.. पापप्रशमन स्तोत्र ..
(पद्मपुराण, पातालखण्ड)
सभी मनुष्यों को प्रतिदिन विशेषतः वैशाख मास में पापप्रशमन स्तोत्र का पाठ अथवा उसका श्रवण करना चाहिये जिसके फलस्वरूप उसके समस्त पाप समूहों का नाश हो जाता है.
पद्मपुराण के अनुसार-
गंगायां नर्मदायां वा स्नात्वा मेषगते रवौ.
पापप्रशमनस्तोत्रं यः पठेद्भक्तिभावतः..
एककालं द्विकालं वा त्रिसंध्यमपि भूपते.
स याति परमं स्थानं सर्वपापविवर्जितः..
जो मनुष्य मेष राशि के सूर्य में (वैशाख मास) गंगा या नर्मदा के जल में नहाकर- एक, दो या तीन समय भक्तिभाव के साथ पापप्रशमन नामक स्तोत्र का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त होता है.
विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे विष्णवे नम:,
नमामि विष्णुं चित्तस्थम्-अहंकारगतं हरिम्.
चित्तस्थमीशमव्यक्तम्-अनन्तमपराजितम्,
विष्णुमीड्यमशेषाणाम्-अनादिनिधनं हरिम्..
विष्णुश्चित्तगतो यन्मे विष्णुर्बुद्धिगतश्च यत्,
योsहंकारगतो विष्णुर्यो विष्णुर्मयि संस्थित:.
करोति कर्तृभूतोsसौ स्थावरस्य चरस्य च,
तत्पापं नाशमायाति तस्मिन् विष्णौ विचिन्तिते..
ध्यातो हरति य: पापं स्वप्ने दृष्टश्च पापिनाम्,
तमुपेन्द्रमहं विष्णुं नमामि प्रणतप्रियम्.
जगत्यस्मिन्निरालम्बे ह्यजमक्षरमव्ययम्,
हस्तावलम्बनं स्तोत्रं विष्णुं वन्दे सनातनम्..
सर्वेश्वरेश्वर विभो परमात्मन्नधोक्षज,
हृ्षीकेश हृ्षीकेश हृ्षीकेश नमोsस्तु ते.
नृसिंहानन्त गोविन्द भूतभावन केशव,
दुरुक्तं दुष्कृतं ध्यातं शमयाशु जनार्दन..
यन्मया चिन्तितं दुष्टं स्वचित्तवशवर्तिना,
आकर्णय महाबाहो तच्छमं नय केशव.
ब्रह्मण्यदेव गोविन्द परमार्थपरायण,
जगन्नाथ जगद्धात: पापं शमय मेsच्युत..
यच्चापराह्णे सायाह्ने मध्याह्ने च तथा निशि,
कायेन मनसा वाचा कृतं पापमजानता.
जानता च हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष माधव,
नामत्रयोच्चारणत:सर्वं यातु मम क्षयम्..
शारीरं मे हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष मानसम्,
पापं प्रशममायातु वाक्कृतं मम माधव.
यद् भुज्जान: पिबंस्तिष्ठन् स्वपण्जाग्रद् यदा स्थित:,
अकार्षं पापमर्थार्थं कायेन मनसा गिरा..
महदल्पं च यत्पापं दुर्योनिनरकावहम्,
तत्सर्वं विलयं यातु वासुदेवस्य कीर्तनात्.
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं च यत्,
अस्मिन् संकीर्तिते विष्णौ यत् पापं तत् प्रणश्यतु..
यत्प्राप्य न निवर्तन्ते गन्धस्पर्शविवर्जितम्,
सूरयस्तत्पदं विष्णोस्तत्सर्वं मे भवत्वलम्.
पापप्रशमनं स्तोत्रं य: पठेच्छृृणुयान्नर:,
शारीरैर्मानसैर्वाचा कृतै: पापै: प्रमुच्यते..
मुक्त: पापग्रहादिभ्यो याति विष्णो: परं पदम्,
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन स्तोत्रं सर्वाघनाशनम्.
प्रायश्चित्तमघौघानां पठितव्यं नरोत्तमै:,
प्रायश्चित्तैः स्तोत्रवरैर्व्रतैर्नश्यति पातकम्..
ततः कार्याणि संसिद्ध्यै तानि वै भुक्तिमुक्तये,
पूर्वजन्मार्जितं पापमैहिकं च नरेश्वर.
स्तवस्य श्रवणादस्य सद्य एव विलीयते,
पापद्रुमकुठारोऽयं पापेंधनदवानलः..
पापराशितमः स्तोम भानुरेष स्तवो नृप .
मया प्रकाशितस्तुभ्यं तथा लोकानुकंपया..
यह “पापप्रशमन” नामक स्तोत्र है जो मनुष्य इसे पढ़ता और सुनता है वह शरीर, मन और वाणी द्वारा किए हुए पापों से मुक्त हो जाता है इतना ही नहीं वह पाप ग्रह आदि के भय से भी मुक्त होकर विष्णु के परम पद को प्राप्त होता है.
यह स्तोत्र सब पापों का नाश करने वाला तथा पाप राशि का प्रायश्चित है इसलिए श्रेष्ठ मनुष्यों को पूर्ण प्रयत्न कर के इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए.
राजन् ! इस स्तोत्र के श्रवण मात्र से पूर्वजन्म तथा इस जन्म के किये हुए पाप भी तत्काल नष्ट हो जाते हैं. यह स्तोत्र पापरूपी वृक्ष के लिए कुठार और पापमय ईंधन के लिए दावानल है. पापराशिरूपी अन्धकार-समूह का नाश करने के लिए यह स्तोत्र सूर्य के समान है. मैंने सम्पूर्ण जगत पर अनुग्रह करने के लिए इसे तुम्हारे सामने प्रकाशित किया है.
मनुष्यों को प्रतिदिन वैशाख मास में पापप्रशमन स्तोत्र का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए
प्रेषित समय :19:48:48 PM / Thu, Apr 17th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर