2032 तक भारत की EV चार्जिंग ज़रूरतों के लिए कुल सौर-वायु क्षमता का सिर्फ 3% ही काफी

2032 तक भारत की EV चार्जिंग ज़रूरतों के लिए कुल सौर-वायु क्षमता का सिर्फ 3% ही काफी

प्रेषित समय :21:18:26 PM / Thu, Jul 24th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

2032 तक भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की चार्जिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए देश की कुल प्रस्तावित सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का महज तीन प्रतिशत हिस्सा ही पर्याप्त होगा. यह तथ्य ऊर्जा थिंक टैंक 'एम्बर' की हालिया रिपोर्ट से सामने आया है. रिपोर्ट बताती है कि अगर समयबद्ध और स्मार्ट नीतिगत उपाय किए जाएं—जैसे कि दिन के समय चार्जिंग को प्राथमिकता देना और ‘टाइम-ऑफ-डे’ (ToD) टैरिफ को व्यापक रूप से लागू करना—तो बिजली उत्पादन में किसी बड़ी वृद्धि की आवश्यकता नहीं होगी.

2030 और 2032 के संभावित ईवी स्टॉक अनुमानों के आधार पर किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि 2032 तक चार्जिंग के लिए देश को लगभग 15 गीगावॉट बिजली की जरूरत पड़ेगी, जो राष्ट्रीय बिजली योजना (NEP-14) के तहत निर्धारित 468 गीगावॉट की कुल सौर-पवन क्षमता का केवल तीन प्रतिशत है.

रिपोर्ट में चेताया गया है कि मौजूदा स्थिति में अधिकांश ईवी चार्जिंग रात में होती है, जब ग्रिड में कोयले से उत्पन्न बिजली की मात्रा ज्यादा होती है. अगर चार्जिंग को ‘सोलर आवर’ यानी दिन के समय कार्यालयों या व्यावसायिक स्थलों पर स्थानांतरित किया जाए, तो न केवल ग्रिड पर दबाव घटेगा, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग भी बढ़ेगा.

इसके लिए सार्वजनिक और कार्यस्थलों पर चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाना, और उपयोगकर्ता को प्रोत्साहित करने हेतु ToD टैरिफ जैसी योजनाओं को लागू करना जरूरी होगा. कई राज्य इस दिशा में पहले ही कदम बढ़ा चुके हैं. असम, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने सोलर-आवर आधारित ToD टैरिफ को अपनाया है. इन राज्यों के अलावा उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्य भी ईवी बिक्री की दृष्टि से तेजी से उभरते हुए राज्य हैं.

रिपोर्ट में यह भी ज़ोर दिया गया है कि ईवी चार्जिंग से जुड़ा डेटा इकट्ठा करना और उसका विश्लेषण करना बेहद जरूरी है, ताकि बिजली वितरण कंपनियां मांग का सटीक पूर्वानुमान लगा सकें. बेशक, उपभोक्ता की प्राइवेसी को सुरक्षित रखते हुए डेटा प्रबंधन किया जाना चाहिए.

रिपोर्ट इस बात को भी रेखांकित करती है कि चार्जिंग तकनीक से अधिक, रणनीतिक नीति और समन्वय ही इस परिवर्तन की असली चुनौती हैं. फिलहाल घरेलू चार्जिंग के लिए ग्रीन टैरिफ उपलब्ध नहीं हैं और लागत-संवेदनशील उपभोक्ताओं को आकर्षित करना कठिन है. लेकिन यदि राज्य सरकारें ईवी को नवीकरणीय ऊर्जा मांग का एक प्रमुख प्रेरक मानकर योजनाएं बनाएं, तो इससे न केवल स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि बिजली ग्रिड की लचीलापन क्षमता में भी सुधार होगा.

दरअसल, भारत की ईवी क्रांति बैटरी या चार्जर से कहीं आगे की चीज है. इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि नीति, डेटा और बुनियादी ढांचे को किस हद तक साफ ऊर्जा के साथ जोड़कर आगे बढ़ाया जाता है. यदि यह समझदारी दिखाई गई, तो सीमित संसाधनों में भी एक बड़ा और जलवायु-संवेदनशील बदलाव संभव हो सकेगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-