गुरु ज्योतिष के नव ग्रहों में सबसे अधिक शुभ ग्रह माने जाते हैं. जीवन में हर क्षेत्र में सफलता के पीछे गुरु ग्रह की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. कुंडली में अगर गुरु मजबूत हो तो सफलता का कदम चूमना बिल्कुल तय है. सफलता के पीछे सकारात्मक उर्जा का होना अहम होता है और यही काम गुरु करते हैं. गुरु जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में सकारात्मक उर्जा प्रदान करने में सहायक होते हैं. अपने सकारात्मक रुख के चलते व्यक्ति कठिन से कठिन समय को आसानी से सुलझा लेता है. गुरु आशावादी बनाते हैं और निराशा को जीवन में प्रवेश नहीं करने देते. इसके फलस्लरूप सफलता खुद ब खुद कदम चूमने लगती है. और जब सफलता मिलती रहती है तब जिंदगी में खुशहाली भी आ जाती है.
लेकिन यही गुरु अगर कमजोर हो तो तमाम मुश्किलें जीना मुहाल कर देती है. बनते हुए काम बिगड़ जाते हैं, किसी काम में यश नहीं मिलता, घर में पैसे की तंगी बनी रहती है और स्वास्थ्य पर भी इसका असर दिखने लगता है.
इनके आभा मंडल से एक विशेष तेज निकलता है जो इनके आस- पास के लोगों को इनके साथ संबंध बनाने के लिए तथा इनकी संगत में रहने के लिए प्रेरित करता है. आध्यात्मिक पथ पर भी ऐसे जातक अपेक्षाकृत शीघ्रता से ही परिणाम प्राप्त कर लेने में सक्षम होते हैं.
गुरु के बारे में कुछ तथ्य:-
1. गुरु वृहस्पति लग्न मे बैठा हो , तो बली होता है और यदि चन्द्रमा के साथ कही बैठा हो तो चेष्ठाबली होता है.
2. गुरु वृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है.
3. गुरु वृहस्पति धनु एवं मीन राशि का स्वामी है.
4. गुरु वृहस्पति जातक को मजिस्ट्रेट, वकील, प्रिंसिपल, गुरु, पंडित, ज्योतिषी, बैंक, मैनेजर, एमएलए, मंदिर के पुजारी,
यूनिवर्सिटी का अधिकारी, एमपी, प्रसिद्द राजनेता के गुण आदि बनाता है.
5. एक राशि मे गुरु वृहस्पति 13 मास तक निवास करता है. सूर्य, चन्द्र और मंगल मित्र है, बुध, शुक्र शत्रु है तथा शनि, राहु, केतु समग्रह है.
6. गुरु वृहस्पति बुद्धि तथा उत्तम
वाकशक्ति के स्वामी है.
7. गुरु वृहस्पति विशाखा, पुनर्वसु तथा पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी है.
8. गुरु वृहस्पति को प्रसन्न करना है ,
गुरु का बीज मंत्र
ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:
गुरु का वैदिक मंत्र
देवानां च ऋषिणा च गुर्रु कान्चन सन्निभम.
बुद्यिभूतं त्रिलोकेश तं गुरुं प्रण्माम्यहम..
गुरु की दान की वस्तुएं गुरु की शुभता प्राप्त करने के लिए निम्न वस्तुओं
का दान करना चाहिए. स्वर्ण, पुखराज, रुबी, चना दान, नमक, हल्दी, पीले चावल,
पीले फूल या पीले लडडू. इन वस्तुओं का दान वीरवार की शाम को करना शुभ रहता है. गुरु का जातक पर प्रभाव गुरु लग्न भाव में बली होकर स्थित हों या फिर गुरु की धनु या मीन राशि लग्न भाव में हो, अथवा गुरु की राशियों में से कोई राशि व्यक्ति की जन्म राशि हो तो व्यक्ति के रुप-रंग पर गुरु का प्रभाव रहता है. गुरु बुद्धि को बुद्धिमान, ज्ञान, खुशियां और सभी चीजों की पूर्णता देता है.
अच्छा गुरु अध्यापक, वकील, जज, पंडित, पत्रकार, प्रकांड विद्वान् या ज्योतिषाचार्य, सुनार, कोपी- किताबों का व्यापारी, आयुर्वेदाचार्य बनाता है. उच्च कोटी का वृहस्पति धार्मिक चिंतन कराता है. राजनैतिक पद, संतान, शिष्य इसी ग्रह से मिलते है और यदी ये ग्रह कमज़ोर हुआ तो इनमें से कुछ भी नहीं मिलेगा. कमज़ोर वृहस्पति तीर्थ या सत्संग का सुख नहीं लेने देता तथा गुरु बुज़ुर्ग और विद्वान ऐसे व्यक्ती की सदैव अनदेखी करेंगे. अच्छा गुरु उच्च कोटी की सिद्धियां कराता है और निम्न स्थिति का गुरु तंत्र का दुरूपयोग कराता है. जब गुरु खराब हो तो चोटी के स्थान से बाल उड़ जाते हैं. खराब गुरु वाले लोगों के विरुद्ध अफवाहें उड़ाई जाती हैं. आपकी उपचय प्रक्रिया कमज़ोर होगी यानी anabolic activity कमज़ोर होगी जिसके कारण पाचन तंत्र कमज़ोर होगा और मोटापा बढ़ता जाएगा और मसल्स कमज़ोर होते जाएंगे. जिसके फल स्वरूप मोटापा और दर्द एक साथ बढ़ेगा. यदि बृहस्पत बहुत
कमज़ोर है तो ये दर्द आपको सामान्य जीवन भी नहीं जीने देगा.
