साइबर फ्रॉड मामलों को RTI के तहत लाने की सिफारिश: क्या यह जांच और पारदर्शिता में संतुलन ला सकेगी?

साइबर फ्रॉड मामलों को RTI के तहत लाने की सिफारिश: क्या यह जांच और पारदर्शिता में संतुलन ला सकेगी?

प्रेषित समय :20:11:18 PM / Mon, Jun 9th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अहमदाबाद. गुजरात राज्य सूचना आयोग ने एक महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए कहा है कि साइबर फ्रॉड जैसे डिजिटल अपराधों से संबंधित शिकायतों और जांच की जानकारी को सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत लाया जाना चाहिए. आयोग का मानना है कि इससे पीड़ितों को अपने मामलों की स्थिति जानने का अधिकार मिलेगा और पुलिस एवं साइबर सेल की जवाबदेही सुनिश्चित होगी.

राज्य के सूचना आयुक्त कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा, "RTI एक कानूनी हथियार है, जिसका सही उपयोग करके पीड़ित व्यक्ति यह जान सकता है कि उसकी शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई है, क्या एफआईआर दर्ज की गई है, जांच अधिकारी कौन है, और केस की वर्तमान स्थिति क्या है."

यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब गुजरात में साइबर अपराधों की संख्या लगातार बढ़ रही है. 2024 में राज्य में 8,000 से अधिक साइबर फ्रॉड से जुड़ी शिकायतें दर्ज की गईं. इनमें से अधिकांश में पीड़ित यह तक नहीं जान पाए कि जांच शुरू हुई भी है या नहीं.

गुजरात पुलिस की ओर से कहा गया है कि वे इस प्रस्ताव का "सकारात्मक मूल्यांकन" करेंगे, लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि जांच से संबंधित कुछ जानकारी गोपनीय होती है जिसे RTI के तहत देना संभव नहीं होगा.

क्या RTI से मिलेगी साइबर अपराध पीड़ितों को राहत?
गुजरात सूचना आयोग की यह पहल कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है. RTI अधिनियम को आम नागरिक की “जानकारी तक पहुंच” का संवैधानिक अधिकार माना जाता है. परंतु जब बात जांच प्रक्रिया और गोपनीयता की आती है, तो RTI का प्रयोग सावधानी से करना पड़ता है.

RTI से संभावित लाभ:
पीड़ित को शिकायत की स्थिति जानने में मदद.

पुलिस महकमे पर पारदर्शिता का दबाव.

साइबर क्राइम में आम जनता का विश्वास बढ़ेगा.

जांच में लापरवाही पर नियंत्रण.

संभावित खतरे व चुनौतियाँ:
अधूरी या गलत जानकारी से जांच दिशा भटक सकती है.

आरोपी पक्ष भी RTI के ज़रिए जांच से जुड़ी सूचनाएं ले सकता है.

पुलिस तंत्र में RTI जवाब देने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ की कमी.

RTI की आड़ में सोशल मीडिया पर केस से जुड़ी संवेदनशील जानकारी लीक हो सकती है.

संभावित समाधान:
एक “साइबर जांच RTI नीति” बनाना जिसमें यह तय हो कि कौनसी जानकारी सार्वजनिक की जा सकती है.

RTI जवाबदेही के लिए विशेष नोडल अधिकारी की नियुक्ति.

टेक्नोलॉजी आधारित ट्रैकिंग सिस्टम, जहां नागरिक बिना RTI दाखिल किए भी केस की स्थिति देख सकें.

निष्कर्ष: पारदर्शिता और जांच में संतुलन की ज़रूरत
गुजरात सूचना आयोग का सुझाव पारदर्शिता की दिशा में एक क्रांतिकारी प्रस्ताव हो सकता है, लेकिन इसके सफल कार्यान्वयन के लिए ठोस नीतियों और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होगी.

यह विचार कि साइबर पीड़ितों को भी “जानकारी का अधिकार” मिलना चाहिए, आधुनिक लोकतंत्र की बुनियाद को मज़बूत करता है. लेकिन अगर जानकारी बिना फिल्टर के दी गई, तो यह न्याय प्रक्रिया को उलझा भी सकती है.

RTI और जांच — दोनों लोकतंत्र के स्तंभ हैं. इनका संतुलन ही डिजिटल युग में न्याय और पारदर्शिता का नया रास्ता खोल सकता है.

आपका क्या मत है? क्या साइबर अपराधों की जानकारी RTI के तहत आनी चाहिए या इससे जांच प्रभावित हो सकती है? नीचे कमेंट करें या हमें लिखें.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-