तमिलनाडु में हिंदी थोपने पर संसद में जमकर हंगामा, स्टालिन-प्रधान के बीच तीखी जुबानी जंग

तमिलनाडु में हिंदी थोपने पर संसद में जमकर हंगामा, स्टालिन-प्रधान के बीच तीखी जुबानी जंग

प्रेषित समय :13:30:17 PM / Tue, Mar 11th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच भाषा युद्ध एक बार फिर तेज हो गया है. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी और तीन-भाषा फॉर्मूले को लेकर सोमवार को संसद और सड़क दोनों जगह विवाद छिड़ गया. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु की सत्ताधारी डीएमके पर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया जिस पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तीखा पलटवार किया.

धर्मेंद्र प्रधान ने ष्ठरू्य पर साधा निशाना, संसद में हुआ हंगामा

लोकसभा में बोलते हुए धर्मेंद्र प्रधान ने कहा- डीएमके तमिलनाडु के छात्रों का भविष्य बर्बाद कर रही है. वे केवल भाषा की दीवारें खड़ी करने में लगे हैं और राजनीति कर रहे हैं. वे लोकतांत्रिक नहीं हैं. प्रधान के इस बयान पर डीएमके सांसदों ने कड़ा विरोध जताया और लोकसभा में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव दायर किया. हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही 30 मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी.

स्टालिन का जवाब-राजा समझते हैं खुद को

धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणी पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तीखी प्रतिक्रिया दी. एक्स पर उन्होंने लिखा:- केंद्र के शिक्षा मंत्री खुद को राजा समझते हैं और अहंकार से भरे हैं. उन्हें अनुशासन सिखाने की जरूरत है.

स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी टैग करते हुए पूछा: क्या पीएम मोदी को यह स्वीकार्य है कि उनके मंत्री तमिलनाडु के लोगों का अपमान करें? स्टालिन ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार तमिलनाडु के शिक्षा क्षेत्र के फंड रोकने की धमकी दे रही है. उन्होंने इसे ब्लैकमेल करार दिया और पूछा: क्या तमिलनाडु के छात्रों के टैक्स का पैसा हमें मिलेगा या नहीं?

हिंदी थोपने का मुद्दा फिर गरमाया

तमिलनाडु में हिंदी लागू करने का विरोध  कोई नया मामला नहीं है. 1960 के दशक में तमिलनाडु में हिंदी विरोधी दंगे भड़क चुके हैं. डीएमके का तर्क है कि राज्य में दो-भाषा नीति पहले से सफल है और हिंदी की कोई जरूरत नहीं. वहीं, बीजेपी का कहना है कि तीन-भाषा नीति छात्रों के लिए फायदेमंद होगी और इससे उन्हें देश के अन्य हिस्सों में अवसर मिलेंगे.

राजनीतिक बयानबाजी तेज

बीजेपी नेता और पूर्व राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने डीएमके पर गरीब छात्रों को तीसरी भाषा सीखने के अवसर से वंचित करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा- जब अमीर बच्चों को तीन भाषाएं सीखने का मौका मिल सकता है तो गरीब छात्रों को यह अवसर क्यों नहीं मिलना चाहिए?

डीएमके सांसद दयानिधि मारन  ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि डीएमके ने कभी भी एनईपी (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) या तीन-भाषा नीति को स्वीकार नहीं किया. हम बस यह कहते हैं कि जब उत्तर भारत के छात्र केवल एक भाषा पढ़ते हैं तो हमारे छात्रों पर हिंदी क्यों थोपी जा रही है?

अमित शाह बनाम स्टालिन, सीएपीएफ परीक्षा को लेकर विवाद

पिछले हफ्ते, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और एमके स्टालिन के बीच भी इस मुद्दे पर जुबानी जंग हुई थी. अमित शाह ने दावा किया कि केंद्र सरकार ने तमिल भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं जिसमें केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की परीक्षा क्षेत्रीय भाषाओं में कराने का फैसला शामिल है. हालांकि, स्टालिन ने इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि यह तो एक किंडरगार्टन छात्र का पीएचडी होल्डर को लेक्चर देने जैसा है. इतिहास गवाह है कि तमिलनाडु पर जब-जब हिंदी थोपी गई, उन सरकारों को हार का सामना करना पड़ा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-