आपके शरीर के टीश्यू कमज़ोर होंगे जिसके वजह से कमर के निचले हिस्से, जांघों में असहनीय दर्द तक हो सकता है. खराब वृहस्पत मोटापा बढ़ाता जाता है और इस प्रकार के मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति का चलने फिरने तक का मन नहीं करता. उसे शरीर में बहुत कमजोरी रहती है. उसे आलस्य भी बहुत रहता है जिससे वो जीवन के किसी कार्य में सफल नहीं हो पाता. शरीर चौड़ा होता जाता है और लम्बाई रुकने लगती है. बच्चों को इस प्रकार के वृहस्पत से बचाना बहुत ज़रूरी होता है.
उपाय
दान-द्रव्य: पुखराज, सोना, कांसी, चने
की दाल, खांड, घी, पीला कपड़ा, पीला फूल, हल्दी, पुस्तक, घोड़ा, पीला फल दान करना चाहिए.
वृहस्पतिवार व्रत करना चाहिए.
रुद्राभिषेक करना चाहिए.
पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें.
साग का सेवन ज़रूर करें.
गुढ़हल के फूल को देवताओं को अर्पित करें हरे प्याज और शतावरी साग का सेवन करें. इससे शरीर एकदम ठीक रहेगा. पुदीने का सेवन ज़रूर किया करें.
मूली खाएं और खिलाएं भी.
केसर का दान करें.
वृहस्पत के दान का दिन वृहस्पतिवार होता है और सुबह का समय होता है.
गरीबों को दही चावल खिलाने से वृहस्पत का बुरा फल समाप्त होता है. गुरु और शिक्षकों की सेवा से भी वृहस्पति अच्छा होता है. बासी भोजन करने से बृहस्पत खराब होता है. माता-पिता व बुजुर्गो और पितरों का ध्यान रखने वाले लोगों का वृहस्पत हमेशा बेहतर फल देता है.
जिस दिन गुरु-पुष्य या पुनर्वसु नक्षत्र हो उस दिन नारायण भगवान, गुरु व माता पिता की सेवा ज़रूर करनी चाहिए. पीपल के वृक्ष की रक्षा करें तथा मंदिर की सेवा करें. गंदगी ना फैलाए. किसी भी पूजा स्थल के सामने सिर झुकाकर जाएं. बेहद खास बात बृहस्पत बहुत अच्छा हो तो अपना जीवन धर्म, देश
समाज को दान कर दें अन्यथा ये भौतिक सुख नहीं लेने देगा.
पीले वस्त्र, पीला भोजन आदि शुभता बढ़ाता है. यदि इन लग्न वाले व्यक्तियों की कुंडली में गुरु 6, 8, 12, या 3, 4, 7 के भावों में हो, नीच का हो तो उन्हें गुरु की मजबूती के उपाय करने चाहिए अन्यथा जीवन में असफलता का मुँह देखना पड़ता है. मिथुन एवं कन्या लग्न के लिए गुरु दो केंद्रों के स्वामी (7, 10, एवं 4, 7) होकर केंद्राधिपत्य दोष से
ग्रस्त हो जाते हैं व अपना कारकत्व खोकर निष्क्रिय हो जाते हैं. अत: ये कुंडली को बल नहीं दे पाते अत: उनका सामान्य स्थिति में रहना ही श्रेयस्कर
होता है. यदि नीच के हो, तो इनकी मजबूती का प्रयास करें.
तुला, वृषभ, मकर लग्न के लिए गुरु 3, 6, 8, 12 भावों के स्वामी होकर प्रतिकूल हो जाते हैं अत: इनका कमजोर होना या 6, 8, 12 में होना (स्वराशिस्थ) ही हितकर होता है. यदि अशुभ भावों के स्वामी होकर गुरु लग्न, पंचम, नवम, दशम आदि शुभ भावों में बैठते हैं, तो साधारणत: प्रतिकूल फल ही अनुभव में आते हैं. इन लग्नों में इनकी उच्च स्थिति बुरा प्रभाव
ही देती है. अत: इन लग्न के व्यक्तियों को सोने के गहने और पुखराज नहीं पहनना चाहिए, गुरु की शरण व गुरु की वस्तुओं का दान करना चाहिए. अपने मुख्य ग्रह लग्न स्वामी को मजबूत करना चाहिए और पीले वस्त्र, पीले भोजन से बचना चाहिए.
पुखराज हर समस्या का निदान नहीं है :- पुखराज तभी पहना जाए जब गुरु कारक ग्रह हो, यदि तुला-वृषभ लग्न वाले व्यक्ति पुखराज धारण करते हैं तो बनते काम बिगड़ने लगेंगे. यदि राशि धनु या मीन हो, मगर लग्न तुला या वृषभ हो तो स्वामी ग्रह के बलाबल का विचार कर रत्न धारण करें. विवाह के लिए पुखराज तभी धारण करें, जब गुरु शुभ भावों का कारक
हो या विवाह भाव से संबंध रखें अन्यथा लाभ की जगह हानि ही होती है.