नई दिल्ली. तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि और डीएमके सरकार के बीच चल रहा विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. अब राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर शुरू हुए विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगायी है. कोर्ट ने शुक्रवार को दोनों पक्षों को आपस में समाधान निकालने की नसीहत देते हुए दो टूक कहा कि अगर दोनों ने समाधान नहीं निकाला तो कोर्ट हस्तक्षेप करने को मजबूर होगा.
सुप्रीम कोर्ट में कुलपतियों की नियुक्ति संबंधी याचिका पर जस्टिस एसबी पारदीवाला की बेंच ने की है. जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों को फटकारते हुए कहा कि अगली सुनवाई तक यह मामला सुलझा लिया जाए तो अच्छा रहेगा अन्यथा हम इसे सुलझा देंगे.
यह है कुलपतियों की नियुक्ति का नया विवाद
तमिलनाडु में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच नया विवाद अब कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर है. राज्यपाल अपने मानद कुलाधिपति के अधिकार का उपयोग करते हुए कुलपतियों की नियुक्ति करना चाहते हैं, जबकि राज्य सरकार उनके इस कदम को चुनौती दे रही है. इसके अलावा, तमिलनाडु लोक सेवा आयोग में नियुक्तियों को लेकर भी राज्यपाल और डीएमके सरकार के बीच टकराव चल रहा है.
इसके पहले 2022 में डीएमके सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था जब राज्यपाल रवि ने मद्रास विश्वविद्यालय, भारथियार विश्वविद्यालय और तमिलनाडु शिक्षक प्रशिक्षण विश्वविद्यालय में कुलपतियों की नियुक्ति के लिए एक समिति गठित की थी. डीएमके सरकार ने इस कदम को अवैध बताते हुए समिति को पुनर्गठित किया और उसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सदस्यों को हटा दिया. इसके बाद राज्यपाल ने अपनी बनाई समिति को भंग कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट पूर्व में भी राज्यपाल को फटकार लगा चुका
डीएमके ने पहले भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्यपाल से कई लंबित विधेयकों को मंजूरी देने की मांग की थी. इनमें से कुछ विधेयक पूर्व एआईएडीएमके सरकार के कार्यकाल में पारित हुए थे. डीएमके ने राज्यपाल रवि पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर इन विधेयकों में देरी कर रहे हैं और राज्य के विकास को बाधित कर रहे हैं. नवंबर 2023 में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल रवि को फटकार लगाते हुए कहा था- ये विधेयक 2020 से लंबित हैं. तीन साल तक आप क्या कर रहे थे?
कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या राज्यपाल किसी विधेयक को बिना विधानसभा को वापस भेजे लंबे समय तक रोके रख सकते हैं. संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास केवल तीन विकल्प हैं - विधेयक को मंजूरी देना, अस्वीकृत करना, या राष्ट्रपति को भेजना. राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि राज्यपाल सिर्फ एक तकनीकी पर्यवेक्षक नहीं हैं, बल्कि विधेयकों को पारित करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-