श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है कि भगवान् के भक्त में पवित्रता की पराकाष्ठा होती है. इसके मन, बुद्धि, इंद्रिय, आचरण और शरीर आदि इतने पवित्र हो जाते हैं कि उसके साथ वार्ता, दर्शन और स्पर्श मात्र से ही दूसरे लोग पवित्र हो जाते हैं. ऐसा भक्त जहां निवास करता है, वहां का स्थान, वायुमंडल, जल आदि सब पवित्र हो जाते हैं.
नित्य स्नान की महिमा बताते हुए धर्म शास्त्रकार यक्ष कहते हैं-'नौ द्वारों वाला यह शरीर अत्यंत मलिन है. नवों द्वारों से प्रति दिन मल निकलता रहता है, जिससे शरीर दूषित हो जाता है. यह मल प्रायः स्नान से दूर हो जाता है और शरीर भी निर्मल हो जाता है. बिना स्नान आदि से पवित्र हुए जप होम, देवपूजन आदि कोई भी कर्म नहीं करना चाहिए. स्नान से लाभों के संबंध में कहा गया है.
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