पटना. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के रिवीजन मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई जारी है. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि वोटर लिस्ट रिवीजन नियमों को दरकिनार कर किया जा रहा है. वोटर की नागरिकता जांची जा रही है. ये कानून के खिलाफ है.
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी वोटर लिस्ट रिवीजन में नागरिकता के मुद्दे में क्यों पड़ रहे हैं. अगर आप वोटर लिस्ट में किसी शख्स का नाम सिर्फ देश की नागरिकता साबित होने के आधार पर शामिल करेंगे तो फिर ये बड़ी कसौटी होगी. यह गृह मंत्रालय का काम है. आप उसमे मत जाइए.
एसआईआर के खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की गई हैं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया व जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच सुनवाई कर रही है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण, कपिल सिब्बल व अभिषेक मनु सिंघवी दलील दे रहे हैं.
चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राकेश द्विवेदी व मनिंदर सिंह कर रहे हैं. याचिकाकर्ता के वकील, अब जबकि चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं चुनाव आयोग कह रहा है कि वह पूरी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण 30 दिनों में करेगा. सुप्रीम कोर्ट, एसआईआर प्रक्रिया में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह आगामी चुनाव से कई महीने पहले ही कर ली जानी चाहिए थी. भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच करना आवश्यक हैए जो संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत आता है. चुनाव आयोग जो कर रहा हैए वह संविधान के तहत अनिवार्य है और इस तरह की पिछली प्रक्रिया 2003 में की गई थी.
चुनाव आयोग ने कहा बिना सुनवाई किसी का नाम नहीं कटेगा
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि सुनवाई का मौका दिए बिना किसी को भी मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा. कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा, उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने का अधिकार है. इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई व इसमें कितना समय लगेगा. इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि समय बीतने के साथए मतदाताओं के नाम शामिल करने या बाहर करने पर विचार करने के लिए मतदाता सूची को संशोधित करने की जरूरत होती है.
याचिकाकर्ता के वकील ने ये 3 सवाल उठाए-
चुनाव आयोग की ओर से वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने के लिए 11 दस्तावेज स्वीकार किए जा रहे हैंए लेकिन आधार कार्ड और वोटर प्क् जैसे अहम पहचान पत्रों को मान्यता नहीं दी जा रही है.
-आयोग की प्रक्रिया स्पष्ट और समान नहीं है. अगर कोई व्यक्ति 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल है तो उसे अभिभावकों के दस्तावेज या नागरिकता से जुड़े प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं हैए लेकिन अगर कोई व्यक्ति उस लिस्ट में नहीं है तो उसे नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगें.
-यदि चुनाव आयोग जिस प्रक्रिया को चला रहा है वो सघन पुनरीक्षण है तो नियम के अनुसार अधिकारियों को हर घर जाकर वोटर की जानकारी जुटानी चाहिएए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.
अभिषेक मनु सिंघवी बोले, लाखों लोगों के नाम लिस्ट से हटने की आशंका
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा. श्2003 में जब ऐसा व्यापक पुनरीक्षण हुआ थाए तब चुनाव में काफी समय बचा था. लेकिन इस बार चुनाव नजदीक हैं जिससे लाखों लोगों को सूची से हटाने की आशंका है.
कपिल सिब्बल बोले, नागरिकता साबित करने का बोझ डाला जा रहा-
कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील दी कि आयोग मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का बोझ डाल रहा है. आयोग को यह बताना चाहिए कि वह किस आधार पर किसी को भारतीय नागरिक नहीं मानता. मतदाता पहचान पत्रए बर्थ सर्टिफिकेट और मनरेगा कार्ड तक को नहीं स्वीकार किया जा रहा है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

