सेल्वरानी के पिता ने बपतिस्मा लेकर ईसाई धर्म अपना लिया था, उसके भाई का बपतिस्मा 7 मई 1989 को हुआ था, यही नहीं, सेल्वरानी का जन्म 22 नवंबर 1990 को हुआ था और उसका बपतिस्मा 6 जनवरी 1991 को विलयनूर, पुडुचेरी के लूर्डेस श्राइन में हुआ, मतलब.... यह साफ है कि- सेल्वरानी जन्म से ईसाई थी और वह एससी सर्टिफिकेट के लिए हकदार नहीं है.
अदालत का यह भी कहना है कि- याचिकाकर्ता की यह दलील हमें सही नहीं लगती, क्योंकि उसने बपतिस्मा के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने का कोई प्रयास नहीं किया और न ही इस संबंध में कोई मुकदमा दायर किया.
अदालत का यह भी कहना है कि- जांच से पता चला है कि उसके माता-पिता की शादी भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के तहत हुई थी, सेल्वरानी और उसके भाई का बपतिस्मा हुआ था और वे नियमित रूप से चर्च जाते थे.
इसके अलावा.... ऐसा कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने फिर से हिंदू धर्म अपना लिया हो, बल्कि वे अभी भी ईसाई धर्म का पालन करते हैं!
सुप्रीम कोर्ट: आरक्षण का लाभ लेने के लिए धर्म परिवर्तन करना संविधान के मूल भावना के खिलाफ है!
प्रेषित समय :20:21:14 PM / Wed, Nov 27th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर